मस्तान की तरह वरदा को भी पता था कि पैसा कमाने के साथ साथ लोगों का विश्वास भी जीतना ज़रूरी है तभी उसका धंधा बेरोक टोक चल सकता है.
आज भी वरदा का परिवार उस दरगाह में नियाज़ अदा करता है, तकरीबन 10000 लोगों का पेट भरता है आज भी वरदा की बदौलत.
ये सब पढ़कर ये मत समझियेगा की वरदा भाई कोई देवता था. कितने भी भले काम करले पर अंत में तो वो एक अपराधी, एक माफिया डॉन ही था.
जब मोरारजी देसाईं ने 1952 में शराब बंदी और परमिट शुरू किया तब वरदा को इसमें सुनहरा अवसर दिखा. वरदा ने शराब की तस्करी शुरू की, इसमें उसकी मदद करते थे उसके विश्वासपात्र खासकर तमिल लोग जिन पर बहुत से अहसान थे वरदा भाई के.
वरदा का कारोबार धारावी और अन्टोप हिल के बीच फैला था. बॉम्बे आज मुंबई का यही वो क्षेत्र था जहाँ सबसे गरीब लोग रहते थे और जिन्हें कोई झिझक नहीं थी पैसा कमाने के लिए अपराध करने में.
वरदा का जलवा ये था कि उसके कहने पर किसी को भी राशन कार्ड, बिजली या पानी मुंबई के किसी नागरिक से पहले मिल जाता था. ट्रक के ट्रक भर कर शराब भट्टी से पूरी बम्बई में फैलती थी.
शुरू शुरू में पुलिस ने अनदेखा किया बाद में पुलिस को भी लगा कि ये कारोबार अब ज़रूरत से ज्यादा बढ़ गया है.