ये क्या हो रहा है भाई, ये क्या हो रहा है.
हर बात में हिंदु मुस्लिम एक दुसरे पर तलवार तानना कब छोडेगे.
ऐसा लगता है मानो भारत में खुद एक छोटा प्रांत बन गया है, जहा अल्पसंख्यक रहते है. जो अपने हिंदु भाइयों का विरोध करने हेतु धर्मं का सहारा लेते है.
चलो मान लेते है की जो सत्ता में होता है उसकी बातो का विरोध करके अपनी राजीतिक रोटिया सेकने से बाज़ नहीं आते है नेता.
पर यह कितना सही है की हर बात का बिना अच्छी तरह जाने ही बिरोध किया जाये.
२१ जून को विश्व योग दिवस है. इस दिन महाराष्ट्र में सभी स्कूल और कालेजों में योग दिवस मनाया जाएगा. इसका विरोध मुस्लिम और इसाई संगठन प्रदर्शित कर रहे है.
विरोध क्यों ?
मुस्लिम और इसाई संगठन का कहना है कि उनके धर्मं में उनके इष्ट के अलावा किसी के सामने सर नहीं झुकाते.
योग में सूर्य नमस्कार करते वक़्त उनको सूरज के सामने नतमस्तक होना पड़ेगा.
कुछ दुसरे योग क्रियाओ में ॐ जैसे मंत्र जाप करने होते है. जबकी उनके धर्मं में मंत्र जाप की अनुमति नहीं है.
और तो और योग शुरू होने से पहले वंदेमातरम् भी गाना पड़ेगा. जो कि अल्पसंख्यकों को यह गवारा नहीं.
योग दिवस अनिवार्य क्यों ?
दीर्घकाल स्वस्थ रहने के लिए योग सबसे उपयुक्त व्यायाम है.
जीवन में जीतनी जल्दी योग करना शुरू करे उतना ही अच्छा असर शारीर एवं दिमाग पर पड़ता है.
यह एक बड़ा कारण है योग दिवस मनाने का.
स्कूलों और कालेजों में सभी धर्मं के बच्चे विद्या ग्रहण करने आते है. विद्या के सामने सभी धर्म एक समान होते है. अगर विद्या के आंगन में मस्जिद, मंदिर और चर्च निर्माण हो गए तो विद्या का उपयोग देश को बांट देगा.
बच्चों को शारीरिक और मानसिक सक्षम बनने के लिए योग दिवस अनिवार्य किया गया है.
और हिन्दुस्तान में कई विरोधी देश निर्माण ना हो इस लिए भी स्कूलों के बच्चो को भाईचारा एक धर्मं का ज्ञान दिया जाएगा.
अल्पसंख्यक के आड़ में कट्टर संगठन करते है राजनीति
आबादी को देखते हुए, बरसो से हिंदुस्तान में रह रहे अल्पसंख्यक अधिक हो गए है.
राजनीति के गलियारों से जो लोग दूर है, उनको योग दिवस मानाने से कोई ख़ास एतराज़ नहीं है.
अल्पसंख्यक अपने हिंदु पडोसी के साथ एक प्यार और भाईचारे से ही रहता है. दंगे तो तब होते है जब कुछ चन्द राजनीतिक लोग अपने फायदे के लिए किसी छोटी सी बात का बतंगङ बना देते है.
वैसे कोई घर नहीं जहा लड़ाई झगडे ना हो. मगर इसी के फायदे कट्टर वादी संगठन लेते है.
भारत में सुबह के समय कई गार्डनस में हिंदु के साथ अन्य धर्मं के लोग योग करते मिलेंगे.
जिनको योग से फायदे हुए है, उनको केवल योग एक व्यायाम लगता है. ख़ास करके सूर्य नमस्कार एक ऐसा योग है, जिसमे सर से लेकर पाव की उंगलियों तक शरीर की नस नस जागृक होती है.
ऐसे में यह कट्टर संगठन धर्मवाद के नाम पर देश के स्वस्थ से खिलवाड़ करता नजर आ रहा है.
रही बात मंत्र और किसी के सामने नतमस्तक ना होने की, तो सबसे बड़ा उदाहरण मरियम सिद्दकी है.
हालही में मुंबई की मरियम सिद्दकी ने गीता क्विज़ जीता. उसने कहा कि “गीता इसलिए पढ़ी क्योंकि मैं अपने मां बाप को इसका मतलब बताना चाहती थी, राजनीति मेरा मक़सद नहीं है.”
अब बताइये जब यह लड़की गीता पढ़ सकती है और धर्मवाद करने वाले समाज को आइना दिखा सकती है तो क्यों नहीं अपना नजरिया बदलते है यह समाज के ठेकेदार.
हमेशा कौम और धर्म के नाम पर अपनी राजनीति के झंडे गाड़ने वाले ये राजनेता आखिर कब तक लोगो को गुमराह करते रहेंगे.
राजनीत अपनी जगह और जनहीत अपनी जगह होना ही चाहिए. इस लिए देश की जनता को मुद्दों को समझने की आदत डालनी होगी. दिखावा और हवा करने वालों से कोई आस नहीं रखनी चाहिए.