भारत के मुसलमान ने इतनी हिम्मत पहले कभी दिखाई हो याद नहीं पड़ता है.
लेकिन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के राज में मुसलमान खुलकर सच्चाई को न केवल बोलना सीख रहा है बल्कि स्वीकार करने का साहस भी जुटा रहा है.
हाल में मशहूर गीतकार और शायर जावेद अख्तर ने एक ऐसी सच्चाई को न केवल स्वीकार किया बल्कि खुलकर बोला भी.
यह और बात है कि इस पर अभी मौलवियों और कट्टरपंथियों की प्रतिक्रिया आना बाकी है.
बहराल, जावेद अख्तर ने जो कहा उसकी बात करते हैं. उनका कहना है कि भारत के 90 फीसदी मुसलमान यहीं के हैं, लेकिन उन्हें बाहरी करार दिया जाता है और खुद मुसलमान भी अपने को बाहरी बताते हैं.
आज जावेद अख्तर वहीं बात कह रहे हैं जिसे संघ काफी पहले से कहता रहा है कि भारत के मुसलमान खुद को भारत की संतान माने न कि अरब की. हालांकि जावेद अख्तर अभी भी सच्चाई को सीधे सीधे कहने से परहेज कर रहे हैं. हो सकता है कि इसके पीछे उनकी कोई सियासी या धार्मिक मजबूरी भी हो. उन्होंने इस सच्चाई को कहने के लिए हिंदुओं का सहारा लिया.
जावेद अख्तर ने कहा कि हिन्दु जाति व्यवस्था ने देश के मुसलमानों को एक भ्रामक वंशावली को अपनाने पर मजबूर किया. आप मुसलमानों से पूछिए कि वह कहां के हैं, तो ज्यादातर लोगों से यही जवाब आएगा कि उनके बाप-दादा भारत के नहीं बल्कि कहीं और से हैं.
कोई कहेगा कि उनके पुरखे इराक के बसरा में फल बेचते थे या कोई कहेगा कि वे अफगानिस्तान से आना (भारत) चाहते थे लेकिन खैबर दर्रे पर रुक गए.
जावेद ने टाटा स्टील कोलकाता साहित्य महोत्सव में यह बाते कहीं. उन्होंने कहा सच्चाई यह नहीं है. यहां 90 प्रतिशत मुसलमान यहीं के हैं जो कि धर्म बदलकर मुसलमान बने हैं.
लेकिन यहां की हिन्दु व्यवस्था के आगे वे ऐसा बोल नहीं पाते हैं. अगर वे स्वीकार कर ले कि उनके दादा ने पंजाब में धर्म परिवर्तन किया था जोकि उन्होंने किया था (हिंदू से मुसलमान बने थे) तो फिर वे (हिंदू) पूछेंगे कि तुम्हारे दादा धर्म परिवर्तन से पहले क्या थे.
यह हिंदू जाति व्यवस्था है जिसने उसे (भारतीय मुसलमान) को झूठी वंशावली अपनाने पर बाध्य किया है.
लेकिन जावेद अख्तर शायद यह भूल रहे हैं कि हिंदू से मुसलमान बन जाने के बाद भी जाति आज भी मुस्लिमों में बरकरार है. वहां भी राजपूत मुसलमानों को रांगड़ कहा जाता है. मुस्लिमों में भी हिंदुओं की भांति बढ़ई, लुहार और तेली आदि जाति आज भी विद्यमान है.
जावेद अख्तर ने कहा कि भारत में जब पैसे की बात आती है तो सभी धर्मों में भेदभाव साफ नजर आता है. पैसे के आगे कोई धर्म नहीं काम करता, बल्कि अगर आप अमीर हैं भले ही आप हिन्दु हो या मुस्लिम आप एक खून करके भी बच जाएंगे.
उन्होंने कहा कि 53 इस्लामिक देशों में 49 देशों के पास मुसलमानों के लिए भारत जैसा कानून नहीं है. यहां मुस्लिमों के लिए पर्सनल लॉ है जो कि पाकिस्तान या बांग्लादेश में भी नहीं है.
उन्होंने कहा कि तीन तलाक की अनुमति ज्यादातर मुस्लिम देशों में नहीं है.
चलिए कम से कम मुस्लिम समाज ने जावेद अख्तर के बहाने ही सही सच्चाई को स्वीकार करने शुरूआत तो की है. क्या पता यहीं से अच्छे दिन को आगाज हो.