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इंग्लैंड से आया था भारत का पहला देसी साबुन, लक्स और सिंथॉल तो नये है !

मैसूर सैंडल सोप

अगर आपसे पूछा जाए कि देश का सबसे पुराना साबुन कौन सा है तो आप लक्‍स या सिंथॉल का नाम ही लेंगें जो आज़ादी से पहले देश में बिक रहे थे।

हालांकि, देश का सबसे पुराना साबुन किसी विदेशी कंपनी ने नहीं बल्कि भारतीय रजवाड़े की मदद से बनना शुरु हुआ था और फिर यह पूरे भारत में बिकने लगा। ये साबुन इतना बढिया था कि विदेशों की कई रॉयल फैमिली भी इसे लगाया करतीं थीं। आज भी यह साबुन लग्‍जरी सेगमेंट में लोगों की पहली पसंद बना हुआ है। ये साबुन था शुद्ध चंदन की लकडियों से बना मैसूर सैंडल सोप।

मैसूर सैंडल सोप को 101 साल हो चुके हैं। इस साबुन के इतिहास के साथ मैसूर के शाही परिवार का इतिहास भी जुड़ा हुआ है। मैसूर के शाही परिवार की वजह से ही भारत के लोगों तक साबुन पहुंच पाया था।

साल 1916 में मैसूर के तत्‍कालीन शासन कृष्‍णा राजा वाडियार – 4 और उनके दीवान मोशगुंडम विश्‍वेसेरैया मैसूर में चंदन की लकड़ी से तेल निकालने की एक फैक्‍ट्री की शुरुआत की और यहीं से शुरु हुआ था देश के पहले साबुन मैसूर सैंडल सोप का सफर।

उस समय प्रथम विश्‍वयुद्ध के कारण चंदन की लकडियों का व्‍यापार थम गया था और चंदन की लकडियों का ढेर लग गया था। तब राजा वाडियार और उनके मुंशी ने फैसला किया कि चंदन की लकड़ी की फैक्‍ट्री लगाई जाए और उससे तेल बनाकर पूरी दुनिया में बेचा जाए।

साबुन को बनाने के लिए उसका इंडस्‍ट्रियल डेवलेपमेंट भी जरूरी था इसलिए आईआईएससी के एक युवा केमिस्‍ट स्‍टूडेंट सोसाले गरलपुरी शास्‍त्री को इस काम के लिए इंग्‍लैंड भेजा गया। शास्‍त्री जी ने इंग्‍लैंड में साबुन बनाने की तकनीक की जानकारी हासिल की। भारत लौटकर उन्‍होंने इंग्‍लैंड में साबुन बनाने की तकनीक के बारे में सबको बताया। इस तरह इंग्‍लैंड की मदद से भारत को उसका पहला साबुन मिला।

कराची शहर में इस सोप का प्रचार करने के लिए ऊंटों का जुलूस निकाला गया था। 1990 में मल्‍टी नेशनल कंपनियों के तगड़े विज्ञापन के कारण इस सोप की डिमांड में कमी आ रही थी। कंपनी को दो बार बेला आउट पैकेज भी देना पड़ा था लेकिन 2003 में कंपनी ने अपनी मार्केटिंग को ठीक कर घाटे को मुनाफे में बदल दिया। आज भी देश के कई हिस्‍सों और विदेशों में इस भारतीय ऐतिहा‍सिक साबुन का प्रयोग किया जाता है।