कैलाश मंदिर – भारत को मंदिरों का देश कहा जाता है.
हमारी संस्कृति ऐसी है कि हम हर जगह अपने भगवान को अपने आसपास रखते हैं. वैसे तो वो कण-कण में हैं, लेकिन उनका मंदिर हम हर जगह बनवा देते हैं. ये संस्कृति आज की नहीं बल्कि सालों पुरानी है. हिन्दुओं को अपने घर से ज़्यादा मंदिर की चिंता रहती है. भले ही घर बने न बने, लेकिन मंदिर ज़रूर बनना चाहिए.
यही श्रध्दा आज के सैकड़ों साल पहले भी थी.
लोग अपने ईष्ट की आराधना करने के लिए उनका मंदिर अपने मोहल्ले, गाँव के भीतर बनवाते थे.
कैलाश मंदिर संसार में अपने ढंग का अनूठा वास्तु जिसे मालखेड स्थित राष्ट्रकूट वंश के नरेश कृष्ण (प्रथम) (760-753 ई.) ने निमित्त कराया था. यह एलोरा जिला औरंगाबाद स्थित लयण-श्रृंखला में है. एलोरा की 34 गुफाओं में सबसे अदभुत है कैलाश मंदिर. इस भव्य मंदिर को देखने के लिए भारत ही नहीं बल्कि पूरी दुनिया से लोग आते हैं. ये अपने आप में बहुत ही अजूबा है.
इतने साल पहले का बना ये मंदिर आज भी उतना ही सुंदर और भव्य लगता है.
विशाल कैलाश मंदिर देखने में जितना खूबसूरत है उससे ज्यादा खूबसूरत है इस मंदिर में किया गया काम. आपको जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर को बनाने में १, २ नहीं बल्कि पूरे १५० साल लगे हैं. जी हाँ, इस मंदिर को बनाने में सौ साल से ज्यादा का समय लगा है. अब आप सोच सकते हैं कि इसकी कलाकृति कितनी खूबसूरत होगी, जिसे बनाने में इतना समय लग गया.
आमतौर पर कोई भी मंदिर हो झट से तैयार हो जाता है. उसे बनाने में कम मजदूर लगते हैं, लेकिन एलोरा का ये कैलाश मंदिर सच में भगवान् शिव का स्थान है. भगवान् के स्थान को बनाने में इसलिए इतने साल लगे और मजदूरों की संख्या ७००० थी. बिलकुल सही पढ़ा आपने. ७००० मजदूर मिलकर इस मंदिर को भव्यता दिए.
इस मंदिर की सबसे ख़ास बात ये है कि इसे हिमालय के कैलाश की तरह रूप दिया गया है. तब के राजा का मानना था कि अगर कोई हिमालय तक नहीं पहुँच पाए तो वो यहीं देवता का दर्शन कर ले. एलोरा का कैलाश मंदिर महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले में प्रसिद्ध एलोरा की गुफाओं में स्थित है. यह एलोरा के 16वीं गुफा की शोभा बढ़ा रही है. इस मंदिर का शिवलिंग विशालकाय है. यही इसकी सबसे ख़ास बात है.
इस मंदिर को दो मंज़िला बनाया गया हिया. यह मंदिर दुनिया भर में एक ही पत्थर की शिला से बनी हुई सबसे बड़ी मूर्ति के लिए प्रसिद्ध है. इस मंदिर की ऊँचाई ९० फीट है. इस मंदिर को बनाने में कई पीढ़ियों का योगदान रहा. सबने अपने हाथों से इसे अंजाम दिया. दिन-रात काम करके इस मंदिर को बनाया गया. आपको जानकर हैरानी होगी कि इसके निर्माण में करीब 40 हज़ार टन वजनी पत्थरों को काटा गया था. तब जाकर मंदिर तैयार हुआ. इस मंदिर के आंगन के तीनों ओर कोठरियां हैं और सामने खुले मंडप में नंदी विराजमान है और उसके दोनों ओर विशालकाय हाथी और स्तंभ बने हैं. ये मंदिर के मुख्य आकर्षण में से एक है.
मंदिरों के दर्शन अपने बहुत किये होंगे, लेकिन इतना भव्य मंदिर आपने नहीं देखा होगा. एक बार ज़रूर जाएं.
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