मुंबई माफिया भाग -2 में बताया नए ज़माने के नए डॉन के बारे में आज शुरू करते है मुंबई के 10 सबसे प्रसिद्ध माफिया डॉन की जिंदगी के बारे में विस्तृत जानकारी
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मुंबई माफिया भाग 3 – हाजी मस्तान, खून का एक कतरा बहाए बिना किया मुंबई पर राज
मस्तान हैदर मिर्ज़ा उर्फ़ हाजी मस्तान. मुंबई का पहला माफिया डॉन. वैसे तो मस्तान से पहले और भी कई गुंडे, दादा हुए थे. पहली बार पूरी मुंबई पर छा जाने वाला अगर कोई था तो वो था मस्तान.
1 मार्च 1926 को तमिलनाडु में मस्तान का जन्म हुआ, आर्थिक तंगी की वजह से उसके पिता मुंबई चले आये, तब मस्तान की उम्र थी सिर्फ 8 साल.
तरह तरह के छोटे मोटे काम आजमाने के बाद मस्तान के पिता ने एक मैकेनिक की दूकान शुरू की. दिन रात की कड़ी मेहनत के बाद भी बस कुछ पैसे ही कमा पाते थे.
मस्तान जब भी दक्षिण दिल्ली के आलिशान घरों और चमचमाती गाड़ियों और नोवेल्टी सिनेमामें आये मुंबई के अभिजात्य लोगों को देखता था तो सोचता था 5 रुपये कमाने वाली दूकान से उसके बड़ा बनने के सपने पूरे नहीं होंगे.
18 की उम्र में मस्तान ने बॉम्बे डॉक पर कूली का काम शुरू किया. आज़ादी के बाद जब कस्टम कानून कड़े हुए तो मस्तान ने पहली बार गलत कामों में हाथ डाला.
मस्तान कुछ सामान चोरी छुपे कस्टम से बचा कर ले आता था. इस तरह सामने वाले का कस्टम चार्ज बचता था और मस्तान को होती थी अतिरिक्त कमाई.
ऐसे ही छोटी मोटी हेरा फेरी करते हुए मस्तान अल ग़ालिब से मिला और दोनों ने साथ मिलकर तस्करी करनी शुरू की. 2-3 साल बाद ग़ालिब पुलिस की गिरफ्त में आ गया जब मस्तान और वो सोने की तस्करी कर रहे थे.
मस्तान ने ग़ालिब का हिस्सा संभाल कर रखा और जब पैसे का मोहताज़ बनकर ग़ालिब जेल से निकला तो मस्तान ने ग़ालिब के हिस्से का सोना उसे लौटा दिया.
उस दिन मस्तान को समझ आया कि दुनिया का कोई भी धंधा हो उसमे आगे वही बढ़ता है जो पैसे के साथ साथ लोगों का भरोसा भी कमाता है.
ताउम्र मस्तान इसी फलसफे पर चलता रहा और अकूत दौलत शोहरत के साथ साथ उसने लोगों का भरोसा भी कमाया.
मस्तान मुंबई का बड़ा तस्कर बन चूका था, फिर उसकी मुलाक़ात हुयी मुंबई के दुसरे हिस्से में राज करने वाले वरदा भाई से.
दोनों में अपराधी होने के अलावा जो एक और सामान बात थी वो थी दोनों ही अपने अपने इलाके के लोगों के मसीहा थे.
दोनों की जोड़ी जम गयी और शुरुआत हुयी के ऐसी दोस्ती की जो मरते दम तक बनी रही.
इसी तरह मुंबई में वरदा और मस्तान के ही समय में पठान गैंग भी अपने पर फैला रहा था. करीम लाला मुंबई में अपराध के गलियारों में एक बड़ा नाम बन चुका था.
मस्तान और लाल की सांठ गाँठ के बाद पूरी मुंबई पर मस्तान,वरदा और लाला का राज़ हो गया. बिना खून खराबे के माफिया में ऐसा समझौता और दोस्ती देखने को कभी नहीं मिली.
करीम लाला और मटन के बीच एक औ महत्वपूर्ण कड़ी थी और वो था हेड कांस्टेबल इबाहीम कासकर.
कहने को तो इब्राहिम कासकर एक अदना सा हवलदार था पर की ईमानदारी, उसके उसूल और साफदिली की वजह से स उसकी बहुत इज्ज़त करते थे.
इब्राहिम की इज्ज़त का अंदाज़ा इसिबात से लगाया जा सकता है कि करीम लाला जैसा गैंगस्टर भी उसको इब्राहिम भाई कहता था.
इब्राहीम कासकर को क्या पता था कि मस्तान के नीचे रहने वाला उसका छोटा बेटा एक दिन बड़ा होकर D कंपनी खडी करेगा और उसके नाम से मुंबई ही नहीं दुनिया कांपेगी.
दाऊद की कहानी बाद में अभी बात करते है मस्तान की. धीरे धीरे मस्तान की सल्तनत बढ़ती गयी और बढती गयी मस्तान की इच्छाएं.
फिल्मे मस्तान को हमेशा से आकर्षित करती थी. दिलीप कुमार और मधुबाला का बहुत बड़ा फैन था मस्तान. मधुबाला पर तो जान छिडकता था और शायद इसीलिए मस्तान ने शादी की थी सोना नाम की अदाकारा से जो दिखने में बिलकुल मधुबाला जैसी ही दिखती थी.
मस्तान को शाही जीवनशैली पसंद थी. इसका प्रमाण मस्तान का पैडर रोड के पास स्थित बंगला “बैत –उल – सुरूर ” मस्तान ने 20 साल मुंबई पर बिना किसी झगडे और चुनौती के राज किया, आश्चर्य की बात है कि मस्तान ने अपनी जिंदगी में कभी कोई क़त्ल या खून खराबा नहीं किया.
गैंगस्टर होने के साथ साथ मस्तान ने अपने हाथ राजनीति और फिल्म फाइनेंस में भी आजमाए. पर दोनों ही जगह उसे आशातीत सफलता नहीं मिली .
दाऊद ने मस्तान के नीचे काम करते करते ही अपना वर्चस्व कायम करना शुरू किया और जब मस्तान उम्रदराज़ हो गया तो दाऊद ने मुंबई अपने हाथ में ले ली.
हाजी मस्तान की जिंदगी किसी फिल्म की स्क्रिप्ट से कम नहीं.
तमिलनाडु के छोटे से गाँव से बॉम्बे डॉक के कूली और कूली से मुंबई का राजा बनने का सफर किस्से कहानी से कम नहीं तभी तो हाजी मस्तान की जिंदगी से प्रेरित हो बॉलीवुड ने कई फ़िल्में बनायी है.
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