जीवन शैली

हमारे अंदर है ‘परमाणु शक्ति’

परमाणु शक्ति – बड़े कार्यों को बड़े शक्ति केंद्र ही सपन्न कर सकते हैं.

फिर चाहे दलदल में फंसा हाथी हो जिसको बलवान हाथी ही खींच पाता है. पटरी से उतरे इंजन को बड़ा क्रेन ही उठाकर सही जगह रखता है. वैसे ही आज इस संसार की समस्याओं का निवारण करने के लिए प्रखर प्रतिभाओं की आवश्यकता होती है. ऐसे प्रतिभावान जो शक्तिपुंज हों ताकि आदर्शवादियों में वे उमंग ला सकें, उन्हें वे एक सूत्र में बांधें व कहीं अगर कुछ गलत हो रहा हो तो उसके खिलाफ मोर्चा निकालें. आज समय की यही मांग है.

समस्या तो इस बात की है कि आजकी प्रतिभाएं खुद को कमतर आंक रहीं हैं. अपने अंदर की शक्तियों को वे देखना ही नहीं चाहतीं.

आए दिन वे अपनी विफलता का दोष खुदके बजाए परिस्थितियों को देते नज़र आतें हैं. हमें ये समझना चाहिए कि दिक्कत हमारे संसार में नहीं बल्कि हमारी खुद की है. क्योंकि अगर इंसान चाहे तो खराब हालातों में भी अपना काम बना सकता है. ये सिर्फ व्यक्ति की इच्छा पर निर्भर करता है कि वो अपने आपको दुर्गति के पथ पर धकेले या प्रगति कर शिखर तक खुद को आगे बढ़ाता जाए.

ज्ञात हो, हर छोटे से परमाणु में भरपूर शक्ति होती है. अगर उसके विस्फोट का पता लगाएं तो प्रतीत होगा कि कैसे ‘कुछ न’ दिखने वाले में ‘सब कुछ’ स्तर की शक्ति विद्यमान होती है. हमारे अन्दर परमाणु शक्ति है. हमें अपनी शक्तियों पर भरोसा करना चाहिए व अपनी शक्तियों को सीमित नहीं समझना चाहिए. अक्सर देखा गया है कि जिनके दिलों में जिंदगी में कुछ कर गुज़रने का माद्दा रहता है, वे ऐसे बड़े कारनामें कर दिखाते हैं जिनके बारे में उनके साथी भी सोच नहीं सकते थे. ऐसे लोग बाहर से हमारी और आपकी तरह ही नज़र आते हैं. लेकिन आम आदमी से जो उनमें अंतर है, उसकी परख किसी दूसरे शख्स ने नहीं बल्कि उन्होंने खुद की. अपने अंदर के साहस को जुटाने में, हिम्मत बढ़ाने में, पराक्रम दिखाने व जो अनुचित है उससे लड़ पड़ने में ऐसा कुछ भी नहीं है जिसे असंभव तो क्या, कठिन भी माना जा सके.

प्रगति का बीज हमारे भीतर ही होता है, बाहर तो उसका परिणाम नज़र आता है. हैरानी की बात है कि अपने पूरे जीवनकाल में मनुष्य अपनी संपूर्ण ताकत का इस्तेमाल नहीं कर पाता. अगर हम अपने आत्मनिर्माण में जुट जाएं, बुरी आदतों को कूड़े-करकट की भांति बाहर फेंक सकें, अपने द्रष्टिकोण में मानवीय गरिमा के अनुसार गरिमा ला सकें, तो कुछ भी मुमकिन है. ऐसा करके मनुष्य हर असंभव सी लगने वाली चीज़ को संभव बना सकेगा.

हमें ये याद रखना चाहिए कि हमारे अन्दर परमाणु शक्ति है. सफलता प्राप्त करने के लिए हमें दूसरों की राय लेने की ज़रूरत नहीं. अगर मनुष्य अपने कार्य करने की समझ को विकसित करता चले, अधिक बड़ी ज़िम्मेदारी उठाता चले और उन्हें पूरी भी करते चले तो हमें समझना चाहिए कि इसी विकसित प्रबंध शक्ति के बल पर ही वो जहाँ भी रहेगा, सरताज बना रहेगा. अंततः यही सबसे बड़ी दैवी विभूति है, जो मनुष्य को साधारण से असाधारण की ओर ले जाती है.

हमारे शरीर में एक अद्भुत व्यवस्था है, परमाणु शक्ति है. हमारे इस शरीर में ही सारा विराट समाया हुआ है. अंतर्मुखी होकर ही हम जान सकते हैं कि अंतस का एक मार्ग है, एक विश्वास है, यहां एक नया अध्याय खुल सकता है. हमें जगना होगा और अपने अंदर की छुपी बहुत सी शक्तियों को जगाना होगा. खुद से समझौता करके भी क्या जीना कहलाता है? हमें ये ध्यान करना चाहिए कि हम ये क्या कर रहें हैं? और जो कुछ भी हम कर रहें हैं उसका क्या लाभ है? हमारे अंदर एक ऊर्जा है, परमाणु शक्ति है इसीलिए उसे रोकें नहीं बल्कि इस ऊर्जा से अपने अंदर के प्रकाश को जलाने का प्रयास करें.

Devansh Tripathi

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