आज भी ये आल्हा और उदल माँ शारदा की पूजा अर्चना करने के लिए इस मंदिर में आते है. यहाँ के स्थानीय निवासियों के अनुसार रात के 2 से 5 बजे तक मंदिर के द्वार बंद करने का भी यही कारण है.
इस समय आल्हा उदल माता का श्रृंगार अपने हाथों से करते है और फिर उसके बाद माता की प्रथम पूजा भी ये दोनों भाई ही करते है. इस दौरान यदि कोई भी इन्हें देखने के लिए या फिर इनकी पूजा में खलल डालने का काम करता है तो वो मृत्यु को प्राप्त होता है.