जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री और नेशनल कांफ्रेस के नेता उमर अब्दुला के हाल के कुछ दिनों में जो बयान आए हैं वे बताते हैं कि उन्होंने पाक परस्ति की सभी सीमाएं लांघ दी हैं.
उमर अपने ट्वीटर पर जिस प्रकार द्विअर्थी और भ्रामक बयान जारी कर रहे हैं उसको देखते हुए लगता है कि उनके दिल में भी अपने दादा शेख अब्दुला की तरह कोई देश द्रोही साजिश चल रही है.
अपने बयानों में उमर जिस प्रकार आजादी और दो राष्ट्रों जैसे शब्दों का उपयोग कर पाकिस्तान और पत्थरबाजों का बचाव करते हैं तथा भारत सरकार और फौज को कठघरे में खड़ा करते हैं उससे लगता है कि उनके दिल के किसी कोने में पाकिस्तान के प्रति प्रेम उमड़ रहा हैं.
बारामुला हमला हो या उरी हमला या फिर उससे पहले आतंकी बुरहान की सेना के हाथों मौत, इनको लेकर अब्दुला के जितने भी बयान आए हैं उनको देखकर साफ हो जाएगा कि वे अपने बयानों के जरिए किस प्रकार घाटी में अलगावादियों को बढ़ावा दे रहे हैं.
उरी हमले के बाद जब भारत ने पाकिस्तान में पनाह पाए आतंकियों के खिलाफ सर्जिकल स्ट्राइक की तो उमर ने उस पर संदेह कर एक प्रकार से सेना की काबिलियत पर ही सवाल खड़े कर दिए. भारतीय सेना से ज्यादा उनको पाक सेना के दावों पर भरोसा है.
यही नहीं, जब भारत ने पाक को सबक सिखाने के लिए सिंधु जल समझौता रद्द करने की बात कही, तो इस पर उमर ने कहा कि वो अपनी गर्दन कटवाने के लिए तैयार है लेकिन सिंधु जल समझौता नही टूटने देंगे.
आतंकी बुरहान की मौत के बाद घाटी के जो हालात बने हैं उसके लिए उमर की नजर भारत ही जिम्मेंदार है जबकि पाकिस्तान बेकसूर है. यही नहीं, जब सेना ने आतंकी बुरहान को मारा था तब भी उमर ने कहा था. बुरहान मुजफ्फर बानी न तो पहला शख्श था जिसने बंदूक उठाई है और न ही वह आखिरी होगा.
आप उमर अब्दुला के बयान के पीछे छिपे संकेतों को समझना होगा. बुरहान मुजफ्फर बानी पहला शख्श नहीं था. शब्द पर गौर करिए जिस बुरहान का नाम जम्मू कश्मीर की सरकार और पुलिस के रिकाॅर्ड में आतंकवादी के रूप में दर्ज है. उसके लिए उमर अब्दुला अपने बयान में आतंकवादी शब्द का प्रयोग नहीं कर रहे हैं. और उमर अपने बयान में आगे कहते हैं कि राज्य में आगे भी लोग बंदूक उठांएगे. यानी तुम कितने बुरहान (मुजाहिद) मारोंगे हर घर से मुजाहिद निकलेगा.
उमर राज्य में सक्रिय अलगावादियों नेताओं की उस जमात में खडें हैं जो बुरहान को आतंकी नहीं मुजाहिद मानते हैं.
घाटी में आतंकवाद को संकेतों में किस प्रकार समर्थन देकर पाला पोसा जा रहा है उसको भी समझिए.
एक ट्वीट में उमर अब्दुला कहते हैं कि जम्मू कश्मीर नैशनल कांफ्रेंस ने हमेंशा राजनैतिक समस्या के लिए राजनैतिक समाधान चाहा है. राजनैतिक समस्या अर्थात उमर अब्दुला जम्मू कश्मीर के भारत में विलय को विवादस्पद मानते हैं. उनका विलय को समर्थन नहीं है. और साथ ही राज्य में जो आतंकवाद है वह पाकिस्तान प्रायोजित भी नहीं है. यह राज्य के लोगों की आवाज है.
दरअसल, जम्मू कश्मीर में पिछले करीब तीन दशक से अलगाववाद के नाम पर सियासी ब्लैकमेंलिग का खेल चल रहा है. आज हालात बिगड़ते बिगड़ते इस हद तक पुहंच गए हैं कि अभिव्यक्ति की आजादी के नाम पर आतंकियों के समर्थन में खुलेआम नारे ही नहीं लगाए जा रहे बल्कि उनका हीरों की तरह महिमामंडन भी किया जा रहा है.
जब तक देश में इस विचारधारा के विरोध में लोग खड़े नहीं होते है तब तक यह उम्मीद करना कि सेना और सुरक्षा बलों के दम पर हम आतंकवाद को समाप्त कर देंगे अपने को धोखे में रखना जैसा है. पाकिस्तान के प्रति उमर जैसे नेताओं के बार बार उमड़ने वाले प्रेम के पीछे असल वजह क्या है इसको समझने और उसका ईलाज करने का वक्त आ गया है.