भारत को स्वतंत्रता दिलाने में कई वीरों ने अपनी जान की बाजी लगाई थी और कई नेताओं और जाने-माने चेहरों ने अपने दिमाग और ताकत से इस देश को अंग्रेजों के चंगुल से आजाद करवाया था। इन्हीं में से एक नाम था रफी अहमद किदवई का।
वैसे तो रफी अहमद किदवई स्वतंत्रता सेनानी थे लेकिन उन्हें सीमाओं का बंधन ना मानते हुए लोगों की मदद करने के लिए ज्यादा जाना जाता था। उनके लिए हमेशा मानवता सबसे ऊपर रही थी और इसी वजह से उन पर कई बार विरोधियों की मदद करने के भी आरोप लगे थे। पार्टी से ऊपर मानवता को समझने वाले रफी की नेहरू जी भी बहुत इज्जत करते थे।
एक बार कुछ ऐसा हुआ कि पूरी पार्टी विचलित हो गई और खुद नेहरूजी भी इस बात से परेशान हो गए थे।
क्या था मामला
मामला कुछ ये था कि रफी अहमद किदवई साहब ने अपनी पार्टी कांग्रेस के विरोध में जाकर निर्दलीय पार्टी के उम्मीदवार गोविंद सहाय की आर्थिक मदद की थी। गोविंद जी खुद नेहरूजी के काफी करीब थे लेकिन किसी कारणवश वो कांग्रेस के ही खिलाफ खड़े हो गए थे। वो और रफी अहमद किदवई साहब भी अच्छे दोस्त थे। चुनाव के लिए उन्होंने मदद मांगी और रफी अहमद किदवई साहब ने उसे पूरी कर दी। उनकी इस मदद से कांग्रेस पार्टी में भूचाल आ गया। अमूमन नेहरू जी खुद रफी साहब से कोई सवाल-जवाब नहीं किया करते थे लेकिन इस मामले को लेकर उन्हें भी रफी साहब को तलब करना पड़ा।
इस मामले में रफी अहमद किदवई साहब पर ये आरोप लगाया गया था कि उन्होंने पार्टी के नियमों के विरूद्ध जाकर काम किया है और इससे कांग्रेस को चुनावों में हार का सामना करना पड़ सकता था। नेहरू जी ने रफी साहब से पूछा तो उन्होंने जवाब दिया कि तो कुछ भी हुआ उससे मैं बहुत शर्मिंदा हूं, मांफी मांगता हूं। मैंने गोविंद सहाय जी से जितनी मदद का वायदा किया था उतनी मैं नहीं कर पाया। मैं आइंदा से पूरी मदद करने की कोशिश करूंगा। इतना कहकर रफी साहब बैठ गए और नेहरू जी इतना सुनकर मुस्कुराने लगे क्योंकि रफी साहब के दिल को वो खूब समझते थे।
दोस्तों, आजकल की राजनीति तो बिलकुल विपरीत है। इसमें हर एक नेता अपनी ही पार्टी के नेता की मदद नहीं करता तो विपक्षी पार्टी के नेता की क्या करेगा। यहां तो हर कोई बस अपनी ही जेबें भरने में लगा हुआ है।
क्या आपने खुद कभी ऐसा कोई मामला सुना या देखा है जिसमें किसी नेता ने सिर्फ अपनी दोस्ती या दरियादिली के लिए किसी विपक्षी नेता की मदद की हो, वो भी चुनाव में – नहीं ना। ऐसा होता भी नहीं है क्योंकि अब तो भ्रष्टाचार इतना ज्यादा है कि नेता लोग अपनी ही जेबें भरने से थकते नहीं हैं तो किसी और की मदद क्या करेंगें। आए दिन तो उन पर नए-नए घोटालों के आरोप लगते रहते हैं।
अगर आपने आज भी कहीं किसी नेता के बारे में ऐसा कोई किस्सा सुना है तो हमसे शेयर जरूर करें।
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