मुस्लिम परिवार में पैदा होने और बड़े होने के अपने ही मज़े हैं!
लेकिन वहाँ के कुछ ऐसे क़ायदे-क़ानून भी हैं जो बच्चों को ख़ास तौर पर पसंद नहीं आते! वैसे बच्चों को तो कोई भी नियम पसंद नहीं हैं लेकिन ये रोक-टोक उन्हें बड़ी खलती है!
चलो ज़रा देखें कौन से हैं ये नियम और क्या आप को भी परेशान किया है इन्होंने आपके बचपन में?
1) शाम को खेलने का वक़्त हो और बीच में ही मम्मी या पापा बुला लिया करते हैं कि चलो 10 मिनट के लिए अंदर आओ, मग़रिब का वक़्त हो चला है! खेल बीच में छोड़ना किस बच्चे को पसंद है?
2) हर रिश्तेदार ये वाला जुमला तो आप पर इस्तेमाल करता ही है: आप तो ईद का चाँद हो गए हो! अरे अंकल, कुछ नया बोलो ना, क्यों?
3) दोस्तों के साथ पार्टी या बाहर खाने का प्लैन बने और सभी दोस्त बोलें कि आज बिरयानी खाएँगे तो आप बस उनका चेहरा ही देखते रह जाते हैं! अगर दोस्त मुस्लिम नहीं हुए तो आपको ये लगना ज़ाहिर है कि बाहर जाकर बिरयानी क्यों खाना? ऐसा क्या ख़ास है उसमें? आपके घर में तो रोज़ ही खाते हैं आप, है ना?
4) दोस्तों की जन्मदिन की पार्टी हो तो उसे सेलिब्रेट करने का मज़ा ही कुछ और है! लेकिन वही जन्मदिन अगर रमज़ान के दिनों में आ गया तो सारा मज़ा किरकिरा हो जाता है! ज़ाहिर है आप यही चाहेंगे कि कम से कम खासम ख़ास दोस्तों का जन्मदिन रमज़ान के वक़्त ना आये!
5) वैसे तो दुनिया में हर चीज़ अच्छी या बुरी होती है लेकिन ख़ानदान में एक आंटी ऐसी ज़रूर होती हैं कि जो चीज़ आपको सबसे ज़्यादा पसंद है, उसकी तरफ़ ही इशारा करके कहेंगी कि वो “हराम” है, उस से दूर रहना! क्या यार!
6) किसी रेस्टोरेंट में खाना खाने का प्लैन बनता बाद में है, घरवालों की हिदायतें पहले शुरू हो जाती हैं कि वक़्त पर वापस आना और सबसे ख़ास, देख लेना कि वहाँ मिलने वाला मीट “हलाल” ही है ना!
7) आपके हिंदू दोस्तों पर आप जान छिड़कते हैं और वो भी कोई कमी नहीं छोड़ते दोस्ती निभाने में! लेकिन घर पर बुला लें आपको खाने पर और चिकन की जगह पनीर खिलाएँ तो ये तो सरासर नाइंसाफ़ी है, है ना?
8) दोस्त भी सिर्फ़ एक तरह के नहीं होते! एक तो वो होते हैं जो स्कूल में आपके साथ पढ़ते हैं और दूसरे वो जो जमात में आपके साथ होते हैं! अब सभी दोस्तों को बराबर का वक़्त देना मुश्किल तो होगा ही!
9) आगे पीछे कुछ भी पहनें, लेकिन ईद के दौरान कपडे खरीदने हैं तो स्टाइल को खिड़की से बाहर फ़ेंक दो! लड़कियों के लिए ख़ास तौर पर ना डीप नैक चलेगा और ना ही स्लीव लेस्स!
10) हाथों में नेल पोलिश या नेल पेंट लगाना भी एक ऐय्याशी वाला काम है, ज़रुरत थोड़े ही ना है! घर वालों को लगता है कि नाखूनों पर इतना ध्यान देने से अच्छा है, पढ़ाई कर लो! अरे पढ़ाई अलग और नाख़ून अलग, अब कौन समझाए?
तो आपने भी झेली हैं ऐसी मुसीबतें? कोई और भी हों ऐसी तो हमें बताईयेगा ज़रूर! बाँटने से दुःख हल्का होता है दोस्तों!
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