आप को यह जानकर आश्चर्य होगा कि मुस्लिम देश ईरान की राजधानी तेहरान में आज तक कोई सुन्नी मस्जिद नहीं है.
ऐसा नहीं है कि वहां मस्जिद बनाने के लिए जगह की कोई कमी है या सुन्नी मस्जिद बनाने को लेकर कोई प्रयास नहीं हुआ है. प्रयास तो बहुत हुए और आज भी जारी हैं लेकिन तमाम जद्दोजहद के बाद भी ईरान अपनी राजधानी में किसी सुन्नी मस्जिद के लिए जगह देने के लिए तैयार नहीं है.
ईरान दुनिया के उन गिने चुने देशों में हैं, जो शिया बहुल है. ईरान में शिया वहां की कुल आबादी का करीब 95 प्रतिशत हैं. ईरान का शासन शिया धर्मशास्त्रों के आधार पर चलता है.
दरअसल, वर्ष 1979 की शिया इस्लामी क्रांति के बाद ईरान में शियाओं में पुर्नजागरण प्रारम्भ हुआ.
अरब देशों में फैले शियाओं में भी इसका प्रभाव पड़ा. ईरान के नेतृत्व में हो रहे शिया पुर्नजागरण को सुन्नी मुस्लिम नेतृत्व ने चुनौती के रूप में देखा और इसकी प्रतिक्रिया में सुन्नी मुस्लिम देशों विशेषकर सउदी अरब ने अपने यहां से शिया विरोधी विचारधारा को बढ़ावा देना प्रारम्भ कर दिया. क्योंकि इस्लाम की जन्मभूमि सउदी अरब पर सुन्नी मुस्लिमों का बोलबाला है. अरब के सुल्तान वहाबी विचारधारा के प्रभाव में थे. वहाबी शियाओं को शिर्क या बहुदेववादी मानते हैं. इसलिए वहां शियाओं पर धार्मिक प्रतिबंध लगाए गए.
वर्ष 1979 की क्रांति के बाद मुस्लिम समुदाय दो खेमों में बंट गया.
सुन्नी देश सउदी अरब के नेतृत्व में तो शिया शासित देश ईरान के नेतृत्व में मुस्लिम जगत में अपना दबदबा बढ़ाने में लग गए.
अरब देशों ने अपने यहां जिन स्थानों पर शिया बहुसंख्यक थे उन्हें वहां राजनीतिक और आर्थिक क्षेत्र में कभी आगे नहीं आने दिया. मिस्र के पूर्व राष्ट्रपति होस्नी मुबारक का आरोप था कि शिया हमेशा अपने मुल्क देशों के बजाए ईरान के प्रति वफादार रहे हैं.
यह भी एक कारण था कि अरब के वहाबी सुन्नी चाहते थे कि शियाओं को सुन्नी मत में धर्मांतरित कर दिया जाए. जब सुन्नी बहुल अरब में शिया मुस्लमानों को सुन्नी मत में परिवर्तित करने के प्रयास शुरू हुए तो ईरान में भी इसकी प्रतिक्रिया हुई. वहां भी सुन्नी मुस्लिमों के धार्मिक अधिकारों को सीमित करने का सिलसिला शुरू हुआ.
जब अरब में शियाओं की धार्मिक संस्थाओं को प्रतिबंधित कर उनको गैर कानूनी घोषित किया जाने लगा तो विरोध में ईरान ने भी अपने यहां सुन्नी संस्थाओं पर रोक लगानी प्रारम्भ कर दी. राजधानी तेहरान में सुन्नी मुस्लिमों की करीब 10 लाख आबादी होने के बावजूद वहां कोई सुन्नी मस्जिद नहीं बनने दी.
यहां तक कि ईरान सरकार अपने मंत्रीमंडल में किसी सुन्नी को मंत्री भी नियुक्त नहीं करती है.
इस क्षेत्र में शिया और सुन्नी समुदायों के बीच दुश्मनी किस कदर हावी है इसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि ईरान की राजधानी तेहरान में मुठ्ठी भर ईसाई समुदाय के लिए चर्च तो है लेकिन सुन्नियों के लिए कोई मस्जिद नहीं है.
हालांकि काफी समय पहले राष्ट्रपति चुनाव अभियान के दौरान मोहम्मद खातमी ने वादा किया था कि जीतने पर वे सुन्नी मस्जिद बनवा देंगे लेकिन ऐसा कभी हुआ नही.
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