गुरुद्वारे के बार में आपको ज्यादा बताने की ज़रुरत नहीं. असल में यही एक जगह हैं जहाँ पर किसी भी धर्म के लोगों को खाना खिलाया जाता है. ये एक ऐसी जगह है जहाँ न तो शोर होता है और न ही कोई चढ़ावा चढ़ता है. आपको खाने के लिए प्रसाद में हलवा और खाने के रूप में लंगर मिलता है. यहाँ हर समय लोगों को लंगर में खिलाया जाता है वो भी बिना भेदभाव के.
सभी गुरुद्वारे में लंगर खिलाया जाता है, लेकिन एक गुरुद्वारा ऐसा भी है जहाँ जाते ही लोगों का पेट भर जाता है. सुनने में भले ही अजीब लगे लेकिन ये सच है. ये गुरुद्वारा चंडीगढ़ में है.
यहाँ के बारे में बहुत सी बातें प्रचलित हैं. यहाँ आने भर से पेट भरा जाता है और हर किसी की मुराद पूरी हो जाती है. हम आपको बता दें कि ये गुरुद्वारा चंडीगढ़ के सेक्टर-28 स्थित है. यहां पर न तो लंगर बनता है और न ही गोलक है. दरअसल, गुरुद्वारे में संगत अपने घर से बना लंगर लेकर आती है. यहां देशी घी के परांठे, मक्खन, कई प्रकार की सब्जियां और दाल, मिठाइयां और फल संगत के लिए रहता है. इसका मतलब यहाँ लंगर बनता ही नहीं है.
यह गुरुद्वारे ५० साल से भी पुराना है. यहां पर कोई लंगर नहीं लगाया जाता और न ही किसी से कोई दान लिया जाता है. नानकसर गुरुद्वारा आने वाले श्रद्धालू अपने साथ घर का बना हुआ भोजन लाते हैं. इस भोजन को इकठ्ठा कर सभी में बांटा जाता है. सभी लोग इस भोजन को ही प्रसाद के रूप में ग्रहण करते हैं. यह परम्परा वर्षों से चली आ रही है और आज भी जारी है. यह बाकी गुरुद्वारों से लगा प्रथा है.
ऐसा बाकी गुरुद्वारे में नहीं होता. वहां प्रसाद भी बनता है और लोगों को लंगर में खिलाया भी जाता है. हर साल मार्च के माह में इस गुरूद्वारे में वार्षिक उत्सव मनाया जाता है. इस उत्सव में भाग लेने के लिए देश विदेश से बहुत लोग शामिल होते हैं. उत्सव के बाद एक रक्तदान शिविर का आयोजन किया जाता है जिसमें सभी लोग शामिल होते हैं. इस गुरद्वारे में 30 से 35 लोग सेवादार हैं जो यहां की सारी व्यवस्था को देखते हैं. इस गुरूद्वारे में सभी लोग अपने घर से ही भोजन लाकर गुरूद्वारे में दान देते हैं. अपने आप में ये एक मिसाल है कि लोग अपने घर से बनाकर लाते हैं.
इतना ही नहीं यहाँ का खाना जो लोग लेकर आते हैं उसे संगत के लंगर छकने के बाद जो बच जाता है उसे सेक्टर-16 और 32 के अस्पताल के अलावा पीजीआई में भेज दिया जाता है, ताकि वहां पर भी लोग प्रसाद ग्रहण कर सकें. यह सिलसिला वर्षों से चला आ रहा है. बचे हुए खाने को फेंका नहीं जाता. इसी तरह से बाकी लोगों को भी दिया जाता है.
अपने आप में ये गुरुद्वारा बड़ा ही अनोखा है. ऐसा और किसी धर्म में नहीं होता जब लोग खुद घर से बनाकर सबके लिए खाना लाएं. ऐसा सिर्फ यहीं हो सकता है. बिना धर्म का भेदभाव किये प्यार से लोगों को लंगर खिलाया जाता है.
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