ट्रांसजीसटर
ट्रांसजीसटर को हम रेडियो के नाम से ज्यादा जानते हैं. भारत की आज़ादी में रेडियो का बड़ा योगदान रहा है. “बहनों और भाईयों आप सुन रहे हैं”, इस वक़्त में अमीन सयानी की आवाज पूरा भारत एक साथ सुनता था. इनके गीतमाला कार्यक्रम के दौरान गलियाँ खाली हो जाती थीं. मुकेश जी से लेकर लता जी के गाने घंटों दादा जी के कानों में गूंजते रहते थे. वो क्या दौर था जब दादा जी के गीतों के वीडियो नहीं होते थे, पर उस ट्रांसजीसटर को सुनकर ही सब आँखों के सामने आ जाता था. आर. डी. बर्मन और रफ़ी जी के म्यूजिक उन दिनों खूब सुने जाते थे. धीरे-धीरे वक़्त ने करवट बदली और ट्रांसजीसटर का वक़्त भी चला गया. आज रेडियो का वक़्त आ गया और खत्म हो गया गीतमाला का सफ़र. नये रेडियो पर नये वक्ता आ गये और दादा जी अकेले रह गये.
आप अब सोच सकते हैं कि कैसे हमारे दादा जी, अपना वक़्त बिताते होंगे. अकेले बैठे पूरा दिन ना जाने क्या सोचते रहते हैं? कई बार जब गलियों या किसी गार्डन में, जब हम दादा जी को रोज अपने दोस्तों के साथ बैठा देखते हैं तो बोलते हैं कि ये रोज क्या बातें करते होंगे? आप यकीन मानिये वो बेमतलब की बातें सिर्फ इसलिए करते हैं ताकि बस अपना अकेलापन दूर भगा सकें.
महसूस करो, आपके पास मोबाइल्स और कंप्यूटर और टेलीविजन ना हो तो आप क्या करेंगें? तब आप समझ जाएंगें दादा जी के म्यूजिक यंत्रों का महत्व.