आज सुबह से बहुत परेशान हूँ मैं कि सुसु करने बाथरूम में जाऊँ या किसी बाग़-बगीचे में?
वो क्या है न, सोचा था मोदी सरकार और उनके मंत्री अच्छे दिन लेकर आएँगे जहाँ जीवन में नयी खुशहाली आएगी, तरक्की होगी| यह भी अनुमान था कि शायद कुछ तकलीफें बढ़ जाएँ पर वो तो बदलाव के साथ होता ही है|
लेकिन इस बात का बिलकुल अंदाजा नहीं था कि सुसु-पॉटी के लिए भी सोचना पड़ेगा!
अभी कल ही केंद्रीय मंत्री श्री नितिन गडकरी जी ने देश में सनसनी फैला दी कि उनके मूत्र से उनके बग़ीचे के पेड़ दुसरे पौधों के मुकाबले डेढ़ फ़ीट ज़्यादा बढे!!
है न कमाल कि बात?
गो-मूत्र के फायदे तो सुने थे, मानव-मूत्र के सिंचाई के फायदे कल पहली बार सुनने को मिले|
क्या इसका मतलब है कि अब सरकार सभी देशवासियों के लिए जो शौचालयों का प्रबंध करने वाली थी, अब उस परियोजना पर मूत्र पड़ गया, अरे मेरा मतलब है पानी पड़ गया?
तो अब क्या करें?
जो लोग सुबह शाम रेल की पटरियों पर, पेड़ों के ऊपर, बाग़-बगीचों में मूतते हुए नज़र आते हैं, उन्हें तो देश के सर्वोच्च पुरुस्कार से नवाज़ा जाना चाहिए| आखिर कितने सालों से, पीढ़ी दर पीढ़ी वो लोग देश सेवा में अपना मूत्र बहा रहे हैं! शायदा उन्हीं की वजह से देश में यह बची-खुची हरियाली है!
लीजिये, नितिन जी की इस छोटी सी कोशिश से देश का करोड़ों रूपया बच जाएगा| बल्कि उन्हें तो अब यह क़ानून ले आना चाहिए कि किसानों को पैसे से मदद मत कीजिये, जाइए और उनके खेतों में मूत के आईये! बल्कि पॉटी भी कीजिये! आखिर जितना ज़्यादा मुफ्त का यूरिया हमें मिल सकता है, उतना ज़्यादा इस्तेमाल करना चाहिए! स्वच्छ भारत, हरित भारत का सपना देखते ही देखते पूरा हो जाएगा|
हींग लगे न फिटकरी, रंग भी चौखा आये!
हाँ नितिन जी की बात से शायद कुत्ते थोड़े नाराज़ हो जाएँ, अब उनका सर्वप्रथम हक़ है पेड़ों को मूत्र-दान करने का| अगर मानव उनकी सीमा लाँघेगा तो जायज़ है कि बुरा लगेगा! पर कोई नहीं, हमारे मंत्री जी उसका भी कोई उपाय सोच ही लेंगे, है ना?
पर इन सब बातों में हम यह भूल गए कि क्या हिन्दू का मूत्र मुस्लिम के खेत में काम आएगा?
या मुस्लिम का मूत्र हिन्दू के खेत में?
कहीं ऐसा ना हो कि फ़सल खराब हो गयी तो यह हिंदुत्व का झंडा लहराने वाले दूसरे धर्मों के लोगों पर उँगलियाँ उठाने लगें!
नितिन जी इसकी जांच करवा लीजियेगा, हम तो कहीं भी मूतने को तैयार हैं!
फिलहाल मोदी जी से गुज़ारिश है कि कृपया हम सभी को बतायें कि अब से बाथरूम जाना है या खेत-खलिआनों में, आज़ाद पंछी की तरह?
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