हिजाब – इस दौर को आप आधुनिक और मॉडर्न का नाम दे सकते हैं।
कुछ साल पहले तक लोग अपनी बात रखने के लिए तर्क करते थे, लैक्चर देते थे, सेमिनार किया करते थे और थीसिस या प्रैक्टिकल दिया करते थे और तब कहीं जाकर उनकी बात प्रूव हो पाती थी या लोगों की नज़र में आती थी लेकिन अब ये पूरा प्रोसेस बदल चुका है।
अब तो बस सोशल मीडिया पर एक तस्वीर डाली और उससे मिलता-जुलता मैसेज लिखा और कुछ ही घंटों में पूरी दुनिया वो बात पहुंच जाती है। इन दिनों कुछ ऐसा ही मैसेज वायरल हो रहा है तो कुछ बता नहीं रहा बल्कि प्रूव कर रहा है कि बुर्का पहनने से छेड़छाड़ की घटनाओं में कमी आई है। आइए जानते हैं इस खबर और तस्वीर के पीछे छिपी पूरी सच्चाई के बारे में…
तस्वीर के साथ लिखा है ये मैसेज
पहले ये हिंदू बहनें बिना हिजाब के कांवड़ यात्रा निकालती थी और लोग उनसे छेड़छाड़ किया करते थे। फिर इनको एक पर्दानशीं खातून ने कहा कि हिजाब पहनकर यात्रा में जाया करो छेड़छाड़ नहीं होगी। हिंदू बहनों ने पूछा हिजाब मिलेगा कहां तो खातून ने जमील की दुकान से सबको 300 वाले हिजाब दिलवा दिए। फिर इन हिंदू बहनों ने वही हिजाब पहनकर कांवड़ यात्रा निकाली। इनका कहना है कि इससे छेड़छाड में बहुत कमी आई है। उसी दौरान ये तस्वीर ली गई है।
नोट : इस जानकारी को ज्यादा से ज्यादा शेयर कर दूसरे भाईयों तक पहुंचाएं।
क्या है इस तस्वीर के पीछे की सच्चाई
ये तस्वीर आज की नहीं बल्कि दो साल पहले 2018 की है। एमपी के इंदौर में सावन के आखिरी सोमवार को कांवड़ यात्रा निकाली गई थी जोकि मधुमिलन चौराहे ये गीता भवन तक पहुंची थी। इस कांवड़ यात्रा में हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई और पारसी समुदाय के लोग भी शामिल थे। इसमें मुस्लिम महिलाओं ने बुर्का पहनकर हिस्सा लिया था और कांवड़ भी उठाया था।
भारत एक लोकतांत्रिक देश है और इसलिए सभी धर्मों के लोगों में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए एक अच्छा कदम उठाया। सोशल मीडिया पर इस मैसेज को अपने ही हिसाब से सर्कुलेट कर दिया गया।
अगर सच बताएं तो ये तस्वीर तो बिलकुल सच है लेकिन इसके साथ जो मैसेज लिखा है वो गलत है।
छेड़छाड़ का विरोध करने वाले और बुर्के के समर्थकों ने फेसबुक पर इस पोस्ट को खूब शेयर किया और अपने कमेंट भी दिए। उन्हें लगता है कि बुर्का पहनकर रेप या छेड़छाड की घटनाएं थम जाएंगीं।
माना कि भारत में महिलाओं की इज्जत की किसी को चिंता नहीं है, ना तो सरकार के कान पर जूं रेंग रही है और ना ही छोटी बच्चियों से लेकर महिलाओं पर अत्याचार करने वाले आदमियों की मानवता जाग रही है। चाहे गलती किसी की भी हो इस अत्याचार और घिनौने काम की चक्की में पिस तो महिलाएं ही रही हैं। अब इस तस्वीर से समाज की कितनी सूरत बदलती है ये देखते हैं।
बुर्के से छेडछाड के मामलो में क्या वाकई में कमी आ सकती है ? इस बारे में आपका क्या कहना है।