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एक राम ने मोहम्मद गौरी पर दया खाकर जिंदा न छोड़ा होता तो भारत में मुस्लिम राज नहीं आता!

यह बात उन दिनों की है जब मोहम्मद गजनवी बार-बार हिंदुस्तान पर आक्रमण कर भारत से खजाना लूट रहा था.

गजनवी आता था और सोमनाथ के मंदिर पर धावा बोलकर वहां से खजाना लूट रहा था.

इतिहास की पुस्तकें बताती हैं की इसने लगभग 17 बार भारत पर आक्रमण कर, यहाँ से खजाने की लूट की थी. गजनवी हजारों भारतीयों को बंधक बना लेता था और फिर इन सभी को बेचकर वह धन कमाता था.

लेकिन इतिहास में एक बड़ी गलती भारत के ‘राम’ के नाम रही है. अगर उस समय वह गलती दया भाव से वह नहीं करता तो हो सकता है कि भारत कभी भी इस्लामिक शासन की चपेट में नहीं आता.

–मोहम्मद गौरी के आक्रमण:-

मोहम्मद गौरी ने अपने बड़े भाई की सहमति से भारत की ओर कूच किया. गौरी को सभी झूठा व चालाक किस्म का योद्धा बताते हैं. सबसे पहले इसने 1175 ई. में मुल्तान को अपना निशाना बनाया था. इसको आसानी से जीतने के बाद उच्छ के दुर्ग को जीतने का प्रयास किया. इतिहास कहता है कि यहाँ गौरी की जीत छल से हुई थी. इसी साल गुजरात के मूलराज शासक पर हमला किया गया लेकिन यहाँ गौरी को भयंकर हार का सामना करना पड़ा था. इसके बाद अगले 20 सालों तक मोहम्मद गौरी ने यहाँ तो निगाह डाली नहीं. लेकिन इसके बाद पेशावर और लाहौर पर आक्रमण किया गया. यहाँ पर इसने विजय प्राप्त कर की थी.

–यहाँ हो गयी थी राम से गलती:-

राजा पृथ्वीराज चौहान को भारत में ‘राम ‘ के नाम से जाना जाता था. उस समय पृथ्वीराज की उम्र 27 वर्ष की रही होगी. लेकिन तब भी पूरे भारत में कोई भी इनसे युद्ध करने की हिम्मत नहीं करता था. तब इतिहास में मोहम्मद गौरी का सबसे उल्लेखनीय संघर्ष अजमेर और दिल्ली के शासक पृथ्वीराज चौहान से बताया जाता है.

–सन 1191 ई. का यह युद्ध:-

1191 ई. में पृथ्वीराज चौहान और मोहम्मद गौरी का युद्ध तराइन के मैदान में हुआ था. इस भयंकर युद्ध में गौरी की सेना डरकर भागने लगी थी. गौरी खुद हैरान था क्योकि सेना में ऐसी भगदड़ इससे पहले किसी ने भी नहीं देखी थी. खुद मोहम्मद गौरी बुरी तरह से यहाँ जख्मी हो गया था. कहते हैं कि गौरी बेहोश होकर अपने घोड़े से गिरने वाला था कि एक खिलजी सैनिक ने उसकी जान बचा ली थी. पृथ्वीराज चौहान भागते शासकों पर हमला नहीं करता था. सभी जानते हैं कि वहां गौरी को मारना काफी आसान था. चालीस मील तक राजपूतों ने गौरी की सेना को भगाया था.  बाद में इस हार का गौरी को बहुत पछतावा हुआ था.

–1192 ई. में धोखे से हराया फिर पृथ्वीराज चौहान को:-

1192 ई. में गौरी और पृथ्वीराज का दूसरा युद्ध हुआ था लेकिन छल और कपट से गौरी ने यहाँ इस राम को हरा दिया था. अंत तक गौरी बोल रहा था कि उसे युद्ध नहीं करना है. वह अपने बड़े भाई के अधीन है इसलिए पीछे नहीं हट सकता है लेकिन वह युद्ध नहीं करेगा. इस युद्ध में भारत के एक राजा जयचंद ने गौरी का साथ दिया था.

धोखे से लड़े गये युद्ध में पृथ्वीराज चौहान को बंधी बनाया गया था और उसको अँधा बनाकर गजनी ले जाया गया था.

यहाँ से भारत में मुस्लिम शासकों ने अपना साम्राज्य कायम करना शुरू कर दिया था. लेकिन अगर पृथ्वीराज पहले ही इस कपटी-धोखेबाज गौरी को 1191 ई. में मर देता तब शायद कहानी कुछ और हो सकती थी.

Chandra Kant S

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Chandra Kant S

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