ओलम्पस पर्वत – मंगल ग्रह हमेशा से इंसानों के लिए एक रोचक और रिसर्च का ग्रह रहा है।
नासा इस पर पिछले कुछ सालों से लगातार रिसर्च करता रहा है और जीवन की खोज कर रहा है। नासा ने 5 मई, 2018 में मंगल ग्रह के लिए इनसाइट मिशन का प्रक्षेपण किया था। इस मिशन की शुरुआत मंगल ग्रह के तापमान को मापने के लिए की गई।
इस मिशन के जरिये नासा यह जानने की कोशिश कर रहा है कि मंगल की सतह पर इतने विशाल पर्वतों का निर्माण कैसे हुआ।
मंगल पर हैं बड़े पर्वत
नासा का कहना है कि सौर मंडल में मौजूद कई बड़े पर्वत मंगल ग्रह पर हैं। इनमें ‘ओलंपस मॉन्स’ वॉल्केनो भी शामिल है, जो पृथ्वी की सबसे ऊंची चोटी माउंट एवरेस्ट से करीब तीन गुना बड़ा है। ओलम्पस मोन्स एक ज्वालामुखी पर्वत है। ये पर्वत एक पठार की सीमा निर्धारित करते हैं, जहां तीनों ज्वालामुखी पर्वत धरातल पर हावी हैं।
अमेजोनियन काल के दौरान बना था ओलम्पस पर्वत
ओलम्पस पर्वत मंगल के बड़े ज्वालामुखियों में से सबसे कम उम्र का है और यह अमेजोनियन काल के दौरान बना था। अंतरिक्ष यान द्वारा इसकी पहचान पहाड़ के तौर पर करने से पहले संदेहास्पद थी। लेकिन कई मिशन के बाद इस बात की पुष्टि हो गई है कि ओलम्पस एक पर्वत है। मंगल के पश्चिमी गोलार्द्ध में यह ज्वालामुखी स्थित है।
कम है मंगल पर गुरुत्वाकर्षण बल
मंगल में कई बड़े-बड़े पर्वत हैं। ऐसा वहां गुरुत्वाकर्षण बल कम होने के कारण है। दरअसल, मंगल पर टेक्टोनिक प्लेट्स ना होने के साथ-साथ गुरुत्वाकर्षण बल कम है जिसके कारण वहां पर्वतों की ऊंचाई पृथ्वी के मुकाबले अधिक होती है। इसलिए ओलम्पस पर्वत, जो कि एक ज्वालामुखी पर्वत है, कि ऊंचाई माउंट एवरेस्ट से तीन गुना ज्यादा है। ओलम्पस पर्वत हमारे सौरमंडल का सबसे ऊंचा पर्वत है। ये पर्वत एक पठार की सीमा निर्धारित करते हैं, जहां तीनों ज्वालामुखी पर्वत धरातल पर हावी हैं।
इसलिए कहते हैं इसे “लाल ग्रह”
हर कोई मंगल को लाल ग्रह कहता है। यह हमारे सौरमंडल का चौथा ग्रह है। दरअसल मंगल ग्रह पर हमेशा तूफान चलते रहते हैं जिसके कारण वहां हमेशा धूल उड़ती रहती है। इस धूल के कारण ही पृथ्वी से इसकी आभा रक्तिम दिखती है और इस कारण ही इसे “लाल ग्रह” कहते हैं। सौरमंडल के ग्रह दो तरह के होते हैं – “स्थलीय ग्रह” जिनमें ज़मीन होती है और “गैसीय ग्रह” जिनमें अधिकतर गैस ही गैस है।
पृथ्वी की तरह, मंगल भी एक स्थलीय धरातल वाला ग्रह है लेकिन इसका वातावरण पृथ्वी की तुलना में काफी विरल है। इसकी सतह देखने पर चंद्रमा के गर्त और पृथ्वी के ज्वालामुखियों, घाटियों, रेगिस्तान और ध्रुवीय बर्फीली चोटियों की याद दिलाती है।
पृथ्वी की तरह होता है यहां मौसम में बदलाव
मंगल ग्रह, पृथ्वी से काफी मिलता-जुलता है। यहां पृथ्वी की ही तरह ऋतुएं बदलती रहती हैं। मंगल ग्रह को सूर्य की परिकर्मा करने में 687 दिन लगते हैं। इसलिए वहां एक दिन लगभग 48 घंटों से ज्यादा में पूरा होता है। और इस कारण यहां का एक साल पृथ्वी के दो साल के बराबर होता है। पहली मंगल उडान 1965 में मेरिनर 4 के द्वारा की गयी थी।