निधिवन का रहस्य हमने आपको कुछ दिन पहले बताया था.
निधिवन की तरह ही मध्यप्रदेश में स्थित एक ऐसा मंदिर है जिसमे रात को 2 से 5 के बीच यदि कोई साधारण मनुष्य चला जाता है तो उसकी मृत्यु निश्चित है.
इस अनोखे मंदिर के बारे में कहा जाता है कि सदियों पहले के माँ शारदा के भक्त अमर योद्धा आते है माँ का श्रृंगार करने को.
मध्यप्रदेश में स्थित ये मंदिर अपार श्रद्धा के साथ साथ एक रहस्य का भी केंद्र है.
ये मंदिर पूरे दिन श्रद्धालुओं के लिए खुला रहता है लेकिन रात 2 बजे से 5 बजे तक इस मंदिर के पट बंद कर दिए जाते है. इस समय कोई भी भक्त मंदिर के आस पास नहीं आ सकता है.
कहा जाता है कि इस समय जो कोई भी मंदिर में प्रवेश करने की हिम्मत करता है उसकी मृत्यु हो जाती है.
आखिर क्या है कहानी है इस रहस्य के पीछे?
मध्यप्रदेश स्थित इस मंदिर को मैहर वाली शारदा माँ का मंदिर कहा जाता है. यह मंदिर पूरे भारत भर में बहुत प्रसिद्द है. हर वर्ष लाखों श्रद्धालु इस मंदिर में माता के दर्शन करने आते है. यह मंदिर बहुत प्राचीन माना जाता है. मैहर नाम के पीछे भी एक कहानी है. इस मंदिर की गिनती देवी के शक्तिपीठों में की जाती है, शक्तिपीठ वो स्थान है जहाँ सती के अंग और आभूषण कट कट कर गिरे थे.
इस स्थान पर देवी के गले का हार गिरा था. वह स्थान जहाँ माता का हार गिरा था से इस मंदिर का नाम मेहर पड़ा.
मेहर शारदा माँ मंदिर के पास ही आल्हा तालाब भी है और मंदिर के पास देवी के अनन्य भक्त आल्हा और उदल की प्रतिमाएं भी है. आल्हा उदल की कथाएं मध्यप्रदेश संभाग में बहुत प्रचलित है. ये दोनों भाई पृथ्वीराज चौहान के साथ युद्ध भी लड़े थे. दोनों ही भाई माँ शारदा देवी के भक्त थे.
कहा जाता है कि वो दोनों हमेशा इस मंदिर में पूजा अर्चना करने आते थे. कथाओं में ये भी कहा जाता है कि इन दोनों भाइयों की भक्ति से प्रसन्न होकर शारदा देवी ने इन्हें अमरत्व प्रदान किया था.
आज भी ये आल्हा और उदल माँ शारदा की पूजा अर्चना करने के लिए इस मंदिर में आते है. यहाँ के स्थानीय निवासियों के अनुसार रात के 2 से 5 बजे तक मंदिर के द्वार बंद करने का भी यही कारण है.
इस समय आल्हा उदल माता का श्रृंगार अपने हाथों से करते है और फिर उसके बाद माता की प्रथम पूजा भी ये दोनों भाई ही करते है. इस दौरान यदि कोई भी इन्हें देखने के लिए या फिर इनकी पूजा में खलल डालने का काम करता है तो वो मृत्यु को प्राप्त होता है.
इस अद्भुत रहस्य के बाद भी माँ शारदा का मंदिर हमारे देश के सबसे प्रसिद्द और सबसे अधि मान्यता प्राप्त देवी मंदिरों में से एक है. इस मंदिर पर पहुंचना भी दुर्गम है. माता के दरबार में जाने के लिए करीब 1063 सीढियां चढ़नी पड़ती है. वृद्धों और अक्षमों की सहायता के लिए सरकार ने रोप वे का भी निर्माण किया है किसी वजह से लोगों की यात्रा बहुत आसान हो गयी है.
इस मंदिर का निर्माण 500वीं सदी के आसपास अर्थात आज से लगभग 1500 साल पहले हुआ था. इस मंदिर पर शैव, बौद्ध धर्मावलम्बियों का असर भी मिलता है. यहाँ लिखे शिलालेख बौद्ध धर्म के बारे में है. पहाड़ी पर स्थित इस मदिर से अद्भुत नज़ारा दीखता है. हर साल नवरात्री पर यहाँ लोगों का हुजूम उमड़ उठता है.
कहा जाता है कि शारदा माता के द्वार से कोई भक्त खाली हाथ नहीं आता. लेकिन ये बात भी याद रखनी चाहिए कि जिस समय आल्हा और उदल माता का श्रृंगार कर रहे हो उस समय इस मंदिर में जाना मौत को न्यौता देने जैसा है.
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