यह बात सही है कि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता की मौत पहले ही हो चुकी थी.
लेकिन सरकार ने तत्काल उसकी पुष्टि नहीं की.
ऐसा करने के पीछे एक खास वजह थी.
सरकार ने जानबूझकर एआईएडीएमके नेता और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयराम जयललिता की मौत की खबर को दबाए रखा. क्योंकि एकाएक जयललिता की मौत की खबर बाहर आने से तमिलनाडु और आस पास के राज्यों में हालात बिगड़ने की आशंका थी.
बताते चलें कि छह बार तमिलनाडु की मुख्यमंत्री रहीं जयललिता 22 सितंबर से अपोलो हाॅस्पिटल में एडिमट थी. लेकिन 75 दिन के संघर्ष के बाद 68 साल की जयललिता का सोमवार को चेन्नई में निधन हो गया. केंद्र सरकार और राज्य सरकार को इसका पहले ही आभास हो गया था. राज्य और केंद्र का खुफिया विभाग चेन्नई के अपोलों अस्पताल के लगातार संपर्क में था.
रविवार रात जब दूसरी बार जयललिता को दिल का दौरा पड़ा तो उसी समय डाॅक्टरों को आभास हो गया था कि जयललिता का बचना बहुत मुश्किल है. सू़त्रों से मिली जानकारी के अनुसार सरकार की अस्पताल को हियादत थी कि जयललिता से संबंधित कोई जानकारी सार्वजनिक करने से पहले स्थानीय प्रशासन को भरोसे में लिया जाए.
ठीक ऐसा ही केंद्र सरकार ने तमिलनाडु सरकार से कहा था.
यही कारण था कि रविवार देर रात तमिलनाडु के राज्यपाल विद्या सागर राव ने जयललिता को दिल का दौरा पड़ने की खबर के बाद केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह से बात की. जिसके बाद केंद्र सरकार ने तमिलनाडु में अर्द्धसैनिक बलों की टुकड़ी भेजने का निर्णय किया. साथ ही केंद्र ने जरूरत पड़ने पर हवाई जहाज से ओर अधिक फोर्स भेजने का भी आश्वासन दिया.
ऐसा इसलिए किया क्योंकि तमिलनाडु की मुख्यमंत्री अपने समर्थकों में काफी लोकप्रिय थी. इसके साथ ही दक्षिण के राज्यों में अपने नेताओं के प्रति जो क्रेज़ है उसका अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जब सयुंक्त आन्ध्र प्रदेश के तत्कालीन मुख्यमंत्री वाई एस आर रेड्डी की हवाई दुर्घटना में मौत हो गई थी तो उस समय सैंकड़ों लोगों ने अपने नेता की मौत के गम में आत्महत्या कर ली थी.
ऐसा ही कुछ आशंका जयललिता के समर्थकों को लेकर भी है.
जयललिता को रविवार को दिल का दौरा पड़ने की खबर के बाद चेन्नई के अपोलो अस्पताल के बाहर भारी तादाद में उनके समर्थक जमा हो गए. तो वहीं उनके सैकड़ों समर्थक चेन्नई में सड़कों पर आ गए थे. पार्टी की महिला कार्यकर्ताओं ने पूरी रात अस्पताल के बाहर रो-रोकर गुजार दी.
कुछ जगह मारपीट भी हुई. उनके समर्थकों के बीच मातम पसर गया था. इन सब बातों को देखते हुए सरकार ने केवल राज्य जयललिता की मौत की खबर को पहले रोके रखा और बाद में धीरे धीरे करके टुकड़ों में जयललिता समर्थकों को दिया. ताकि उनको सदमें से बचाया जा सके.
इसका पता इस बात से भी चलता है कि एआईएडीएमके के सभी पार्टी विधायकों की अस्पताल में ही मीटिंग हुई उसमें पहले जयललिता के करीबी और पार्टी के वरिष्ठ नेता पनीरसेल्वम को नेता चुना गया उसके बाद देर रात करीब 12 बजे जयललिता की मौत की घोषणा की गई.
शाम को जयललिता की मौत की खबर न देकर देर रात को इसलिए दी गई ताकि लोगों अपने घरों को चले जाए, क्योंकि सरकार को आंशका थी कि खबर के बाद हिंसा फैलने से बेकसूर लोग भी इसकी चपेट में आ सकते थे.
इसको देखते हुए प्रशासन ने अपोलो अस्पताल के बाहर सुरक्षा बलों की भारी तैनाती की थी.
इसके साथ राज्य में भी सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई. समर्थकों की भारी तादाद को देखते हुए पुलिस-प्रशासन को अलर्ट पर रखा गया है. जयललिता की हालत के मद्देनजर केरल-तमिलनाडु सीमा पर सुरक्षा बढ़ा दी गई. प्रसिद्ध सबरीमाला मंदिर सहित केरल के विभिन्न स्थानों पर सुरक्षा बढ़ा दी गई है.
यही वजह थी प्रशासन ने जयललिता की मौत की खबर छुपाये रखी.
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