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जो जीता वो सिकंदर नहीं पोरस था !

पोरस

ये बेहद अजीब बात है कि लोग कहते है जो जीता वो सिकंदर, बल्कि जो जीता वो पोरस था।

ये कोई कहानी नहीं बल्कि इतिहास के पन्नों में दर्ज वो सच्चाई है जो कही दब गई है। बात करीब 2000 वर्ष पुरानी है, तब पूरे भारत में सबसे सर्व-शक्तिशाली सम्राज्य मगध हुआ करता था।

इतिहास के पन्नों को लेकर ग्रीस के प्रभाव से लिखी गई पश्चिम के इतिहास की किताबों में बताया जाता है कि सिकंदर को पोरस के साथ युद्ध में जीत हासिल हुई थी और यह बात तो आप-हम बखूबी जानते है कि हम ईरानी और और चीनी इतिहास के नजरिये को भी गलत नहीं ठहरा सकते।

पोरस

ग्रीस के प्रभाव से लिखी गई पश्चिम के इतिहास की किताबों में साफ तौर पर यह लिखा गया है कि सिकंदर ने पोरस को हरा दिया था। लेकिन अगर जीत सिकंदर की हुई तो वह अपनी जीत के बाद मगध क्यों नहीं गया। इस बात का जवाब ऐतिहासिक किताब में नहीं किया गया है। कहीं ऐसा तो नहीं कि इस किताब के लिखने वाले ग्रीस यूनानियों ने सिकंदर की  ऐसा तो नहीं कि इस किताब को लिखने वाले ग्रीस यूनानियों ने सिकंदर की हार तो पोरस की हार बताकर पेश किया था। अब इस बात का खुलासा तो केवल ईरानी, चीनी विवरण और भारतीय इतिहास के विवरणों को पढ़ने के बाद ही लगाया जा सकता है। हालांकि अब आप जानना चाहेंगे कि आरखिर इस युद्ध में सिकंदर और पोरस के बीच युद्ध कब, कहां, क्यों, कैसे और किसलिये हुआ था ऐर अगर इस युद्ध में सिकंदर नहीं जीता और पोरस नहीं हारा, तो सिकंदर की जीत कब और किसने दर्ज की।

सिकंदर ने अपने पिता की की मृत्यु के पश्चात् अपने सौतेले व चचेरे भाइयों का कत्ल कर दिया और यूनान के मेसेडोनिया के सिंघासन पर अपनी जात दर्ज कर बैठ गया। अब वह पूरे विश्व को जीतना चाहता था। अपनी इस महत्वाकांक्षा के कारण वह विश्व पर विजय प्राप्त करने के सफर पर निकल दिया।  सिकंदर ने भारत पर पहला हमला तब किया जब वह ईरान से आगे बढ़ा और वहां उसका सामना भारतीय सीमा पर बसे छोटे छोटे राज्यों से हुआ। भीरत की सीमा में पहुचंते ही पहाड़ी सीमाओं पर भारत के अपेक्षाकृत छोटे राज्यों अश्वायन एवं अश्वकायन की वीर सेनाओं ने किनात, स्वात, बुनेर, पेशावर आदि में सिकंदर की सेनाओं का डटकर सामना किया। अपने सामने इतनी मुश्किलें देखते हुए उसने अपने चलाक दिमाग का प्रयोग किया और मतस्यराज के सामने संधि का नाटक करके उन पर रातो-रात हमला कर दिया। इतना ही नहीं उसने राज्य की राजमाता, बच्चों सहित पूरे राज्य को तलवार से काट डाला। सिकंदर ने अपनी जीत के शुरूआती दौर में हर राज्य में इसी तरह की नीति अपनाई। मित्रता संधि की आड़ में अचानक आक्रमण कर कई राज्यों को अपने अधीन ओर अपना बंधक बना लिया

किस्सा पोरस की जीत का

सिकंदर ने पोरस के यहां भी अपने धूर्त दिमाग का इस्तेमाल करते हुए पहले पोरस को समर्पण करने का संदेश भिजवाया। ईरान लेखकों के मुताबिक सिकंदर के धुर्तपन के किस्सें-कहानियां सुनने के बाद भी गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी ने सिकंदर से लड़ने के बजाय उसका भव्य स्वागत किया और ऐसा करते भी क्यों ना। उस समय तक राजा आम्भी की मदद करने वाला कोई नहीं बचा था। वह सिकंदर से बहुत नफरत करते थे, लेकिन उनके पास सिकंदर से लड़ने के लिए परिपूर्ण समर्थन नहीं था।

यहां से शुरू हुई एक और एक और एक ग्यारह की कहानी, और इस कहानी में ग्यारह की जोड़ा बने थे गांधार-तक्षशिला के राजा आम्भी और पोरस। इतिहास के मुताबिक राजा आम्भी ने पोरस के खिलाफ सिकंदर की गुप्त रूप से सहायता की थी। सिकंदर ने पोरस के पास एक संदेश भिजवाया जिसमें उसने पोरस के संमक्ष समर्पण करने की बात लिखी था, लेकिन पोरस एक महान योद्धा था। उसने सिकंदर की गुलामी और अधीनता के आगे युद्ध को महत्वता देते हुए युद्ध की तैयारी शुरू कर दी।

पोरस

इस दौरान जब सिकंदर हिन्दुस्तान आया और जेहलम जिसे अब झेलम के नाम से जाना जाता है, वहां पोरस के साथ उसका संघर्ष शुरू हुआ। उस दौरान पोरस को खुखरायनों का भरपूर तौर पर समर्थन मिला। इस तरह पोरस, जो स्वयं सभरवाल उपजाति का था और खुखरायन जाति समूह का एक हिस्सा था, उनका शक्तिशाली नेता बन गया।

