भारत को सीधे इसाई धर्म में परिवर्तन करना तो अंग्रेजों के लिए संभव नहीं था.
इसलिए इस काम को करने के लिए अंग्रेजों ने एक चाल चली कि क्यों ना यहाँ के विश्वास योग्य नेताओं को अंग्रेजी की पढाई करा दी जाए. क्योकि नेहरु तो खुद ब्रिटेन की पढ़ाई करके आये थे और भारत की ताकत एवं तासीर को नहीं समझते थे इसलिए अंग्रजों ने नेहरु का उपयोग किया था.
हमारे जवाहरलाल नेहरू तो वैसे भी लालच में थे कि मुझे ही प्रधानमंत्री बना दिया जाये और अगर ऐसा ना हो तो देश को आजादी भी ना मिले. जैसा कि हम पहले भी कई बार जिक्र कर चुके हैं कि सन 1946 में कांग्रेस अध्यक्ष पद के लिए चुनाव हुआ था और सभी ने सरदार पटेल के नाम पर सहमति जताई थी लेकिन फिर भी नेहरू ना जाने कैसे अध्यक्ष बन जाता है.
असल में नेहरू और अंग्रेज में एक बांड भरा गया था
अंग्रेज इतने चालू थे कि वह भारत को जाते-जाते बर्बाद करने की चाल चल रहे थे.
आजादी के बाद क्या कोई उनका व्यक्ति भारत की कमान संभाल सकता है, ऐसा अंग्रेज सोच रहे थे. तभी अंग्रेजों की नजर नेहरू पर गयी थी और अंग्रेजों ने यह शर्त रखी थी कि अगर नेहरू प्रधानमंत्री नहीं बनते हैं तो अंग्रेज भारत से नहीं जायेंगे. तभी चुनाव समिति को नजरअंदाज कर नेहरु को प्रधानमंत्री पद का दावेदार बना दिया गया था. ये भी नेहरू और अंग्रेज की चाल थी.
खुद आजादी वाले दिन महात्मा गांधी इतने नाराज थे कि वह आजादी के जश्न से दूर थे. गांधी जी समझ गये थे देश तो बस अंग्रेजों से आजाद हुआ है लेकिन अंग्रेजी सोच से यह देश आजाद नहीं हुआ है.
नेहरू और अंग्रेज की चाल – नेहरू जब प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने देश को अंग्रेजी की चाल पर ही चलाया. क्योकि नेहरू अंग्रेजी बुद्धि से काफी प्रभावित थे और इसीलिए अंग्रेजी शिक्षा नीति देश में लागू कराई गयी थी. जो लोग अंग्रेजी के ज्ञाता थे उनको आगे जगह दी गयी थी. आजादी के बाद विकास कैसा होगा तो नेहरु का जवाब होता था अंग्रेजों जैसा. हमारे शास्त्र और वेदों के विकास को भूला दिया गया और अंग्रेजी विकास को अपना लिया गया था.
तो नेहरू ने सच्चे भारतीय नेताओं को लगाया ठिकाने
देश के पहले प्रधानमंत्री नेहरू नहीं चाहते थे कि सुभाषचंद्र बोस कभी भारत लौट आयें क्योकि असल में आजादी का श्रेय नेहरु अपने ऊपर लेते थे जबकि दूसरे विश्व युद्ध के बाद अंग्रेज आजाद हिन्द फ़ौज की ताकत जान चुके थे और वह खुद देश छोड़कर जा रहे थे. नेहरु जानते थे कि एक बार कैसे भी कैसे बस अंग्रेज देश से चले जायें बाकी चुनाव तो हम ही करा लेंगे. अब अगर सुभाष जी वापस आते तो सारा राज खुल जाता इसलिए सुभाषचंद्र बोस को ठिकाने लगाया गया.
श्यामा प्रसाद मुखर्जी की हत्या कैसे हुई है, इस बात की जांच आजतक ना जाने क्यों नहीं हुई है?
जब इनकी हत्या हुई तो उस समय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू थे और इनको मुखर्जी से कड़ी टक्कर मिल रही थी.
नेहरू हमेशा ही सरदार पटेल से जलते रहते थे. सरदार पटेल ने कई अच्छी योजनाओं को लागू करना चाहते थे किन्तु नेहरू ने ऐसा इसलिए नहीं होने दिया था क्योकि वह अंग्रेजों को नाराज कर सकती थीं. एक तरह से नेहरू ने पटेल को साइड कर दिया था.
ये सब नेहरू और अंग्रेज की सांठ गाँठ का नतीजा था.
नेहरू और अंग्रेज – असल में नेहरू, एक अंग्रेज ही थे
सही बात तो यह है कि देश के पहले प्रधानमंत्री, एक तरह से अंग्रेज ही थे.
आपको लगता होगा कि आपको आजादी मिल गयी थी लेकिन नेहरू के ऐसे-ऐसे राज हैं जो आपकी आँखों से नींद उड़ा देंगे. नेहरू इंग्लैंड किससे मिलने जाते थे और क्यों जाते थे , इसकी जांच आप खुद कर लें और नेहरू को क्या बीमारी थी जिसकी वजह से उनकी मौत हुई है, आप इसकी जांच भी कर लें.
नेहरू और एडविना के संबंधों के बारें में एडविना की बेटी खुद लिखती हैं कि दोनों को एक दूसरे के बिना चैन नहीं मिलता था. बेशक दोनोंन में भावनात्मक सम्बन्ध थे किन्तु दोनों एक दूसरे के बिना रह नहीं पाते थे.
असल में नेहरू को लेकर अंग्रेजों ने बड़ी चल चली थी. आप 1947 के दस्तावेज निकालकर यह देखें कि क्या 47 के बाद भी कई अंग्रेजी कम्पनियां भारत में काम कर रही थीं और क्या भारत इंग्लैंड से चीजें खरीद रहा था तो आपके सामने पूरा सच आ जायेगा.
अंग्रेजों ने लाखों मासूम भारतीयों को मारा था और नेहरू आजादी के बाद इंग्लैंड छुट्टियाँ मनाने जाते थे. बाकी की चीजें आप खुद समझ ही सकते हैं.