सत्यवती महाभारत की एक महत्वपूर्ण पात्र है.
उसका विवाह हस्तिनापुर नरेश शान्तनु से हुआ. उसका मूल नाम ‘मत्स्यगंधा’ था. वह ब्रह्मा के शाप से मत्स्यभाव को प्राप्त हुई “अद्रिका” नाम की अप्सरा के गर्भ से उपरिचर वसु द्वारा उत्पन्न एक कन्या थी.
इसका ही नाम बाद में सत्यवती हुआ.
जैसा कि ज्ञात है वेदव्यास और भीष्म भी सत्यवती के ही पुत्र थे. वेदव्यास इनके अपने गर्भ से पैदा हुए थे और भीष्म इनके पति शांतनु की पहली पत्नी गंगा के पुत्र थे. भीष्म ने अपने जीवन काल में दो कसमें मुख्य रूप से खाई थीं कि वह कभी राजा नहीं बनेंगे और दूसरा की वह कभी विवाह नहीं करेंगे.
जब सत्यवती ने बोला भीष्म को विवाह करने को:-
तब हस्तिनापुर के वंश पर संकट आ गया था. सत्यवती के ही अनुरोध पर भीष्म विचित्रवीर्य के लिए अम्बा-अम्बिका-अम्बालिका का अपहरण कर ले आये थे. लेकिन इस बात से भी राज्य को उसका वंश नहीं मिला था.
तब भीष्म से सत्यवती ने पहला अनुरोध यह किया था कि वह अपनी इस कसम को खत्म करें और राज्य के राजा अब खुद बनें. लेकिन भीष्म ने इस बात के लिए साफ़-साफ मना कर दिया .
तो फिर भीष्म से उनकी इस माँ ने दूसरा अनुरोध यह किया था कि वह नियोग द्वारा संतान उत्पन्न करें. पर तब भीष्म ने इस अनुरोध को इस तर्क के आधार पर मना किया कि उन्होंने जो विवाह ना करने की प्रतिज्ञा ली है उसका अर्थ यह भी है कि वे कभी स्त्री सहवास भी नहीं करेंगे.
भीष्म से निराश होकर सत्यवती ने अपने दुसरे पुत्र वेदव्यास से अनुरोध किया था कि वह अम्बिका और अम्बालिका से संतान की उत्पत्ति करें. और वेदव्यास ने यह अनुरोध स्वीकार कर लिया था.
कैसा था तब समाज?
कुल मिलाकर महाभारत में इस घटना से यह सिद्ध होता है कि तब समाज में उतनी दकियानूसी नहीं थी.
समय और परिस्थिति के अनुसार सब काम हो रहे थे. तब प्रेम विवाह भी हो रहे थे और बिन शादी के बच्चे भी पैदा हो रहे थे. तबका हमारा समाज महिलाओं पर इतनी रोक भी नहीं लगाता था. महिला स्वतंत्रता तब आज से कहीं ज्यादा मौजूद थी. सेक्स जैसे विषय पर तब खुलकर बातचीत हो रही थी. तभी तो एक माँ भी अपने बच्चों से इस तरह की बातचीत कर रही थी.