पिछले कई दिनों से राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर पूरे देश में हड़कंप मचाया हुआ है। असम में जारी हुए राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से दिल्ली से लेकर सोशल मीडिया तक हड़कंप मचा हुआ है। जबकि इसका काम सुप्रीम कोर्ट के निगरानी में हो रहा है। लेकिन फिर भी राजनेता इस पर राजनीति करने से नहीं चूक रहे हैं।
तो आज इस आर्टिकल में जानते हैं कि क्या है राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर और इसमें नाम ना आने पर क्यों मचा हुआ है हड़कंप?
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में भारतियों नागरिकों का नाम शामिल होता है। मतलब की इस रजिस्टर में नागरियों के नामों की सूचि बनाई जाती है। राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर को वर्ष 1951 की जनगणना के बाद 1951 में तैयार किया गया था। इसमें नागरिकों के नाम, पते और फोटो शामिल किए जाते हैँ।
असम में जारी किया गया राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर का मसौदा
हाल ही में असम में एनआरसी यानी राष्ट्रीय नागरिकता रजिस्टर की सूची का दूसरा मसौदा जारी किया गया है। इस रजिस्टर में कम से कम चालीस लाख लोगों के नाम शामिल नहीं हुए हैं। जिसके कारण वहां के लोगों में हड़कंप मच गया है। क्योंकि लोगों में भ्रम है कि इस रजिस्टर के मसौदे में नाम शामिल नहीं होने से होने भारतीय नागरिक नहीं माना जाएगा।
लेकिन, यह सच नहीं है। यह सच केवल फाइनल बनने वाली राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर से संबंधित है। जबकि अभी केवल मसौदा जारी किया गया है। गौरतलब है कि राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर में लोगों की पूरी डिटेल शामिल करने का काम सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में चला और अब तक इस रजिस्टर का अंतिम स्वरूप जारी नहीं किया गया है।
चालीस लाख लोगों का रजिस्टर में नाम नहीं
इस रजिस्टर में चालीस लाख लोगों के नाम को शामिल नहीं किया गया है। चालीस लाख … एक बड़ी संख्या होती है। जिसके कारण लोगों के बीच हड़कंप मच गया है और इस मसले पर चिंतित होना स्वाभाविक ही है। क्योंकि प्रभावित लोगों को लग रहा है कि उन्हें अपनी नागरिकता साबित करनी पड़ेगी।
इस रजिस्टर के मसौदे को तैयार करने के दौरान यह बात सामने आई है कि देश भर में एक नागरिक के तौर पर जरूरी दस्तावेज तैयार कराने और उसे सुरक्षित रखने को लेकर जागरूकता की कमी होती है। इसी कारण से इस रजिस्टर से इतनी बड़ी तादाद में लोग बाहर हो गए हैं। लेकिन नागरिकता से संबंधित मसला सेंसीटिव होता है इसलिए इसे लेकर लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए।
राजनेता कर रहे हैं राजनीति
लेकिन यह हड़कंप केवल नागरिकों द्वारा ही नहीं बनाया गया है। इसमें राजनेता भी शामिल हैं। जैसे कि कुछ राजनेता इस मसौदे को ही आखिरी सूची बताकर लोगों के बीच में अफवाह फैला रहे हैं।
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने सबसे पहले इस मामले को तूल बनाया। उन्होंने कहा है कि इस सूची से गृहयुद्ध छिड़ जाने की संभावना है। सूची में शामिल ना हुए लोगों को बांग्लादेशी घुसपैठिया घोषित कर दिया गया है।
वहीं तेलंगाना में भाजपा के एक विधायक टी राजा ने यहां तक कह दिया कि बांग्लादेशी आप्रवासी अगर भारत छोड़ कर नहीं जाते हैं तो उन्हें गोली मार दी जानी चाहिए।
तो नागरिक तो झगड़ा करेंगे ही
अगर नेता ही ऐसे बयान देंगे तो नागरिक तो झगड़ा करेंगे ही। कल इसी चीज की कौन जवाबदेही लेगा जब टी राजा के समर्थक और विरोधी इस बार पर भिड़ जाएं। इसलिए कम से कम ऐसे मामलों में तो नेताओं को सोच समझकर बोलना चाहिए।
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