दिसम्बर 2012 में निर्भया कांड के बाद लगा था कि जैसे पूरा भारत जाग गया है. प्रशासन से लेकर आम जनता तक सबमे रोष के साथ साथ समाज को बदलने की ललक भी दिखाई दे रही थी.
लेकिन उस घटना को 4 साल बीतने के बाद भी कुछ नहीं बदला है. निर्भय कांड के बाद भी जो विरोध, मोमबत्ती जलना या जो प्रदर्शन हुए थे वो भी झूठे बेमानी ही लगते है क्योंकि 2015 में निर्भय काण्ड फिर से दोहराया गया वो भी पिछली बार से ज्यादा पाशविक तरीके से लेकिन ना हमारे सजग मीडिया ने उसे खास खबर बनाया ना लोगों के कान पर जूं रेंगी.
यहाँ तो लोग नाबालिग बलात्कारी को बचाने में लगे हुए है.
हरियाणा के रोहतक में हुआ था एक दिल दहला देने वाला बलात्कार और हत्या का मामला. ये बलात्कार काण्ड इतना राक्षसीय था कि स्पेशल कोर्ट की जज ने सभी आरोपियों को मौत की सज़ा सुनाने में ज़रा भी देर नहीं की.
लेकिन निर्भय कांड की तरह ही इस मामले में एक आरोपी नाबालिग है उसका क्या होगा ये तो कानून ही जाने.
वैसे जिस प्रकार से बलात्कार और हत्या की गयी उस हिसाब से तो लगता नहीं कि उस नाबालिग को भी मौत की सजा से कुछ कम मिलना चाहिए.
आइये आपको बताते है उस बलात्कार कांड के बारे में जो हमारी सम्पूर्ण मानवता के मुंह पर एक करारा तमाचा है.
फ़रवरी 2015 में हरियाणा के बहुअकबरपुर गाँव में एक लड़की का क्षत विक्षत नग्न लाश मिली. इस लाश को कुत्तों ने नोंच दिया था. देखने वालों का कलेजा मुंह को आ गया.
जांच द्वारा पता चला कि ये लाश रोहतक की एक नेपाली लड़की की है जो मानसिक रूप से थोड़ी बीमार थी. पालिक की छान बीन और फोरेंसिक रिपोर्ट से जो सच सामने आया वो मज़बूत से मज़बूत इंसान को दहलाने के लिए काफी था.
जांच के अनुसार उस लड़की का 8-9 लोगों ने सामूहिक बलात्कार किया था. वो वहशी इतने में ही नहीं माने उन्होंने अपनी कुंठा और नफरत मिटाने और सुबूत खत्म करने के इरादे से उस लड़की के गुप्तांग में लोहे का औजार डालकर बेदर्दी से उसकी हत्या कर दी.
पोस्टमार्टम रिपोर्ट के अनुसार उस लड़की के मृत शरीर से पत्थर और लोहे के टुकड़ों के अलावा अस्बेस्ट्स की करीब आधे फीट से बड़ी शीत निकली.
सोच कर ही जी ख़राब हो जाता है ये सब, जरा सोचिये ये सब इंसानों ने किया था. इस आरोप में 9 लोगों को गिरफ्तार किया गया जिसमे से एक ने जांच के दौरान ही आत्महत्या कर ली. शेष 8 में से एक नाबालिग था उसका केस अभी भी चल रहा है और बाकि लोगों को जज ने सजा ए मौत सुनाते हुए कहा कि इस तरह के घिनौने अपराध के लिए मौत की सजा भी कम है.
ना जाने मरने से पहले वो कितनी देर तक लहूलुहान तडपती रही होगी.
जज ने अपने फैसले में कहा कि अपराध की रिपोर्ट पढने और सुबूतों को देखने के बाद वो खुद उस मासूम लड़की की दर्द भरी चीखें सुन सकती है और समझ सकती है कि इन नरपिशाचों ने उसके साथ कैसी कैसी दरिंदगी की और उस पर भी मन नहीं भरा तो किस तरह यातनाएं देकर उसे मार डाला.
इस बलात्कार कांड के बाद जो सवाल मुख्य रूप से उभर कर आते है वो ये है कि
१) क्या हमें सच में फर्क पड़ता है या हम सिर्फ तभी आवाज़ उठाते है जब मामला सबकी नज़र में आ जाये और सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने लगे.
२) हर रोज़ हमारे देश में ना जाने कितनी लड़कियां बलात्कार का शिकार बनती है आखिर संस्कृति और धर्म के नाम का ढोल पीटने वाले कैसे एक नारी की अस्मत को तार तार कर सकते है. हमें जानवरों की परवाह है लेकिन इंसानों की नहीं.
ना जाने कब तक ऐसी कितनी ही निर्भया हवास और वासना की भूख की वजह से असमी ही काल के गाल में समाती रहेगी और हम हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहेंगे.
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