दिल्ली में हुए साल २०१२ निर्भाया कांड को अभी तक इंसाफ नहीं मिल पाया है. सभी को शुरुआत से ये उम्मीद थी की ये दुष्कर्म करने वाले अपराधियों को अदालत 5 से 6 महीने के बीच फांसी के फंदे पर लटका देगी लेकिन घटना के 5 साल 6 महीने बाद भी मुजरिम फांसी पर नहीं लटक पाए.
इस केस के मुख्य पुलिस अधिकारी का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट ने चारों दोषियों की पुनर्विचार याचिका खारिज कर दी है जिसके बाद आरोपियों के पास केवल एक ही विकल्प बचता है और वो है राष्ट्रपति के पास दया याचिका दायर करना यदि राष्ट्रपति भी दया याचिका खारिज कर देते हैं तो दोषियों को चार से पांच महीने के भीतर फांसी दे दी जाएगी. किसी भी मुजरिम को दया याचिका दायर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट से अधिकतम 90 दिन का समय मिलता है. इस समय के भीतर चारों अपराधियों को दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव के पास अपील करनी होगी, वहाँ से सरकार इनकी याचिका के साथ अपनी टिप्पणी लिखकर उपराज्यपाल के पास भेज देगी.
सुप्रीम कोर्ट ने कहा सही था निर्भाया का बयान
अब देखना ये होगा कि सरकार सजा को बरकरार रखती है या फिर उसे कम कर देती है. राष्ट्रपति चाहे तो दिल्ली सरकार से दोबारा इस विषय पर राय मांग सकते हैं. इसके बाद ही वह अपना अंतिम फैसला देते हैं.
फांसी की सजा बिल्कुल सही
जहा के तरफ दुनिया भर के सभी देश अपने न्यायालयों से मृत्युदंड को समाप्त कर रहे हैं, वहीसुप्रीम कोर्ट के जज ने इन सभी दलीलों और इसी आधार पर यहाँ भी मृत्युदंड समाप्त कर दिए जाने का तर्क नकारते हुए कहा कि इस देश में दंड सहिता (कानून की किताब) में मृत्युदंड है. न्यायालय द्वारा उचित समय अपराधों के लिए मृत्युदंड देना गैरकानूनी नहीं करार दिया जा सकता.
अब केवल दो ही विकल्प बचते हैं
पहला जो की हम आपको बता चुके हैं यानी राष्ट्रपति दया याचिका. बता दे की इसके अलावा चारों अपराधियों के पास एक विकल्प और है जिसे क्यूरेटिव कहा जाता है. इसमें चारों ही अपराधियों को क्यूरेटिव याचिका सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करनी होगी, जिसकी मंजूरी केवल वरिष्ठ वकील द्वारा ही मिलती है. सामान्य तौर पर क्यूरेटिव याचिका पर पांच न्यायाधीश सुनवाई करते हैं.
वारदात के बाद सुप्रीम कोर्ट ने कहा था की निर्भाया कांड से देश भर में सदमे की सुनामी आ गई थी. यहाँ तक की इस घटना ने पूरी तरह से सभ्यता के तानेबाने को नष्ट कर के रख दिया था. जस्टिस भानुमति ने अलग से फैसला लिखते हुए अभियुक्तों की फांसी पर मुहर लगाई थी.
न्यायपालिका का ये फैसला सुनकर निर्भाया की माँ का कहना था की उनका के बार फिर इस देश के न्यायालय पर विश्वास बहाल हुआ है. उनके मन में एक बार फिर न्याय की उम्मीद जागी है. साथ ही उनका कहना था की देश के प्रधानमंत्री को महिलाओं की सुरक्षा के लिए सख्त कदम उठाने चाहिए. और लोगों को अपनी बेटियों पर प्रतिबंध से ज्यादा अपने बेटों को समझाना चाहिए की औरत की इज्जत क्या होती है, शायद तभी इस देश में हर महिला खुद को सुरक्षित महसूस करेगी.
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