प्रकृति से दो-दो हाथ करने को इंसान तैयार हो चुका है|
कुछ साल पहले तक खबरें आती थीं कि जल्द ही साइंस ऐसी तरक्की कर पाएगी कि बच्चे पैदा करने के लिए पुरुष की आवश्यकता नहीं होगी, केवल उसके शुक्राणुओं से काम चल जाएगा| अभी वही बात हज़म नहीं हुई कि अब वैज्ञानिकों ने ऐसी तकनीक विकसित कर ली है जिस से कि माँ की भी ज़रुरत नहीं रहेगी!
जी हाँ, टोक्यो में रिसर्चकर्ताओं ने एक नयी तकनीक का ईजाद किया है जिसका नाम है, इ यू ऍफ़ ऑय यानी कि एक्सट्रायूटीरिन फीटल इन्क्यूबेशन|
इस के ज़रिये उन्होंने बकरी के भ्रूण को माँ के शरीर से बाहर एक इनक्यूबेटर में विकसित कर डाला है! उस इनक्यूबेटर का तापमान, उस में भरी हुई तरल वस्तु जिस में की पूर्ण रूप से विकसित होने तक भ्रूण तैरता है और सारा पर्यावरण, माँ के गर्भ जैसा ही है, सिर्फ वह माँ का गर्भ नहीं है!
टेम्पल यूनिवर्सिटी के मेडिसिन स्कूल में फिजियोलॉजी और पीडियाट्रिक्स के प्रोफ़ेसर थॉमस शैफ़ेर ने तीस साल पहले ही एक लिक्विड वेंटिलेशन की तकनीक विकसित कर ली थी जो अब भ्रूण को निश्चित और आवश्यक मात्रा में ऑक्सीजन पहुंचने के काम आएगी जिस से की भ्रूण के फेफड़ों का माँ के गर्भ के बाहर भी सही विकास हो सके|
इस तकनीक का फिलहाल इस्तेमाल किया जा रहा है समय से पूर्व पैदा हुए नवजात शिशुओं में पाये जाने वाले दोषों को ठीक करने के लिए| लेकिन यही तकनीक अब शोधकर्ताओं के काम आ रही है जिस से की वो यह पता लगा रहे हैं कि अगर भ्रूण का गर्भ से बाहर एक इनक्यूबेटर में विकास किया जाए तो क्या उसके फेफड़े ठीक से विकसित हो पाएंगे और अभी तक के नतीजे उत्साहजनक हैं|
पेनसिलवेनिया यूनिवर्सिटी में सेंटर फॉर बायोएथिक्स के डायरेक्टर आर्थर एल कपलान का मानना है कि आने वाले दिनों में हम सभी बच्चों की जान बचा पाएंगे जिन में गर्भावस्था के पन्द्रवें-सोलवें हफ़्ते में समस्याएं पैदा हो जाती हैं| साइंस की इन्हीं नयी खोजों की मदद से, अगर माँ बच्चे को गर्भ में धारण नहीं करना चाहती, भ्रूण को इनक्यूबेटर में ही बड़ा किया जाएगा और यह सुनिश्चित किया जाएगा की नवजात शिशु सेहतमंद हो और उसे कोई बीमारी न हो|
लेकिन क्या यह सही है? क्या प्रकृति के साथ यूँ खेलना हमारे भविष्य के साथ खिलवाड़ करना नहीं है? माना की अभी वक़्त है इन शोधों का वास्तविक रूप लेने में पर क्यों न हम कहीं एक लक्ष्मण रेखा खींच लें? एक इनक्यूबेटर के ज़रिये पैदा हुए बच्चे का माँ से क्या रिश्ता बन पायेगा, इसकी तो कल्पना भी नहीं की जा सकती|
आशा है की वैज्ञानिक मानवता कि भलाई के लिए सिर्फ वही करें जिस से की जीवन बेहतर हो| ज़िन्दगी और मौत की चाबी अपने हाथ में न लें!
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