भगत सिंह का नाम आज भी ना सिर्फ युवाओं में अपितु देश के हर नागरिक में जोश भर देता है.
मात्र 23 वर्ष की उम्र में ही भगत सिंह देश की आज़ादी के लिए शहीद हो गए थे. 23 मार्च 1931 को भगत सिंह को फांसी हुई थी.
भगत सिंह पार्लियामेंट में धमाके करने के लिए जब दिल्ली आये थे तो एक मुस्लिम क्रांतिकारी नसीम मिर्ज़ा चंगेज़ी ने उन्हें अपने घर रखा था और अंग्रेजों की नज़र से बचाया भी था.
नसीम मिर्ज़ा चंगेज़ी आज 106 साल के हो गए है, लेकिन फिर भी तो चल फिर सकते है और अगर आप उनसे भगत सिंह के बारे में कुछ पूछते है तो उनकी आँखों में एक अलग ही चमक आ जाती ई.
नसीम चंगेज़ी मिर्ज़ा बताते है कि किस तरह भगत सिंह जब दिल्ली आये थे तो उनके रहने और सुरक्षा की जिम्मेदारी उन्हें सौंपी गयी थी.
भगत सिंह एक ब्राह्मण बनकर उनके पास रहते थे. भगतसिंह के खाने कप्रबंध चंगेजी के ही पड़ोस में रहने वाले एक व्यापारी के घर से होता था.
हर रोज़ भगत सिंह पार्लियामेंट में जाने के अलग अलग रास्ते देखते थे और तैयारी करते थे कि कब और कैसे धमाका करना है.
भगत सिंह के बारे में बताते हुए चंगेज़ी कहते है कि उन्होंने और भी बहुत से क्रांतिकारी देखे और उनके साथ काम भी किया लेकिन देश की आज़ादी को लेकर भगत में जो जूनून था वो किसी में भी नहीं था.
कुछ दिनों तक लगातार तैयारी करने के बाद भगत सिंह ने चंगेजी से कहा कि उन्हें पार्लियामेंट में जाने का रास्ता मिल गया है और अब वो जल्द ही वहां धमाका करेंगे.
साथ ही भगत ने ये भी कहा कि उनका मकसद किसी की जान लेना नहीं है इसलिए वो सिर्फ धमाका करेंगे लेकिन उस से किसी की जान नहीं जाएगी.
भगत सिंह ने बटुकेश्वर दत्त के साथ मिलकर पार्लियामेंट में धमाका किया. भगत सिंह को याद करके चंगेजी की आँखे भर आती है वो कहते है कि जिस आज़ाद भारत का सपना भगत सिंह ने देखा था वो सपना आज भी पूरा नहीं हुआ है.
आज भी बहुत से समस्याएं वैसी की वैसी है जैसी आज़ादी से पहले की थी. भगत सिंह की जितनी ज़रूरत देश को आज़ादी से पहले थी उससे कहीं ज्यादा ज़रूरत उनकी आज के समय में है.
भगत सिंह चाहते थे कि देश के सभी लोग जाती, धर्म के भेदभाव से ऊपर उठकर एक साथ मिलकर बराबरी से रहे. उनका ये सपना तभी पूरा होगा जब हम सब मिलकर इस दिशा में काम करेंगे.
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