सपनों की उड़ान अंनत है, इनका विस्तार अनिश्चित है.
इंसान की आँखें और दिमाग खुलकर ख्वाब देख सकते हैं और गर आँखों में कोई मंजिल है तो रास्ता कितना भी मुश्किल हो, जुनून और आत्मबल के सहारे, रास्ता तय कर ही लिया जाता है.
साराह हमीद अहमद 25 साल की हैं. इन्होनें बचपन में एक सपना देखा था कि इनको पायलट बनना है. लेकिन भारत में एक महिला को इतनी स्वतंत्रता हमारा समाज नहीं देता और अगर आप मुस्लिम हैं तो ये काम और भी मुश्किल हो जाता है.
आज साराह हमीद अहमद भारत की पहली मुस्लिम महिला ‘जहाज’ पायलट हैं. जो आसमान में हवाई जहाज को उड़ा रही हैं. इनका सपना पूरा हो चुका है. भारत की पहली मुस्लिम जहाज पायलट बनकर इन्होनें इतिहास लिख दिया है. भारत में इससे पहले एयर होस्टेज तो बहुत सी महिलाए बन चुकी हैं पर साराह जी देश की पहली मुस्लिम महिला पायलट बनी हैं.
खुद साराह जी अपने आसपास के लोगों से कई बार ऐसा कह चुकीं हैं और अपने एक इंटरव्यू में भी ऐसा इन्होनें बोला था कि “मेरे मुस्लिम होने से मुझे बहुत सी मुश्किलों का सामना करना पड़ा है. लोग मुझे कहते थे कि मैं ऐसा नहीं कर पाउंगी. मैं जब अपना नाम बताती थी तो ट्रेंनिंग में भी मुझे अलग पहचान से देखा जाता था और जबसे 9/11 हुआ है, तबसे मुश्किलें कुछ ज्यादा बढ़ चुकी हैं. इतने के बाद भी मैंने हिम्मत नहीं हारी. तय कर लिया था कि अब एयर होस्टेस तो बनूंगी नहीं, बनना तो पायलट ही है. आज भारत की पहली महिला पायलट हूँ तो बहुत अच्छा लगता है.”
इनके पिता बैंगलोर में अपनी फोटोग्राफी की फर्म चलाते हैं. इन्होनें एक ‘इस्लामिक वोइस ब्लॉग’ पर अपनी बेटी के सपनों पर अपने विचार रखते हुए कहा था, साराह बचपन से ही अलग कुछ करना चाहती थी. स्कूल के दिनों से ही जुनून लिए घुमती थी. पहले-पहले जब इसने बोला की पायलट की ट्रेंनिंग लेनी है तो थोड़ी झिझक हुई थी, पर फिर निश्चित कर लिया कि बेटी को उसके सपने पूरे करने दिए जायें.
साराह ने अपनी एजुकेशन अमेरिका से की है और इन्होनें 2007 में ट्रेंनिंग शुरू की थी. वैसे उन दिनों एक ख़ास धर्म के लोगों को अमेरिका से वीजा नहीं मिल पा रहा था पर साराह को यहाँ कुछ ज्यादा मुश्किल नहीं हुई. ऐसा लगता है कि जैसे ऊपर वाला ही इनकी मदद कर रहा था इस ख्वाब को पूरा करने में.
इन्होनें अपनी मेहनत और लगन से अपने सपनों को हकीकत की ज़मीन पर उतारा है. आज जो इंसान ये सोचता है कि हम अपनी किसी मज़बूरी के चलते अपने सपनों को पूरा नहीं कर सकते हैं, उन सभी को साराह हमीद अहमद से सीखना चाहिए कि विपरीत परिस्थितियों में भी कैसे मंजिल तक सफ़र तय किया जाता है क्योकि हरिवंश राय बच्चन जी की एक कविता भी कुछ ऐसा ही हमें भाव देती है-
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