वरदा का देसी शराब का कारोबार पुलिस की नाक के नीचे फलता फूलता जा रहा था. 10 रुपये की शराब की बोतल के हिसाब से वरदा हर महीने अपने इस कारोबार से 60 के दशक में लगभग एक करोड़ रुपये हर महीने कमा रहा था.
वरदा ने कभी वेश्यावृत्ति या जिस्मफरोशी के धंधे में हाथ नहीं डाला पर वो इस धंधे को रोकना भी नहीं चाहता था. इस धंधे को समर्थन देकर वरदा ने किन्नरों को शक्तिशाली बनाया, जिससे वो सदा के लिए वरदा के कर्ज़दार हो गए.
वरदा और मस्तान एक नयी दोस्ती की शुरुआत
मस्तान को मुंबई पर राज़ करने के लिए वरदा की ज़रूरत थी और किस्मत भी शायद मस्तान पर मेहरबान थी .
वरदा को पुलिस ने पकड़ा लिया था और फिर एक दिन वरदा से जेल में मिलने आया एक शख्स झक सफ़ेद कपड़ों में 555 ब्रांड की सिगरेट का धुआं उडाता मस्तान. मस्तान जो अब तक मुंबई का बड़ा नाम बन गया था उसने तमिल में वरदा को थलाइवा कह कर संबोधित किया.
मस्तान और वरदा दो तमिल जिनका राज होने वाला था मुंबई में.
मस्तान ने वरदा के सामने दोस्ती का हाथ बढ़ाते हुए कहा कि मैं तुम्हे इस मुश्किल से निकालूँगा और बदले में मुझे तुम्हारी ताकत और साथ चाहिए.
वरदा जो अब और बड़ा बनना चाहता था समझ गया ये उसका सुनहरा अवसर है बाहर निकलने का और बड़ा बनने का.
इस तरह शुरुआत हुयी एक दोस्ती की, जो ताउम्र रही. अभी इस कड़ी का तीसरा सर जुड़ना बाकि था, और वो था करीम लाला.
दो एक दम अलग तरह के डॉन – एक सफ़ेद सूट बूट और सिगरेट के कश लगता हुआ तो दूसरा धोती कुरता और चप्पल में.
मस्तान का भागिदार बनने के बाद वरदा का कार्यक्षेत्र बढ़ गया और कमाई भी. वहीँ मस्तान को ये फायदा हुआ की वरदा जैसा नेटवर्क और कार्यकुशलता उसे मिल गयी. मतलब ये की ये भागीदारी दोनों के लिए ही फायदे का सौदा थी.
वरदा की मृत्यु चेन्नई तत्कालीन मद्रास में 2 जनवरी को हुई थी.
इस समय तक वरदा और मस्तान की भागीदारी एक गाढ़ी दोस्ती में बदल गयी थी. वरदा की आखिरी इच्छा थी की उसका क्रियाकर्म मुंबई में हो, जिस शहर ने उसे सब कुछ दिया था.
मस्तान ने एक सच्चे दोस्त की तरह वरदा की ये इच्छा पूरी की और वरदा के मृत शरीर को एयर इंडिया के चार्टर हवाई जहाज से मद्रास से मुंबई लाया गया.