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मोदी सरकार ने लिया ऐसा निर्णय अब विरोधी नहीं कह पाएंगे अम्बानी की सरकार

पेट्रोलियम मंत्रालय

जो लोग अभी तक प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और उनकी सरकार पर अम्बानी की सरकार और अडानी की सरकार है उन्हें अब अपनी सोच बदल लेनी चाहिए।

कांग्रेस और आम आदमी पार्टी के लोग अक्सर मोदी सरकार पर पूंजीपतियों की पार्टी होने का आरोप लगाते रहे हैं लेकिन सरकार ने अपने इस फेसले से साबित कर दिया है कि वह किसी पूंजीपति के दवाब मेें या उसके लिए काम नहीं करती है।

मोदी सरकार ने वो निर्णय लिया है जिसे कांग्रेस लेने से हमेशा बचती रही है।

भारत सरकार के पेट्रोलियम मंत्रालय ने एक नोटिस जारी कर मुकेश अंबानी के स्वामित्व वाली रिलायंस इंडस्ट्रीज पर 10,385 करोड़ रुपये का जुर्माना लगाया है, जो बताता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अपने उस वादे के प्रति सजग है जो उन्होंने चुनाव के समय जनता से किया था।

उन्होंने भारत की जनता से वादा किया था कि वे देश की संपदा को लूटने नहीं देंगे।

मोदी सरकार द्वारा ओएनजीसी के ब्लॉक से गैस निकालने का दोषी पाए जाने पर रिलायंस इंडस्ट्रीज और इसकी साझेदार- ब्रिटिश पेट्रोलियम व नीको रिसोर्सेज पर 1.55 अरब डॉलर का जुर्माना लगाया है। भारतीय मुद्रा में यह रकम 10,385 करोड़ रुपये बैठती है।

आपको बता दें कि विगत 7 साल से मुकेश अंबानी की कंपनी पर केजी बेसिन गैस ब्लाक में धांधली को लेकर कैग ने सवाल खड़े किए थे।

लेकिन मनमोहन सिंह के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने इस पर कभी कार्रवाई नहीं की। लेकिन मोदी सरकार के पेट्रोलियम मंत्रालय ने इसको लेकर रिलायंस इंडस्ट्रीज को नोटिस जारी किया है।

पेट्रोलियम मंत्रालय ने अमेरिकी एजेंसी डीगोलयर और मैगनॉटन की रिपोर्ट के आधार पर यह नोटिस जारी किया है।

दरअसल, आरआइएल और ओएनजीसी के गैस ब्लॉक आसपास ही हैं।

ओएनजीसी ने अपने ब्लॉक से कॉमर्शियल उत्पादन अभी शुरू नहीं किया है। जबकि रिलायंस के ब्लॉक से कई वर्षो से गैस निकाली जा रही है।

मंत्रालय ने ओएनजीसी की तरफ से आरोप मिलने के बाद अमेरिकी एजेंसी सहित कई एजेंसियों से सर्वे करवाया था। सर्वे रिपोर्ट के मुताबिक मार्च, 2016 की समाप्ति तक ओएनजीसी के ब्लॉक से रिलायंस ने 11.122 करोड़ घनमीटर गैस निकाली थी।

रिलायंस पर आरोप है कि वह केजी बेसिन में ओएनजीसी के ब्लॉक से सात वर्षो तक गैस निकालती रही। वहीं इस मामले में मुकेश अंबानी की कंपनी आरआइएल ने कहा है कि वह सरकार की ओर से दिए गए नोटिस को आर्बिट्रेशन में चुनौती देगी। रिलायंस का कहना है कि उसने जानबूझकर ओएनजीसी के हिस्से की गैस नहीं निकाली है, क्योंकि उसने जितने भी कुएं खोदे हैं, वे सभी कंपनी को मिले केजी-डी6 ब्लॉक की सीमा के भीतर हैं। इन सभी कुओं की खुदाई के लिए सरकार से बाकायदा मंजूरी ली गई थी।

गौरतलब है कि रिलायंस पहले ही अपने गैस ब्लॉक के विकास पर आई लागत की वसूली को अनुमति नहीं देने का मामला अंतरराष्ट्रीय आर्बिट्रेशन में ले जा चुकी है।

ज्ञात हो कि हाइड्रोकार्बन महानिदेशालय (डीजीएच) ने भी सरकार को रिलायंस पर जुर्माना लगाने का सुझाव दिया था।

इस पर सरकार ने दिल्ली हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश एपी शाह की अध्यक्षता में एक समिति भी गठित की थी। शाह समिति ने भी कहा था कि अमेरिकी एजेंसियों की रिपोर्ट सही है और रिलायंस ने जो गैस निकाली है, उसकी आर्थिक भरपाई की व्यवस्था होनी चाहिए।

मंत्रालय ने कहा है कि उसने समिति की रिपोर्ट स्वीकार कर ली है।