इन्हें ओमकारनाथ कहे या फ़रिश्ता समझ नहीं आता….
चलिए इनके बारे में कुछ बताते है फिर आप ही सुझाव दें की इन्हें किस नाम से पुकारा जाना चाहिए.
आज के ज़माने में जहाँ कोई किसी को नहीं पूछता और सब अपने स्वार्थ में लगे रहते है वहीँ कुछ लोग ऐसे भी है जिनकी बदौलत लगता है कि इंसानियत जिंदा है. यहाँ बात असली इंसानों की हो रही है फेसबुक पर इंसानियत का ज्ञान बांटने वालों की नहीं.
जो असल जिंदगी में तो किस का भला करना तो दूर किसी का फायदा उठाने से नहीं चुकते और फेसबुक पर इंसानियत का पाठ पढ़ते मिल जाते है.
यहाँ बात हो रही है उन लोगों की जो निस्वार्थ भाव से मानव मात्र की सेवा और भलाई करना चाहते है – बिना उस धर्म, जाति या नाम पूछे.
एक और इंसानियत की बात करने वाले सिर्फ समाज की कमियां गिनकर और आपस में वैमनस्य कराकर खुद को देश का ज़िम्मेदार नागरिक समझते है, वही कुछ लोग ऐसे है जो ना नाम की परवाह करते है ना खुद की, बस लगे रहते है मानव कल्याण के कार्यों में झूठी चमक दमक से दूर रहकर.
ऐसे ही एक इन्सान है ओमकारनाथ जिन्हें दिल्ली के लोग मेडिसिन बाबा के नाम से जानते है.
ओमकारनाथ की उम्र करीब 80 वर्ष है फिर भी वो पीछे करीब 10 सालों से एक अनूठे ढंग से समाज सेवा में लगे है.
ओमकारनाथ रोज़ सुबह एक झोला लेकर निकल पड़ते है दिल्ली की सड़कों पर और अलग अलग कोलोनियों में, जहाँ वो घर घर जाकर दवाइयां इकट्ठी करते है.
हमारे घरों में ये बहुत ही आम बात है कि बहुत सी गैर जरुरी दवाइयां पड़ी रहती है. ये दवाइयां कभी किसी के काम नहीं आती और तारीख जाने के बाद अक्सर कचरे के डब्बे में फेंक दी जाती है.
हमारे देश में ऐसे बहुत से लोग है जो सही समय पर दावा ना मिलने की वजह से अपनी जिंदगियां खो देते है, मेडिसिन बाबा ऐसे लोगों के लिए किसी फ़रिश्ते से कम नहीं है.
मेडिसिन बाबा घरों से दवाएं इकट्ठी करते है और उन्हें मेडिसिन बैंक में सहेजते है. कोई भी ज़रूरतमंद उनके पास आकर उनसे ये जीवनरक्षक दवाइयां मुफ्त में ले सकता है.
ओमकारनाथ दिल्ली के एक अस्पताल से सेवानिवृत्त तकनीशियन है. अस्पताल में इन्होने देखा था कि कैसे गरीब लोग बिना दवा के परेशान हो जाते है. तब से ही इन्होने अपने आप में अनोखा मेडिसिन बैंक बनाने का संकल्प लिया और अकेले ही इस कार्य को अंजाम देने के लिए निकल पड़े.
12 वर्ष के उम्र में ओमकारनाथ एक दुर्घटना में अपाहिज हो गए थे. उसके उसके बाद भी उन्होंने जज्बा नहीं खोया.
दोनों पैरों में तकलीफ के बाद भी ये मेडिसिन बाबा रोज़ घूम घूम कर दवाएं इकट्ठी करते है.
ओमकारनाथ की आर्थिक स्थिति कमज़ोर होने की वजह से ये मेट्रो का सफर नहीं कर सकते इसलिए वो अपने सीनियर सिटीजन बस पास की मदद से ददूरदराज़ के इलाकों में सफर करते है और जिन इलाकों में बस नहीं जाती वहां वो पैदल ही निकल लेते है.
हर शाम को दवाएं इकट्ठी करने के बाद ओमकारनाथ उन दवाओं को अलग अलग करते है. इस उम्र में भी ओमकारनाथ या मेडिसिन बाबा के ज़ज्बे को सलाम है.
अगर ओमकारनाथ की तरह और सबकी सोच भी ऐसी ही हो जाए तो दुनिया से सब परेशानियाँ दूर हो जाएँ और फिर से एक बार इंसानियत पर लोगों का भरोसा हो जाये.
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