इस मंदिर का निर्माण 500वीं सदी के आसपास अर्थात आज से लगभग 1500 साल पहले हुआ था. इस मंदिर पर शैव, बौद्ध धर्मावलम्बियों का असर भी मिलता है. यहाँ लिखे शिलालेख बौद्ध धर्म के बारे में है. पहाड़ी पर स्थित इस मदिर से अद्भुत नज़ारा दीखता है. हर साल नवरात्री पर यहाँ लोगों का हुजूम उमड़ उठता है.
कहा जाता है कि शारदा माता के द्वार से कोई भक्त खाली हाथ नहीं आता. लेकिन ये बात भी याद रखनी चाहिए कि जिस समय आल्हा और उदल माता का श्रृंगार कर रहे हो उस समय इस मंदिर में जाना मौत को न्यौता देने जैसा है.