इस बलात्कार कांड के बाद जो सवाल मुख्य रूप से उभर कर आते है वो ये है कि
१) क्या हमें सच में फर्क पड़ता है या हम सिर्फ तभी आवाज़ उठाते है जब मामला सबकी नज़र में आ जाये और सोशल मीडिया पर ट्रेंड होने लगे.
२) हर रोज़ हमारे देश में ना जाने कितनी लड़कियां बलात्कार का शिकार बनती है आखिर संस्कृति और धर्म के नाम का ढोल पीटने वाले कैसे एक नारी की अस्मत को तार तार कर सकते है. हमें जानवरों की परवाह है लेकिन इंसानों की नहीं.
ना जाने कब तक ऐसी कितनी ही निर्भया हवास और वासना की भूख की वजह से असमी ही काल के गाल में समाती रहेगी और हम हाथ पर हाथ धरकर बैठे रहेंगे.