बहुमत से दिल्ली जीतकर आने वाले केजरीवाल काम से ज्यादा सुर्ख़ियों में रहना पसंद करते हैं.
एक विवाद थमता नहीं की दूसरा शुरू करने में उन्हें देर नहीं लगती.
आखिर लगातार सुर्ख़ियों में रहकर केजरीवाल दिखाना क्या चाहते हैं? दरअसल अरविन्द केजरीवाल जनता तक यह सन्देश पहुचना चाहते हैं की नरेन्द्र मोदी के खिलाफ मैं अकेले ही काफी हूँ.
और अगर कोई मोदी का सामना कर सकता है तो वो सिर्फ और सिर्फ मैं ही हूँ.
बात सही भी है जहाँ एक और सभी क्षेत्रीय पार्टियाँ एकसाथ मोदी के खिलाफ लामबंद हो रही हैं. एक बार फिर जनता पार्टी का उदय हो रहा है. वहाँ आम आदमी पार्टी दिल्ली में रहकर मोदी को चुनौती दे रही है. और चुनौती एक बार नहीं बार- बार दी जा रही है. केजरीवाल जब से सत्ता में आये हैं शायद ही कभी वो सुर्ख़ियों में न रहे हों.
अभी-अभी तो योगेन्द्र यादव और प्रशांत भूषण का साथ छुटा था और अभी मुख्य सचिव की नियुक्ति को लेकर केंद्र सरकार से जा भिड़े. शकुंतला गैम्लिन की नियुक्ति सिर्फ दस दिनों के कार्यवाहक सचिव के तौर पर होनी थी, ये बात इतनी भी बड़ी नहीं थी जिसके लिए गृह मंत्रालय के आदेश को चुनौती दी जाये. साथ ही उपराज्यपाल नजीब जंग के खिलाफ मोर्चा खोली जाये.
केजरीवाल यह समझते हैं की दिल्ली की जनता उन्हें बहुमत प्राप्त है. 70 में से 67 सीट आम आदमी पार्टी को मिली है. इसलिए वो इस विवाद को कितना भी बढ़ा सकते हैं. वो चाहते हैं की ये विवाद चलता रहे. इससे उन्हें दिल्ली की जनता को यह समझाने का मौका मिलेगा की उनके नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी की सरकार को प्रधानमन्त्री नरेन्द्र मोदी की शह पर काम नहीं करने दिया जा रहा है.
दिल्ली की मामलों में फैसला लेने का विशेष अधिकार उपराज्यपाल को प्राप्त है. लेकिन अगर फैसला लेते हुए उपराज्यपाल मुख्यमंत्री की सलाह की थोड़ी सी भी परवाह करते तो मामला इतना बढ़ता नही.इसलिए भी केजरीवाल भारतीय जनता पार्टी को ये बताना चाहते हैं की वो दिल्ली के पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री रहे मदनलाल खुराना या साहिब सिंह वर्मा की तरह कमजोर नहीं दिखाई पड़ेंगे.
जिस प्रकार केजरीवाल ने उपराज्यपाल के खिलाफ जंग छेड़ी है उसे देखकर ये बिलकुल नहीं लगता की ये लड़ाई जल्दी ख़त्म होने वाली है. मजे की बात ये है की केजरीवाल और नजीब जंग दोनों ही राजनितिक बैकग्राउंड से ताल्लुक नहीं रखते. दोनों ही नौकरशाह रहे हैं. फिलहाल स्तिथि देख यही अंदाजा है की नौकरशाही के लिए नौकरशाहों की ये लड़ाई जल्द ख़त्म नहीं होगी. और खासकर केजरीवाल इस लड़ाई को बिलकुल भी जल्द निपटाना नहीं चाहेंगे . आखिर उन्हें साबित जो करना है की “ मोदी के लिए तो मैं अकेला ही काफी हूँ “
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