एनडीटीवी चैनल जिस प्रकार सूचना एवं प्रसारण मंत्रालय के फैसले को लेकर राजनीति कर रहा है क्या वह दर्शकों को हकीकत बताने की जहमत उठाएगा.
एक दिन के प्रसारण पर सरकार द्वारा लगाए गए बैन को लेकर एनडीटीवी जिस प्रकार सरकार से खूब सवाल कर रहा है लेकिन क्या अपने ऊपर उठने वाले सवालों का भी जवाब देगा.
हर बात पर प्रधानमंत्री मोदी को कठघरे में खड़ा करने वाला एनडीटीवी अपने ऊपर लगे बैन को भी चैनल द्वारा प्रधानमंत्री मोदी की जाने वाली आलोचना से जोड़कर दर्शकों बरगलाने की कोशिश कर रहा है. एनडीटीवी शायद भूल रहा है कि यदि नरेन्द्र मोदी की नियत एनडीटीवी की आलोचनाओं का बदला लेने की होती तो सबसे पहले वह एनडीटीवी के मालिक प्रणव राय और पूर्व वित मंत्री और कांग्रेस नेता पी चिंदबरम की उस फाइल निपटाते जो महीनों से उनकी टेबल पर पड़ी है.
एनडीटीवी चैनल के काले कारनामों की फाइल निपटते ही एक दिन का ब्लैक आउट नहीं बल्कि पूरा एनडीटीवी ही ब्लैक आउट हो जाएगा.
पत्रकारिता की आड़ में जो खेल उसने खेला है एक दिन के प्रसारण पर लगे बैन के हंगामें वे क्या उन सवालों को एनडीटीवी दबाना चाहता है जो उसके भ्रष्टाचार को लेकर उसके उपर लगे हैं.
स्क्रीन काली कर नसीहत सुनाने वाले एनडीटीवी चैनल को दूसरों को नीचा दिखाने की और खुद को महानता की श्रेणी में रखने की आदत रही है.
यदि एनडीटीवी इतना ही पाक साफ है तो क्यों नहीं अदालत में जाकर सरकार के इस निर्णय को चुनौती देता है.
वह कोर्ट में जाने के बजाए चैनल पर ैठकर राजनीति क्यों कर रहा है. या उसे अदालत में एक्सपोज हो जाने का डर है. यदि आपको लगता है कि एनडीटीवी को गलत बैन किया गया तो इसे तथ्यों के साथ कोर्ट में चुनौती दीजिए. सहानुभूति पाने के लिए इस बैन को फ्रीडम ऑफ स्पीच पर बैन बताकर अपने चैनल पर पेश करना फ्रीडम ऑफ स्पीच का अतिक्रमण है.
एनडीटीवी कितना दूध का धुला है और वह इस वक्त क्यों छटपटा रहा है. इसके पीछे जो कारण है वह यह कि 15 जून 2016 को आयकर विभाग ने एनडीटीवी को एक नोटिस भेजा है. उसमें एनडीटीवी पर 525 करोड़ रूपए का जुर्माना लगाया है. मसला एनडीटीवी चैनल के 642 करोड़ रूपए से संबंधित है.
आयकर विभाग का कहना है कि एनडीटीवी ने इस पैसे को हवाला के जरिए कमाया है, जो कालाधन है. जबकि एनडीटीवी चैनल उसे निवेश बता रहा है. उसका दावा है कि जनरल इलेक्ट्रिक्स की एक अनुषंगी कंपनी ने एनडीटीवी की लंदन स्थिति अनुषंगी कंपनी में निवेश किया था.
लेकिन एनडीटीवी के दावों के उलट उसके सारे दावों की पोल आयकर विभाग का नोटिस खोलता है. जनरल इलेक्ट्रिक्स से जुड़ी किसी कंपनी ने एनडीटीवी में कोई निवेश नहीं किया था. एनडीटीवी का दावा सरासर झूठ है.
आयकर विभाग का मानना है कि इस कालेधन को लाने के लिए एनडीटीवी ने निवेश का षड़यंत्र रचा. यह निवेश नहीं था. यह आयकर विभाग की आंख में धूल झोंकने के लिए बुना गया तानाबाना था.
यह जो सवाल खड़ा हुआ है उसका जवाब प्रणव रॉय और उनके सहयोगी विवेक मेहरा की बातचीत में छुपा है. दोनों के बीच यह बातचीत मेल के जरिए हुई थी जिसका जिक्र आयकर विभाग ने 14 पेंजों वाले नोटिस में किया है.
विवेक मेहरा ने मेल में प्रणव रॉय से सीधा कहा कि आप जो कर रहे है उससे समस्या पैदा हो जाएगी.
जवाब में प्रणव रॉय कहते है कि चिंता मत करों मै सब संभाल लूंगा.
वे जानते थे कि चिदबंरम के रहते उनका और एनडीटीवी का कोई बाल भी बांका नहीं कर सकता.
जिस किसी ने एनडीटीवी चैनल को हाथ लगाने की कोशिश की उसको या तो हटा दिया गया या फिर कानूनी पचड़ों में फंसा दिया गया. कारण बस एक ही था तत्कालीन वित मंत्री चिदबंरम नहीं चाहते थे जांच-पड़ताल हो.
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