हमारा हिन्दू धर्म कथा-कहानियों से भरा पड़ा हैं.
किसी भी तरह के उत्सव हो या पर्व सबकी अपनी-अपनी एक कथा ज़रूर होती हैं.
ऐसी ही एक और रोचक कथा लेकर हम आज आप के सामने आयें.
अभी सावन मास चल ही रहा हैं जिसे हिन्दुओं का सबसे पवित्र मास माना जाता हैं पर साथ ही अभी नासिक कुम्भ का मेला भी चल रहा हैं जिसमे जा कर प्रत्येक हिन्दू स्नान कर के अपने भौतिक दुर्गुणों से मुक्ति की प्रार्थना करता हैं. इस तरह की मान्यताओं पर विश्वास करना अपनी आस्था की बात हो सकती हैं लेकिन ऐसी रोचक कहानियों की बात करना लाज़मी हैं.
वैसे तो कुम्भ के मेले को लेकर कई कथाएँ प्रचलित हैं, लेकिन श्री गोपालदत्त शास्त्री द्वारा लिखित कुम्भ महात्म्य में कई दिलचस्प कहानिया बताई गयी हैं जिससे यह ज्ञात होता हैं कुम्भ क्यों मनाया जाता हैं.
समुद्र मंथन की कहानी- कहते हैं कि महर्षि दुर्वासा के एक श्राप के कारण देवताओं की शक्ति पूरी तरह क्षीण हो गयी थी और दानवों की शक्ति बढ़ गयी थी. इस बात से परेशान देवता भगवान् विष्णु के पास गए और पूरी बात बताई. भगवान् विष्णु ने उन्हें क्षीर सागर का मंथन कर के अमृत निकालने की बात बताई. लेकिन इस बात के लिए देवताओं ने दानवों को भी मंथन में शामिल कर लिया और मंथन से जो अमृत निकला उसे लेकर देवता और दानवों में अमृतपान को लेकर युद्ध हो गया. देवताओं ने अमृत कुम्भ इंद्र के पुत्र जयन्त को देकर भागने के लिए कह दिया. दानवों को जब इस बात की जानकारी हुई तो वह भी जयंत के पीछे जाने लगे और इस कारण अमृत की बुँदे पृथ्वी में चार स्थानों पर गिरी जो कुम्भ के चार स्थान प्रयाग, हरिद्वार, उज्जैन और नासिक कहलायें, जिसके चलते हर बारह वर्ष में कुम्भ का मेला मनाया जाता हैं.
कद्रू-विनीता की कथा-
प्रजापति कश्यप की दो पत्नियों कद्रू और विनीता के बीच सूर्य के घोड़ों के रंग को लेकर विवाद हो गया.
बात यह थी कि सूर्य के घोड़े काले हैं या सफ़ेद?
और जिसने इस सवाल का सही जवाब नहीं दिया उसे दुसरे की दासी बनना होगा. कद्रू का पुत्र था नागराज वासु और विनीता का पुत्र था गरुड़.
इस विवाद में कद्रू ने अपने पुत्र के साथ मिल कर छल किया और नागवंश की सहायता से सूर्य के घोड़ों को ढक दिया जिससे वह अश्व काले दिखने लगे. इसका परिणाम यह हुआ कि विनीता हार गयी. विनीता अपनी हार से कद्रू के सामने याचना करने लगी कि वह उसकी दसिता समाप्त कर दे, लेकिन कद्रू ने विनीता के पुत्र गरुड़ के सामने अमृत कुम्भ लाने की शर्त रख दी. गरुड़ अपनी माँ की रक्षा के लिए उस अमृत कुम्भ को लाने निकल गया, जिसमे वह सफल भी हुआ लेकिन इस बात की जानकरी जब इन्द्रदेव को हुई तो उन्होंने गरुड़ पर चार बार आक्रमण किया जिससे चार स्थानों पर अमृत की बुँदे गिरी और वही आगे चल कर कुम्भ स्थल कहलायें.
कुम्भ को लेकर ऐसी कई कथाएँ हिन्दू धर्म के कई पुराणों पर मिल जाती हैं लेकिन इन सबसे इतर धर्म को लेकर अपनी अपनी मान्यताएं ही कहा जा सकता हैं जिन्हें आज भी लोग बड़ी श्रद्धा से मानते हैं.