निखिल गम्पा – सुबह- सुबह भगवान के दर्शन करना और उनके चरणों में फूल चढ़ाना आमतौर पर सभी की दिनचर्या में शुमार होता है.
किसी स्पेशल दिन पर हम भगवान को फूलों की टोकरी तक भेंट करते हैं. हमारे चढ़ाए हुए फूल अगले दिन कचरे में फेंक दिए जाते हैं या फिर नदी में प्रवाहित कर दिए जाते हैं. क्या कभी आपने सोचा है कि भगवान् के चरणों में चढ़ाए ये फूल भी किसी की किस्मत बदल सकते हैं?
हायर एजुकेशन लेकर लोग विदेश में नौकरी करने के लिए भागते हैं.
जिन्हें विदेश जाना नसीब नहीं होता वो यहीं देश में ही कमाने के लिए अच्छी नौकरी की तलाश करते हैं. अक्सर लोग अच्छी पढ़ाई करके बेहतर नौकरी की तलाश में इधर उधर जाते हैं, लेकिन आज के युग का एक ऐसा लड़का भी है, जो हायर एजुकेशन के बाद करियर के लिए चुना कुछ अलग. टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंस से ग्रेजुएट निखिल गम्पा अपने स्टार्टअप ‘ग्रीन वेव’ नाम से एक ऐसी कामयाबी अपने नाम कर चुके हैं जो किसी को भी चौंका सकती है.
निखिल गम्पा ने जो किया और जो कर रहे हैं उसे सुनकर आपको हैरानी होगी.
मुंबई के रहने वाले निखिल ने दादर के फूल मार्किट को आते जाते कई बार देखा.
कैसे लोग वहां पर फूलों को बेचते हैं, लेकिन वही फूल जब भगवान् के चरणों में चढ़ जाते हैं तो दूसरे दिन उन्हें कचरे में फेंक दिया जाता है. उस फूल मार्किट से आईडिया लेकर निखिल ने एक तरकीब निकाली. निखिल ने अपने नए आईडिया से कचरे में फेंके गए फूलों से सुगंधित अगरबत्ती तो बनाई ही साथ ही कई गरीब महिलाओं को रोजगार भी मुहैया कराया.
वही बासी फूल जिन्हें मंदिर के कर्मचारी सुबह उठाकर कचरे में फेंक देते थे, उससे अगरबत्ती बनाकर निखिल ने बड़ा काम किया.
मंदिरों और तीर्थस्थलों के बाहर डस्टबीनों में जमा किए पूजा के बासी फूलों से निखिल गम्पा की कंपनी हर महीने लगभग साठ-सत्तर किलो अगरबत्तियां बना रही है. निखिल गम्पा ने सबसे पहले इस बारे में विशेषज्ञों से सम्पर्क किया और उनके सहयोग से मुम्बई में ‘ग्रीन वेव’ नाम से एक संस्था गठित की. फिर शुरू हुआ ‘ग्रीन वेव’ का पहला प्रबंधन कौशल. मुंबई के मंदिरों के आसपास डस्टबीन रखवा दिए गए. अगले दिन से ही मंदिरों का कचरा उन डस्टबीन तक पहुँचने लगा. सबसे पहले तो इससे कई लोगों को नौकरी मिल गई. भले ही वेतन कम था, लेकिन रोज़गार तो मिल गया.
निखिल की तरकीब काम आई.
संस्था से जुड़ी महिलाओं के जरिए डस्टबीन में पड़े फूल गम्पा के कार्यस्थल पर जमा करने के साथ ही सुखाए जाने लगे और फिर सूख जाने के बाद उन फूलों से अगरबत्तियां तैयार की जाने लगीं. इस कार्य में कई लोगों को रोजगार मिला और बासी फूलों से एक बार फिर मंदिर महक उठा.
निखिल का ये कदम हर युवा के लिए प्रेणना श्रोत है, जो जीवन में कुछ अलग करना चाहते हैं.
आज निखिल गम्पा की कंपनी में हर महीने लगभग साठ-सत्तर किलो अगरबत्तियां तैयार की जा रही हैं. इनकी सप्लाई मुंबई के मंदिरों में होती है. इस काम से कई फायदे हुए.
निखिल गम्पा इसीलिए कहते हैं कि सिर्फ नौकरी के लिए मत भागो. कुछ अच्छा सोचो और बड़ा करो. कुछ ऐसा करो, जिससे सिर्फ तुम्हें नहीं, बल्कि कई लोगों के घरों का चूल्हा जले.
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