श्रावण के महीने में शिवरात्रि पर शिवलिंग के ऊपर तो दूध चढ़ाने का विधान हम जानते हैं लेकिन आपको पता होना चाहिए कि इस पूरे महीने ही शिव भगवान पर दूध चढ़ाना होता है.
इस बात को कुछ लोग गलत अर्थों में ले जाते हैं और बोलते हैं कि जितना दूध शिवलिंग पर भक्त बर्बाद करते हैं वह गरीबों के काम आ सकता है.
आप इस बात को सुनकर शांत रह जाते होंगे और कोई जवाब नहीं देते होंगे.
अब आप जवाब भी तो तभी दे सकते हो जब आपको कुछ ज्ञान हो या आपने शास्त्र पढ़े हों.
आज हम आपको बताने वाले यह सच कि आखिर क्यों श्रावण के माह में ही शिवलिंग पर दूध चढ़ाने का विधान है.
शिव पीते हैं जहर
आपको इस बात का ज्ञान तो होगा ही कि शिव भगवान हमेशा जहर ही पीते हैं.
समुद्र मंथन में जब जहर निकला था तो उस समय अन्य किसी देवता ने इस जहर का पान नहीं किया था और अंत में भक्तों के लिए भगवान शिव ने यह पान किया था. इसी तरह से शिव भगवान को बेल पत्थर, राख और धतुरा आदि जो कड़वी चीजें हैं वह भी शिव जी को अर्पित होती हैं.
सच बात यह है कि भगवान शिव जगत का सारा जहर अपने पास लेते हैं ताकि उनके भक्तों को कोई भी परेशानी ना हो. इस बात को भी हम दुनिया के सामने नहीं रख पाते हैं. आप ध्यान दें कि बाकी सभी देवता मिष्ठान और भोग से प्रसन्न होते हैं लेकिन भोलेनाथ जी तो हमारे लिये जहर का पान करते हैं.
इसलिए शिवलिंग पर दूध चढ़ाते हैं
अपनी पुस्तक में स्वर्गीय राजीव दीक्षित लिखते हैं कि आयुर्वेद कहता है कि वात-पित्त-कफ इनके असंतुलन से बीमारियाँ होती हैं और श्रावण के महीने में वात की बीमारियाँ सबसे ज्यादा होती हैं. श्रावण के महीने में ऋतू परिवर्तन के कारण शरीर मे वात बढ़ता है. इस वात को कम करने के लिए क्या करना पड़ता है ? ऐसी चीज़ें नहीं खानी चाहिए जिनसे वात बढे, इसलिए पत्ते वाली सब्जियां नहीं खानी चाहिए और उस समय पशु क्या खाते हैं?
सब घास और पत्तियां ही तो खाते हैं.
इस कारण उनका दूध भी वात को बढाता है. इसलिए आयुर्वेद कहता है कि श्रावण के महीने में जब शिवरात्रि होती है तो दूध नहीं पीना चाहिए. इसलिए श्रावण मास में जब हर जगह शिव रात्रि पर दूध चढ़ता था तो लोग समझ जाया करते थे कि इस महीने मे दूध विष के सामान है, स्वास्थ्य के लिए अच्छा नहीं है, इस समय दूध पिएंगे तो वाइरल इन्फेक्शन से बरसात की बीमारियाँ फैलेंगी और वो दूध नहीं पिया करते थे ! इस तरह हर जगह शिव रात्रि मनाने से पूरा देश वाइरल की बीमारियों से बच जाता था.
अब आप इस तथ्य की पुष्टि डॉक्टर से भी करा सकते हैं और इन बातों को स्वदेशी मंच वाले स्वर्गीय राजीव दीक्षित जी के भाषणों में भी पढ़ सकते हैं.
बात बहुत छोटी सी है लेकिन हम भूल जाते हैं कि सनातन धर्म में मान्य परम्परायें कहीं न कहीं विज्ञान से जरूर जुड़ी हुई होती है.
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