हम कितना भी कुछ कहे कि भारतीय महिला चाँद पर जा पहुची है या महिलांए पुरषों के मुकाबले सभी क्षेत्र में कंधे से कंधा मिलाकर आगे बढ़ने की बात हो.
किंतु यह बदलाव भारत में बड़े पैमाने पर नहीं है.
अब महिलांए पहले से बेहतर साक्षर हो रही है.
छोटी मोटी नौकरी करके वो अपने अस्तित्व को उजागर करने की जदोज़हद कर रही है. महिलाओं के इन प्रयासों से केवल खुद की नहीं तो पुरे घर के साथ देश की तरक्की हो रही है.
एक वक़्त था, जब महिलाओं को पुरषों के मुकाबले कम वेतन दिया जाता था. यह इस लिए होता था क्योंकि महिलांए शारीरिक तौर पर पुरुषों से नैसर्गिक कमजोर होती है.
आज की तारिख में आमदनी को देखते हुए महिलांए पुरुषों को पीछे छोड़ दी है. यही बात पुरषों को नागवार है.
पुरषों को महिलाओं का अधिक कमाना कब पसंद है
शादी से पहले पुरषों को अधिक कमाने वाली महिलांए ज्यादा पसंद आती है. किसी भी पुरुष को एक सुंदर और स्मार्ट लड़की की चाह होती है.
अगर ऐसी कोई लड़की अधिक कमाती हो, तो वह उसकी पहली पसंद रहती है. क्योंकि आज कल की पीढ़ी दिल से कम दिमाग से ज्यादा सोचती है.
शादी के बाद अधिक कमाने वाली महिला कब ना पसंद आती है
शादी से पहले कुछ और शादी के बाद कुछ और, यह इतना बड़ा अंतर कैसे?
यही तो बात होती है. किसी को रोज मिलना और किसी के साथ रहने में काफी अंतर होता है. ये वही बात है, जिन पुरषों को गर्ल फ्रेंड के बाल शादी से पहले सुनहरे घनी छाव देने वाले बाल लगते है. वही शादी के बाद अगर खाने में आ जाए तो वही पुरुष सर पर आसमान उठा लेते है.
ठीक इसी तरह अधिक कमाने वाली महिला पुरुषों को शादी के बाद अधिक डॉमिनेटिग महिला लगती है. पुरुषों को लगता है की महिला जब कमाती है तब वो परिजनों का आदर कम करती है. अपने संस्कारों से हट जाती है और हर बात में खुदकी चलाती है.
आज भी महिलाओं का अधिक कमाना पुरुष प्रधान समाज को भी गवारा नहीं! पुरषों को यह तक लगता है की अधिक कमाने वाली महिलाओं को अपने पति की जरुरत नहीं पड़ती.
महिलाओं का कमाना कितना सही है?
महिलाओं की साक्षरता तब महसुसू हुई, जब कुछ समाज सुधारों को यह लगा की महिलांए अगर पढ़ लिख लेगी तो वह अपने परिवार को साक्षर करेगी. इससे कोई किसी के अज्ञान का फायदा नहीं उठा पायेगा.
यह वो वक़्त था जब केवल राजे महाराजे और साहूकार साक्षर रहते थे. जो गरीब जनता से पैसे ऐठना जानते थे, जो एक बार मूलधन देकर व्याज जिंदगी भर लेते ही रहते थे. वैसे ही अब मंहगाई के बदल हटने का नाम नहीं ले रहे है.
ऐसे में कब तक महिलांए अपने पिता और पति के भरोसे अच्छे दिन के सपने देखती रहेगी. अपने साक्षर होने का कुछ फायदा अगर पुरे परिवार को वो दे रही है, तो इससे बड़ी बात और क्या है.
महिला चाहे अपने परिवार का पेट पालने के लिए कमाए या फिर अपने अस्तित्व को बनाने के लिए, दोनों ही सूरत में घर और देश का ही फायदा है.
दोनों में सामंजस्य की आवश्यकता
महिलाओं को यह नहीं भूलना चाहिए की नौकरी/ व्यवसाय से कमाना भले उनका काम हो लेकिन मूलभूत महिलाओं के गुणों से वो भरपूर हो.
आज की अधिक महिलांए नौकरी कर रही है इसका मतलब यह नहीं है की वो घर में कुछ भी काम ना करे. माना की वह घरेलु कामो के लिए नौकर रख सकते है, लेकिन खाने में वो आपने पन की मिठास नहीं रहेगी.
इस लिए पूरी तरह से सारे घर के काम नौकर पर नहीं सौपने चाहिए.
भले खुद के पास बहुत बैंक बैलेंस हो, लेकिन कुछ खरीदना हो कोई व्यवहार संम्बन्ध निर्णय लेना हो तो घरवालों से या पति से पूछे. इससे रिश्ते और मजबूत होते है ना की पैसों के रोब से टूटते है.
पुरुषों को भी महिलाओं के लिए त्याग दिखाना चाहिए.
एक पत्नि अपना घर और घर के तौर तरीके छोड़ कर केवल पति की ख़ुशी के लिए जीती है. तब उसे एक सक्षम नैतिक समर्थन चाहिए होता है. सामंजस्य स्वभाव चाहिए होता है. अगर वह नौकरी के साथ घर के कामो के लिए अपना समय दे रही है, तो उस पुरुष को भी उन कामो में थोडा बहुत योगदान देना चाहिए.
इससे रिश्ते मजबूत तो होते है, साथ में एक आदर्श वर्ग सामने अता है.
इन सभी चीजों के बावजूद भी पुरुषों की मानसिकता अभी बदली नहीं है. उनको आज भी लगता है कि घर के काम केवल महिलाओं को ही करना चाहिए क्योंकि नौकरी करना महिलाओं के बस में नहीं. वह केवल बच्चे ही पाल सकती है.
21वी सदी में इस तरह की मानसिकता समाज और देश को विकलांग बना रही है.
समाज और देश को आगे बढ़ाना है तो पुरुष प्रधान समाज को अपनी मानसिकता बदलनी होगी.
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