भारत देश एक समय में सोने की चिड़िया कहलाता था.
इस चिड़िया का फायदा कई बाजों ने भी उठाया और देश को लहूलुहान कर के चले गए.
वो बाज़ तो विदेशी थे किंतु अब अपने ही देश में कातिल बाज़ों की कमी नहीं जो देश को बर्बाद करके खुद के घर और जीवन को एशों आराम से लबालब कर रहे है.
भारतीय खजाना ब्रिटिश, मुग़ल, पोर्तुगीस जैसे अनेक शत्रुओं ने लूट ले गए. जो कुछ बचा था उसे सरकार ने जप्त कराया और जो खजाना अभी तक नहीं मिला, जो देश को कुछ हद तक सोने की चिड़िया की याद दिलाती है.
इसी बहाने वर्तमान में हम चाहे जैसे भी हों, स्थितियां-परिस्थितियां कैसी भी हों पर हम अभी भी अपने पुराने अतीत को बड़े गर्व से याद कर उसका बखान करते नहीं थकते कि हमारा देश कभी सोने की चिड़िया कहलाता था.
कहा है ऐसा खजाना ?
कृष्णा नदी खजाना
भारत में आंध्र प्रदेश के गोलकुंडा, तमिलनाडु के कोल्लूर, मध्य प्रदेश के पन्ना तथा बुंदर में हीरे की खाने है और ये हीरे विश्व भर में प्रसिद्ध है.
कोहिनूर भी कृष्णा नदी से ही निकला था ऐसा कहना है, जिसे अब ब्रिटिश अपनी जायदाद कहता है. इसी कृष्णा नदी के गोलकुंडा से 185 कैरेट का दरिया-ए नूर हीरा ईरान गया था. १६५० में इस खान से ७८७कैरेट का हीरा निकला था जो कोहिनूर से ६ गुना भारी था और यह मिले हीरो को ग्रेट मुग़ल का हीरा कहा गया था. 1665 में फ्रांस के जवाहरात के व्यापारी ने इसे अपने समय का सबसे बड़ा रोजकट हीरा बताया था. परंतु यह अभी कहा है किसी को नहीं पता.
ऐसे नजाने कितने ही हीरे गुमनामी में शामिल हो गए है. बताया तो ये भी जाता है की कृष्णा नदी के पट्टे पर काफी अनमोल हीरे आज भी है.
चारमीनार सुरंग में खजाना
आंध्र प्रदेश के सुल्तान मुहम्मद कुली कुतुब शाह ने गोलकुंडा किले और चारमीनार के बीच 15 फुट चौड़ी और 30 फुट ऊंची भूमिगत सुरंग बनवाई. जिसमे शाही परिवार ने अपना शाही खजाना छुपाया है ऐसा लोगों का मानना है. सुरंग को मुश्किल वक्त पर जान बचाने के लिए बनाया गया था लेकिन बाद में इसका इस्तेमाल खजाने को छुपाने के लिए किया जाने लगा था.
निजाम मीर ओसमान अली ने १९३६ में यह खजाना निकालने के लिए नक्शा बनाया था लेकिन खुदाई नहीं की गई.
जयगढ़ खजाना
जयपुर के नजदीक बने जयगढ़ किले के खजाने की बड़ी ही रोचक कहानी है. मान सिंह अकबर का सेनापति था. ऐसा कहा जाता है कि करीब 1580 में मान सिंह ने अफगानिस्तान को जीत लिया था. वहां से वह मुहम्मद गजनी के खजाने को लेकर भारत तो आ गए लेकिन इस बारे में उन्होंने अकबर को नहीं बताया. इस खजाने को उन्होंने जयगढ़ के किले में दफन कर दिया. माना जाता है कि खजाने को किले के अंदर मौजूद अंडरग्राउंड टंकियों में छुपा दिया गया था. इमरजेंसी के दौरान इंदिरा गांधी भी इस खजाने की तलाश में थीं और सबसे मजेदार बात है कि खजाना मिलने के पहले ही पाकिस्तान के प्रधानमंत्री ने इसमें हिस्सेदारी मांग ली थी.
अगस्त, 1976 में भारत सरकार को पड़ोसी देश के तत्कालीन प्रधानमंत्री जुल्फिकार अली भुट्टो का एक पत्र लिखा और कहा ‘आपके यहां खजाने की खोज का काम आगे बढ़ रहा है और मैं आपको याद दिलाना चाहता हूं कि आप इस दौरान मिली संपत्ति के वाजिब हिस्से पर पाकिस्तान के दावे का खयाल रखेंगी.’ दाओं के मुताबिक़ महीनो खुदाई चली और ट्रकों में भर भर के समान ले जाए गए.
किंतु उस खजाने का क्या हुवा किसी को कुछ खबर नहीं. लोगों का यह भी मानना है की कुछ खजाना अभी भी किले के अंदर होगा.
राजगीर का खजाना
बिहार के जगीर की सोनगुफा में बेशुमार सोना दफन होने की बात वहा के स्थानिक करते है.
भारतीय पुरातत्व विभाग के मुताबिक ये गुफाएं तीसरी-चौथी शताब्दी की बनी हुई है. रथ के पहियों और शंख भाषा में लिखे कुछ अंश मिले है जिसे खजाने की चाबी कहा जा रहा है. खजाना अजातशत्रु को ना मिल जाए इसलिए बिम्बिसार ने खजाने को गुफाओं की भूलभुलैया में दबा दिया. बौद्ध और जैन भक्तों ने इस गुंफा को ध्यान का केंद्र बाद में बनाया.
किंतु अंग्रेजों ने खजाने की चाह में इस गुंफा को तोप से उड़ाने की नाकामयाब कोशिश की. लेकिन खजाना कहा है ये अभी किसी को पता नहीं.
भारत में ऐसे कई जगह है जहा पर खजाना होने की आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता. इन खजानो को आज तक कोई निकाला है भी या नहीं किसी को पता नहीं. कुछ लोग ऐसे खजानों की चाह में अपनी जान तक गवा बैठे है. किंतु खजाने के बारें में ना तो पुरातन विभाग को अधिक पता है, ना तो सरकार को देश के खजाने की चिंता है.
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