मेरे दोस्त प्रणव का समझ नहीं आ रहा कि क्या करूँ|
बचपन का दोस्त है, लेकिन कभी सोचा नहीं था कि ऐसा कुछ कर जाएगा| एक लड़की से प्यार हो गया उसे लेकिन उस लड़की को प्रणव से बिलकुल प्यार नहीं है और उसने साफ़ लेकिन सभ्य शब्दों में प्रणव को यह बात बता भी दी है|
मुश्किल यह है कि प्रणव पागल आशिक की तरह इस “ना” को स्वीकारने के लिए बिलकुल तैयार नहीं है!
पागल सा हो गया वो| उस लड़की का पीछा करता है, उसे दिन में कई मैसेज भेजता है, कितनी ही फ़ोन कॉल्स करता है, उसके घर, कॉलेज के सैकड़ों चक्कर लगाता है और २४ घंटे बस उस लड़की का भूत सवार रहता है प्रणव पर| इतना काफ़ी नहीं था तो अब बहकी सी बातें करनी शुरू कर दी हैं उसने| कहता है अगर मेरी नहीं हुई तो किसी और की नहीं होने देगा, चेहरे पर एसिड फ़ेंक देगा और ना जाने क्या क्या घटिया बातें कर रहा है| क्या करूँ समझ नहीं पा रहा हूँ मैं!
क्यों, सुनी-सुनी सी लग रही है ना ये दास्तान?
हैं ना हम सबकी ज़िन्दगी में ऐसे कुछ लड़के जिन से “ना” बर्दाश्त नहीं होती?
आख़िर मुसीबत क्या है इनकी?
ऐसा नहीं है कि यह पढ़े-लिखे नहीं हैं या इनमे दिमाग नहीं है या यह जानते नहीं हैं कि यह क्या कर रहे हैं|
बात इतनी सी है कि यह समझ नहीं पाते कि मर्यादा की सीमा कहाँ तक होती है और कहाँ उसे पार नहीं करना होता| कुछ लड़कों पर फिल्मों का असर होता है| उन्हें लगता है कि फलां फिल्म में हीरो ने ऐसा किया तो उन्हें भी हक़ है| जैसे कि कुछ साल पहले आई फिल्म रांझणा में दिखाया गया था कि लड़की के हज़ार दफ़ा मना करने पर भी हीरो उसका पीछा करना, उससे अपने प्यार का इज़हार करना छोड़ता नहीं है| जवान लड़कों को लगता है कि लड़की की “ना” में “हाँ” है और एक ना एक दिन मान ही जायेगी!
दूसरी तरफ ऐसे भी लड़के हैं जो दिमाग से बीमार हैं| उनका बचपन या तो हीन भावना से जूझते हुए निकला है या उन्हें बचपन से किसी ने प्यार दिया ही नहीं| बस उसी की आस में वो पागल से हो जाते हैं और उन्हें लगने लगता है कि जो लड़की उन्हें पसंद आ गयी है, वही उनके जीवन में प्यार की कमी को भर पाएगी| इसीलिए उसे अपना बनाने के लिए दीवानों की तरह सही-गलत का फ़र्क भूल जाते हैं|
इस समस्या का हल इतना आसान नहीं है|
सिर्फ सज़ा दे देना या ऐसे लड़कों को जेल में डाल देना इस का हल नहीं है| पूरे समाज को ये कोशिश करनी पड़ेगी कि कैसे इस मानसिकता को बदला जाए कि लड़की का हक़ है कि वो किस से प्यार करे और किस को इंकार| दूसरी बात, फिल्मों का असर जिस तरह युवकों पर पड़ता है, उन में यह बात साफ़ की जानी चाहिए कि इस तरह की सनक ज़िन्दगी के लिए हानिकारक हो सकती है|
जो लड़के दिमागी रूप से बीमार हैं, उनका इलाज किया जाए, परिवार और दोस्तों की मदद से उन्हें ठीक करने की कोशिश की जाए| और उसके बाद बचे हुए सच में अपराधिक सोच के लड़कों को पहला मौका मिलते ही जेल में डाल के समाज से दूर रखा जाए!
प्यार में ज़िन्दगी है, उस में वहशीपन का रस मिला कर मौत का सामान ना बनाया जाए!
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