सिकंदर जानता था कि सिंधु और झेलम को पार किये बिना पोरस के राज्य में धुसना नामुमकिन था। राजा पोरस अपने क्षेत्र की प्राकृतिक स्थिति, भूगोल और झेलम नदी की प्राकृति से अच्छी तरह वाकिफ थे। इतिहास पर लिखित ग्रीक की किताब ‘Battle of the Hydaspes’ के मुताबिक यह युद्ध मई 326 ईसा पूर्व में हुआ था। इस युद्ध में सिकंदर की सेना में 50 हजार पैदल सैनिक और करीब 7 हजार घुड़सवार थे। तो वहीं दूसरी तरफ पोरस की सेना में 50 हजार पैदल सैनिक, 4 हजार घुड़सवार , 4 हजार रथ और 130 हाथी शामिल थे। सिकंदर अपने चुने हुए 11 हजार आम्भी सैनिकों के साथ यूनानी सौनिकों को लेकर झेलम की ओर युद्ध के लिए चल दिया। सिकंदर ने झेलम नदी को पार करने के लिए आम्भी की सेना का इस्तेमाल किय़ा। इसके बाद वह अपनी शक्तिशाली जगसेना के साथ यवनि सेना पर टूट पड़े।

पोरस की हस्ती सेना ने युनानियों का जिस भयंकर रूप से संहार किया था  उससे सिकंदर और सैनिक भयभीत हो गए। इस युद्ध में पहले दिन ही सिकंदर को पोरस की सेना से मुंह की खानी पड़ी । यवनी सरदारों के भयाक्रांत होने के बावजूद सिकंदर अपने हठ पर अड़ा रहा और अपनी विशिष्ठ अंगरक्षक एंव अंत: प्रतिरक्षा टुकड़ी को लेकर वो बीच युद्ध क्षेत्र में घुस गया। कोई भी भारतीय सेनापति हाथियों पर होने के कारण उन तक कोई खतरा नहीं हो सकता था, फिर राजा की तो बात ही दूर है। राजा पुरू के भाई अमर ने सिकंदर के घोड़े बुकफाइलस को अपने भाले से मार डाला और सिकंदर को जमीन पर गिरा कर घायल कर दिया। ये वो नजारा था, जो युनानी सेना ने अपने पूरे युद्धकाल में कभी नहीं देखा था।

सिकंदर जमीन पर गिरा पड़ा था और सामने राजा पुरू हाथ में तलवार लिये खड़े थे। अब नजारा देखने वालों का यही मानना था कि सिकंदर बस पल भर का मेहमान है। कि तभी एकाएक राजा पुरू ठिठक गये। यह कोई डर नहीं था, बल्कि यह आर्य राजा का क्षात्र धर्म था, वो किसी निहत्थे पर वार नहीं करना चाहते थे। पारस का यह धर्म पालन ही उनके जीवन काल पर भारी पड़ गया। पारस कुछ समझ पाते या कुछ कर पाते तब तक सिकंदर के अंगरक्षक उसे वहां से उठाकर ले गए और वो सिकंदर को बचाने में कामयाब हो गए।

सिकंदर की सेना का मनोबल भी इस युद्ध के बाद टूट कर बिखर गया था, जिसके चलते उन्होंने इसके बाद आगे की विश्व विजेता जंग पर जाने से इंकार कर दिया। सिकंदर की सेना अब अपने राज्यल में वापसी करना चाहती थी। ऐसे में सिकंदर और उसकी सेना सिंधु नदी के मुहाने पर पहुंची और घर की ओर जाने के लिए पश्चिम की ओर मुड़ी। सिकंदर जानता था अब उसकी सेना उसका ही प्रतिरोध करेगी इसलिए अपनी सेना के प्रतिरोध से बचने के लिए उसने सेना को नए रास्ते से वापस भेजा और खुद के लिए सिंधु नदी का रास्ता चुना, जोकि छोटा और सुरक्षित था।

गौरतलब है कि लड़ाई के दौरान सिकंदर की सनक इस कदर बढ़ गई थी कि वो अपनी सनक में बहुत अंदर तक घुस गया, जहां उसकी पलटन को भारी क्षति उठानी पड़ी। पहले ही भारी जान-माल की हानि उछाकर यूनानी सेनापति अब समझ गए थे कि अगर युद्ध और चला तो सारे यवनी यहीं खत्म हो जायेंगे। युद्ध में मिले इन परिणामों के बाद अब सिकंदर को वहां से भाग जाना ही ठीक लगने लगा, लेकिन वो उस रास्ते से वापस नहीं भाग पाया जहां से आया था। सिकंदर अपनी हार से बचने के लिए उस दौरान जिस रास्ते से भागा उसे आज हरियाणा के जाट प्रदेश के नाम से जाना जाता है। इस रास्ते से जाते हुए सिकंदर पर एक जाट सैनिक ने बरछा फेक कर वार किया, जो उसके वक्ष कवच को बींधता हुआ पार हो गया। इस हमले में सिकंदर बुरी तरह से घायल हो गया, लेकिन मरा नहीं। इसके कुछ समय बाद जाट प्रदेश की पश्चिमी सीमा गांधार में जाकर उसके प्राण पखेरू हो गए।

सिकंदर को लेकर कई तरह की कहावते है जैसे ‘जो जीता वही सिकंदर’ आदि लेकिन सिकंदर के जीवन काल का ये युद्ध इस काहावत को मिथ्या करता सार्थक नज़र आता है। इस युद्ध ने इस कहावत के मायने ही बदल दिये ‘जो जीता वो सिकंदर नहीं पोरस था’।

इसके अलावासिकंदर को ईरानी कृति के ‘शाहनामा’ ने भी महज एक विदेशी क्रुर राजकुमार माना है महान नहीं।

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