आप खुद अनुमान लगायें कि दोनों तरफ विशाल सेनायें खड़ी हुई हों और वह युद्ध मात्र तीन घंटों में खत्म हो जाता है तो वह कैसे संभव हो सकता है?
यह युद्ध अपने पीछे कई सवाल छोड़ जाता है पहली बात तो यह हमारे सामने खड़ी होती है कि जब एक नाव्ब को पता था कि हम अगर यह युद्ध हारते हैं या समर्पण करते हैं तो हमारा देश गुलाम हो जायेगा तो वह कैसे अपनी माँ और भूमि को गुलाम बनवा सकता है.
लेकिन शायद इस सवाल का जवाब वाही दे सकता था जो आज हमारे बीच नहीं है. लेकिन भारतीय इतिहास का यह एक गन्दा पन्ना बोल सकते हैं जिसे कोई भारतीय पढ़ना नहीं चाहता है. अंग्रेजों ने इस युद्ध में हमारी सेना को मात्र तीन घंटों में हराकर देश के एक भाग पर कब्जा कर लिया था.
आइये जानते हैं कहाँ हुआ था वह युद्ध
बक्सर का युद्ध 1763 ई. से ही आरम्भ बताया जाता है. अंग्रेज हर हालत में इस जमीं पर कब्जा चाहते थे. लेकिन युद्ध की तारीख इतिहास में 22 अक्तूबर, सन् 1764 ई. बताई जाती है. ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा बंगाल के नवाब मीर क़ासिम के मध्य कई झड़पें हुईं, जिनमें मीर कासिम पराजित हुआ था. अंग्रेजों को ज्ञात था कि यहाँ पर कुछ लालची लोग हैं जिन्हें ख़रीदा जा सकता है. कुछ इस्लामिक लोगों के कमजोर ईमान की वजह से यह युद्ध हारा गया इसलिए इतिहास से यह पन्ना गायब गया है.
अपनी हारों की वजह से मीर कासिम भागकर अवध आ गया और उसने यहाँ शरण ली. मीर कासिम ने यहाँ के नवाब शुजाउद्दौला और मुग़ल सम्राट शाह आलम द्वितीय के सहयोग से अंग्रेज़ों को बंगाल से बाहर निकालने की योजना बनायी, किन्तु वह इस कार्य में सफल नहीं हो सका. वह अपने कुछ सहयोगियों की गद्दारी के कारण वह यह युद्ध हार गया.
किसने दे दिया था धोखा
इस लड़ाई को मुख्य धारा के इतिहास ने भुला दिया, जबकि इसने हिंदुस्तान की राजनीतिक, सामाजिक और आर्थिक पृष्ठभूमि को पूरी तरह से बदल दिया था. 22 अक्टूबर, 1764 को ‘बक्सर का युद्ध’ प्रारम्भ हुआ, किन्तु युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व ही अंग्रेज़ों ने अवध के नवाब की सेना से ‘असद ख़ाँ’, ‘साहूमल’ और जैनुल अबादीन को धन का लालच देकर अलग कर दिया.
लगभग तीन घन्टे में ही युद्ध का निर्णय हो गया, जिसकी बाज़ी अंग्रेज़ों के हाथ में रही.
कहते हैं कि जब शाह आलम द्विताय तुरंत अंग्रेज़ी दल से जा मिला तो सभी की हिम्मत खत्म हो चुकी थी और अंग्रेज़ों के साथ सन्धि कर ली गयी थी. करीब तीन घंटे में ही देश भूमि को गिरवी रख दिया जाता है. और भारत गुलामी की जंजीरों में फंसना शुरू हो जाता है
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