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ISIS की सेक्स स्लेव बनने से लेकर नोबेल शांति तक का सफर कैसे तय किया मुराद ने

नादिया मुराद – दुनिया के सबसे बड़े पुरस्कार, नोबेल पुरस्कार की घोषणा हो चुकी है।

हर बार की तरह इस बार के नोबेल पुरस्कारों की घोषणा ने सभी लोगों का ध्यान खींचा है। सबसे अधिक ध्यान नोबेल शांति पुरस्कार के विजेताओं ने खींचा है। साल 2018 का नोबेल शांति पुरस्‍कार दो लोगों को मिला है और ये दोनों लोग दुनिया में हो रहे यौन हिंसा के खिलाफ जागरुरता फैलाते हैं।

25 वर्ष की नादिया मुराद ने जीता नोबेल शांति पुरस्कार

इस बार का नोबेल शांति पुरस्कार 25 वर्ष की नादिया मुराद और डॉक्‍टर डेनिस मुकवेगे को संयुक्त रुप से दिया गया है। इन दोनों को नोबेल शांति पुरस्कार यौन हिंसा के खिलाफ की जाने वाली लड़ाई के खिलाफ दिया जा रहा है। नोबेल शांति पुरस्कार पाने वाली नादिया मुराद दूसरी सबसे कम उम्र की विजेता हैं। सबसे कम उम्र में नोबेल शांति पुरस्कार पाने का रिकॉर्ड पाकिस्तान की मलाला युसुफ़ज़ई के नाम है।

दुनिया के सामने लाया आईएसआईएस का असली चेहरा

2015 में नादिया मुराद एक ऐसा नाम बन गई जिसने दुनिया के सामने आईएसआईएस का असली चेहरा लाने का काम किया है जिसके बारे में लोगों ने केवल सुना था और कल्पना करते थे। लेकिन नादिया मुराद ने वह सब कुछ झेला है और अब अपनी कहानी दुनिया के सामने लाकर अन्य पांच हजार यजीदी महिलाओं को आतंकियों के चंगुल से छुड़ाने की अपील कर रही हैं।

इराक की पहली नागरिक

नादिया मुराद इराक की रहने वाली हैं और वह इराक की पहली नागरिक हैं जिन्हें यह पुरस्कार हासिल हुआ है। नादिया मुराद उत्तरी इराक की सिंजर की रहने वाली हैं। नादिया कोचो नाम के गांव में रहती थीं जो सीरिया से लगता था और इस कारण ही वह आतंकवादियों के चंगुल में घिरीं।

2014 में हुए काले दिन की शुरुआत

नादिया अपने परिवार के साथ एक खुशहाल जिंदगी व्यतीत कर रही थीं। लेकिन साल 2014 में सबकुछ बदल गया जब इराक पर आईएसआईएस के जुल्‍म की शुरुआत हुई। एक दिन आतंकवादी सीरिया के रास्ते से आकर उनके गांव में घुस गए और उस दिन से सब बदल गया।

गांव के पुरुषों को मार दिया

सबसे पहले आतंकवादियों ने गांव के सभी पुरुषों को मार दिया। इन पुरुषों में मुराद के दोनों भाई और पिता भी शामिल थे। इसके साथ ही गांव की बूढ़ी महिलाओं को भी मार दिया गया। बाकि जवान महिलाओं और बच्चियों को सेक्स स्लेव बनाकर मोसुल शहर भेज दिया गया। यहां इनसे रोजाना के काम करवाएं जाते थे और सेक्स स्लेव की तरह इस्तेमाल किया जाता था।

बेहोश होने तक किया जाता था रेप

दिसंबर 2015 को नादिया यूनाइटेड नेशंस की सिक्‍योरिटी काउंसिल के सामने थीं। यहां पर नादिया ने बताया कि आईएसआईएस के आतंकी बेहोश होने तक उनके साथ बलात्‍कार करते थे। आतंकियों ने उन्‍हें आईएसआईएस के ही एक और आतंकी के घर पर रखा हुआ था।

इस्लाम कुबूल करने का दबाव

नादिया ने यूएन के सामने बताया था कि कि अगस्‍त 2014 को आईएसआईएस के आतंकियों ने उनके और 150 याजिदी परिवारों से अगवा की गई याजिदी लड़कियों पर इस्लाम कुबूल करने का दबाव बनाया था। नादिया यूएन सिक्‍योरिटी काउंसिल के बाद इजिप्‍ट की राजधानी काइरो की यूनिवर्सिटी भी गर्इं। यहां पर नादिया ने बताया कि आतंकी उन पर प्रार्थना करने का दबाव डालते और फिर वह उनके साथ बलात्‍कार करते थे।

भाग कर आईं शरणार्थी कैंप

नादिया मुराद ने कई बार आतंकियों से चुंगुल से भागने की कोशिश की और पकड़ा जाने के बाद उनपर अकल्पनीय अतायचार किए गए। लेकिन एक दिन वह भागने में कामयाब रहीं और मोसुल के शरणार्थी कैंप में पहुंचीं।

अब तक नादिया मुराद ने अपने भागने की जानकारी के तरीके के बारे में कुछ भी नहीं बताया है। वह कहती हैं इससे वहां रहने वाली लड़कियों की जिंदगी खतरे में पड़ सकती है। नादिया आज यौन शोषण की शिकार हुई तीन हजार से ज्यादा महिलाओं की मदद कर रही हैं और आईएसआईएस के खिलाफ लड़ाई जारी रखी हुई हैं। उनकी इन कोशिशों के लिए ही इस साल का नोबेल शांति पुरस्कार दिया गया है।

Tripti Verma

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