नॉन वेज से दवा – बीमारियों से लड़ने के लिए हम सभी दवाइयां खाते हैं.
दवा के बिना जीवन संभव ही नहीं है. जितनी सुविधाएं बढ़ी हैं उसी के साथ लोगों की बीमारियाँ भी बढ़ी हैं. बीमारियाँ बढ़ने से लोगों को कई तरह की दवाइयों पर निर्भर रहना पड़ता है.
अब कुछ लोग पूरी तरह से वेज होते हैं, उनके लिए दवाइयों का इस्तेमाल करना हमेशा ही संदेह बना रहता है.
नॉन वेज से दवा बनती है –
अब ठीक होना है तो दवाई तो खानी ही पड़ेगी, लेकिन क्या आप जानते हैं कि बहुत सी दवाइयों में नॉन वेज मिला होता है.
जी हाँ ऐसी बहुत सी दवाइयां हैं जो पूरी तरह से पौधों से नहीं बनतीं. ऐसे में क्या आप उन दवाइयों को खा रहे हैं. शायद हाँ, आप में से बहुत से लोग कैप्सूल खाते होंगे. लेकिन अपनी फेवरेट गोली को लेकर मेरे मन में हमेशा सवाल रहता कि ये प्लास्टिक जैसा है क्या और अगर प्लास्टिक है तो शरीर के अंदर घुलता कैसे है.
यही आपमें से कई लोगों का डाउट होगा.
तो आज इस ‘प्लास्टिक’ के बारे में जानेंगे जो शरीर में घुल जाता है और तबीयत भी ठीक हो जाती है.
आपका संदेह हमेशा बना रहता है.
आज हम आपको बताएंगे कि ये कैप्सूल बनता कैसे है.
असल में ये दो तरह के होते हैं. सॉफ्ट और हार्ड. सॉफ्ट कैप्सूल नाम की तरह ही ये सॉफ्ट होती है. हाथ से दबाएंगे तो दबने लगती है. ये एक तरह का जेल (वो जेल नहीं, जिसमें कैदी रहते हैं, बल्कि जेल पेन टाइप का जेल) होता है. दवा इस जेल के लेयर के अंदर होती है. ये जेल कई तरह से बन सकता है, लेकिन आमतौर पर कॉड लिवर ऑयल इस्तेमाल होता है. कॉड मछली की एक प्रजाति है, तो कॉड लिवर ऑयल हुआ मच्छी का तेल. जी हाँ इसका मतलब ये हुआ की आपकी दवाई पूरी तरह से वेज नहीं हुई.
असल में मीट और बीफ के कारखानों में हड्डियां और चमड़ी एक बाय-प्रॉडक्ट के तौर पर निकलती हैं.
इसलिए जिलेटिन के लिए कच्चा माल आसानी से मिल जाता है और ये सस्ता होता है. हार्ड जिलेटिन कैप्सूल यही वो कैप्सूल है, जो लोगों को कंफ्यूज़ करता है कि प्लास्टिक खा रहे हैं. इस कैप्सूल में लगने वाला मैटेरियल जिलेटिन होता है. ये एक तरह का पॉलिमर ही है, लेकिन प्लास्टिक से अलग (इसलिए प्लास्टिक जैसा लगता भी है.) जिलेटिन एक तरह का प्रोटीन होता है. वही प्रोटीन जो आपके शरीर में भी है. अब आप्सोच रहे होंगे की क्या मनुष्यों के शरीर से प्रोटीन निकालकर इसे बनाया जाता है?
असल में आप बिलकुल सही सोच रहे हैं, लेकिन ये आप भी जानते हैं कि ये मुमकिन नहीं है, इसलिए कैप्सूल बनाने के लिए इसका इस्तेमाल किया नहीं जा सकता. तो कैप्सूल में काम आने वाला प्रोटीन जानवरों के शरीर से निकाला जाता है. मरने के बाद जानवरों की हड्डियों और चमड़ी को डीहाइड्रेट करने पर जिलेटिन मिलता है. जानवर आपके लिए इस दवाई को बनाते हैं. उन्हीं के शरीर से बनाया जाता है.
इस तरह नॉन वेज से दवा बनती है – वैसे ये मामला कई बार राजनितिक मुद्दा भी बन चुका है कि नॉन वेज से दवा नहीं बनानी चाहिए, लेकिन जबतक इसका कोई हल नहीं निकल जाता तब तक ऐसा होता रहेगा.