जी हाँ, इस समय जैसे आप चौंक रहें हैं, ये ख़बर सुनने के बाद ठीक ऐसे ही मेरे भी होश उड़ गए।
डिनर करते समय मेरे हाथ रुक गए और मैंने सोचा ये क्या हो रहा है। क्या इंसानों की कमी हो गई, जो अब बंदर भी चुनावी अखाड़े में उतर रहे हैं!
आपको मैं अब ज़्यादा परेशान किए बिना ही बता देती हूँ कि बिहार विधानसभा चुनाव की तारीख़ भी घोषित हो चुकी है।
एक दूसरे पर छींटाकशी करना तो नेताओं की पुरानी आदत है, लेकिन ये कौन जानता थी कि ये राजनेता इतने नीचे गिर जाएँगे कि एक-दूसरे को बंदर, भालू आदि कहने लगेंगे।
यही तो ख़ासियत है राज्य के चुनाव की। ख़ासतौर पर यूपी बिहार का चुनाव तो इस तरह तो शब्दों से भरा रहता है। अब कल की बात ले लीजिए हमारे बेहद प्रसिद्ध नेता अरे वही चारे घोटाले वाले, हाँ सही समझा आपने वही हम सब के प्रिय और चहेते नेताजी किसी चैनल का माइक पाते ही कुछ ऐसे बरसे, कुछ ऐसे बरसे कि हम जैसे लोगों को तो ग़लतफ़हमी ही हो गई कि इस बार चुनाव में इटरेंस्टिंग लोग उतर रहे हैं।
लालू जी ने रामविलास पासवान और जीतन राम माँझी को पेड़ से गिरा वो बंदर बताए कि वो सिर्फ़ उछल-कूद कर सकते है, लेकिन उन्हें कोई अपने पास नहीं रखेगा।
अब जब लालू में ये बयान दे ही दिया तो भला माँझी कैसे पीछे हटते। उन्होंने आव देखा न ताव और तुरंत बयानबाज़ी की कि जो बंदर होता है वही दूसरों को बंदर कहता है।
लो कर लो बात। यानी की लालू भी बंदर हुए।
अब आप ही बताइए मैं ग़लत कहाँ हुई ? हो गए न तीन बंदर। अभी तो न जाने कितने और बंदर , भालू, रीछ होंगे पता नहीं। बस देखते जाइए। ये बिहार चुनाव है यहाँ कुछ भी संभव है। दिल-दिमाग़ को परे रखकर बस चुनाव का आनंद उठाइए। जहाँ दिमाग़ लगाना शुरू करेंगे वहीं पलटी खाकर गिर जाएँगे आप।
ये राजनीति है, इसे समझने का जितना प्रयास करेंगे उतना ही उलझते जाएँगे। यहाँ कब दोस्त दुश्मन बन जाता है और दुश्मन दोस्त पता ही नहीं चलता। सब तो ठीक है, लेकिन अपने महान नेताओं से मैं तो यही कहूँगी कि सब करो, लेकिन किसी को बंदर, भालू न बोलो यार कंन्फ्युजन होता है।
समझा करें आप लोग।
कुछ लोग तो वोट देने की बात भी सोच चुके होंगे कि चलो इस बार बंदर को वोट देकर देखते हैं शायद कुछ अच्छा करे वो जीतने के बाद। समझा करो नेता साहब!