माओवादियों का संगठन – भारत में कई ऐसे संगठन है जो आए दिन देश की व्यवस्था को खराब करने में लगे रहते हैं जिनमें से एक माओवादी संगठन भी है , जिसका कहर महाराष्ट्र से लेकर बिहार झारखंड तक फैला हुआ है ।
माओवादियों का संगठन माओ विचारधारा से प्रभावित है जो अपनी मांग पूरी करने के लिए किसी भी प्रकार की हिंसा को उचित मानते हैं । लेकिन हाल ही में महारा्ष्ट्र में 35 संदिग्ध माओवादियों के मुठभेड़ में मारने जाने के बाद महाराष्ट्र पुलिस ने दावा किया कि माओवादियों का संगठन अपने अंत की कगार पर है । पुलिस के अनुसार माओवादियों का संगठन अपनी आखिरी सांसे गिन रहा है । जो जल्द खत्म हो जाएगें । लेकिन क्या वाकई में भारत से माओवादी के अंत का वक्त नजदीक है या फिर ये केवल कागजी आकंडे है ?
भारत के गृह सचिव के अनुसार भारत में पिछले एक साल में माओवादी हिंसा में काफी तेजी से गिरावट देखने को मिली है ।
वहीं पुलिस भी दावा कर रही है कि माओवादी अपने अंत की कगार पर है । लेकिन पुलिस की बातों के अलावा आकड़ो पर नजर डाले तो ये आकड़े आपको पुलिस और गृह सचिव की बातों से बिल्कुल विपरीत लगेंगे । क्योंकि भले ही महाराष्ट्र में माओवादियों में गिरावट आई हो । लेकिन माओवादियों का गढ़ कहे जाने वाल छत्तीसगढ़ में माओवादी हिंसा के मामलों में काफी बढ़त्तोरी हुई हैं ।
आपको बता दें केंद्र सरकार ने अब तक 126 जिलों में से 44 जिलों को माओवाद मुक्त घोषित कर दिया है जो एक अच्छी खबर है ।
लेकिन इन 44 जिलों में एक भी जिला छत्तीसगढ़ के बस्तर का नहीं है । यानी कि भले ही माओवादियों की पकड़ दूसरे राज्यों में कमजोर हो रही हो ।लेकिन छत्तीसगढ़ में माओवादियों की अभी भी अच्छी खासी पकड़ है जो सरकार के लिए एक चिंता का विषय है । और साथ ही एक चुनौती भी कि केवल ख्याली बातें करने से कुछ नहीं होगा । सरकार माओवाद के अंत का जो दावा कर रही है उसे हकीकत में भी बदल कर दिखाए ।
मौजूदा आकड़ो के मुताबिक माओवादी हिंसा के कारण पिछले तीन सालों में 300 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है । जिनमें कई जवान भी शामिल है । आकड़ो के मुताबिक पिछले साल 2017 में माओवादी हमलों में सबसे ज्यादा सीआरपीएफ के 60 जवानों की मौत हुई थी। पिछले एक साल में छत्तीसगढ़ में मोआवादियों के दो बड़े हमले हुए जिनमें सीआरपीएफ के कई जवान और लोग मारे गए।
दरअसल पिछले एक साल में पुलिस ने कई माओवादियों को मार गिराया या फिर गिरफ्तार किया । साथ ही कई माओवादी ऐसे भी थे जिन्होने सरेंडर कर लिया ।
इस स्थिति के चलते माओवादी संगठन का आक्रोश सरकार की तरफ ओर बढ़ गया और उन्होनें उन लोगों को निशाना बनाना शुरु कर दिया । जिन लोगों ने माओवादियों का संगठन छोड़ सरेंडर कर लिया था। जिस वजह पिछले एक साल में माओवादी हिंसा में काफी इजाफा हुआ । जिस वजह से ये कहना गलत नहीं होगा कि भले ही सरकार की नजर में माओवादियों का संगठन दम तोड़ता नजर आ रहा है लेकिन माओवादियों का संगठन अभी भी घायल जानवर की तरह लोगों पर हिंसा करने से बाज नहीं आ रहा है ।