इंसानियत की खातिर – भारत में कई धर्म के लोग रहते है जिस से इसे एक धर्म निरपेक्ष देश का नाम मिल है लेकिन फिर भी कई बार यहां धर्म को लेकर कई सवाल उठते हैं.
आज हम आपके पास एक ऐसी खबर लेकर आए हैं जिसको पढ़ने के बाद आपको भारत में धर्म नहीं बल्कि इंसानियत दिखेगी.
आज हम आपको बताएंगे कि कैसे एक आरिफ खान नामक शख्स ने ये साबित कर दिखाया कि धर्म से बड़ कर इस दुनिया में इंसानियत होती है और भारत इस मामले में सबसे आगे है.
तो चलिए इस लेख द्वारा जानते हैं उस शख्स की कहानी जिसने इंसानियत की खातिर किसी की जान बचाने के लिए अपना रोज़ा तोड़ दिया.
इंसानियत की खातिर
हिंदू था मरीज
अजय बिजलावन नाम के एक शख्स को बहुत ही गंभीर अवस्था में सिटीहॉस्पीटल में भर्ती करवाया गया था. मरीज में प्लेटलेट्स की संख्या बहुत कम पाई गई और इस वजह से उसके लिवर में संक्रमण फैल रहा था. उसके प्लेटलेट्स बड़ी तेजी से गिर रहे थे और उसे जल्द से जल्द खून की जरूरत थी. उसके परिवार के लोग सोशल मीडिया पर लोगों से रक्तदान के लिए अपील करने में लग गए थे.
सोशल व्हॉट्सऐप ने की मदद
आरिफ खान को व्हॉट्साऐप के जरिए खबर मिली कि अजय बिजलावन नाम के व्यक्ति को रक्त की जरूरत है. मैसेज में अजय के परिवार ने ब्लड ग्रुप की सारी जानकारी भी दी थी और उसमें अजय के पिता का फोन नंबर भी था जिस पर आरिफ ने कॉल किया.
देहरादून के सहस्त्रधारारोड़ के नेशनल एसोसिएशन फॉरपेरेंट्स एंड स्टूडेंट्सराइट्स के अध्यक्ष हैं आरिफ खान. इस मैसेज के पीछे के सच को जानने के तुरंत बाद ही उन्होंने हॉस्पीटल जाकर रक्तदान किया.
अभी भी मुश्किल पूरी तरह से हल नहीं हुई थी रक्त दान से पहले डॉक्टर्स ने आरिफ को कुछ खाने के लिए कहा लेकिन आरिफ उस समय रमदान के रोजे पर थे. बिना कुछ खाए वोरक्तदान नहीं कर सकते थे और उन्हें अपना रोज़ा खोलने से पहले कुछ खाना जरूरी था.
आरिफ ने कुछ और ना सोचते हुए कहा कि अगर किसी कि जान बचाने के लिए उन्हें अपना रोज़ा भी तोड़ना पडे तो वह रोजे से पहले इंसानियत को ही बचाएंगे. इंसान की जिंदगी उसके और उसके परिवार के लिए बहुत कीमती होती है. आगे वो कहते हैं कि रमजान हमें जरूरतमंदो की मदद करना ही सिखाता है. मैं मानता हूँ कि रोजा रखना किसी की मदद करने से ज्यादा जरूरी नहीं है और इससे अल्लाह भी खुश नहीं होंगे, अल्लाह तो तब खुश होंगे जब उनके किसी बंदे द्वारा किसी अन्य की जान सुरक्षित हो जाए. ये मेरी खुशकिस्मती है कि मैं किसी के काम आ सका.
अंत में आरिफ ने इंसानियत की खातिर अपना रोज़ातोडा और अजय को रक्त दान कर के इंसानियत को एक बार फिर लोगों के बीच धर्म से ऊपर ला खड़ा कर दिया. आरिफ के इस नेक काम से पता चलता है कि इंसानियत अभी भी हमारे दिलों में कही ना कही जिंदा है और ये केवल अपने लोगों या अपने धर्म के लिए ही नहीं बल्कि अन्य लोगों के लिए भी हम में मौजूद है.