भारत एक मात्र ऐसी जगह है जहाँ बिमारी का इलाज़ भिन्न भिन्न तरीके और उपकरण से किया जाता है.
ऐसे ऐसे तरीके जिनको जानकार कभी आश्चर्य होता है तो कभी लगता है कि लोग आज भी इस अन्धविश्वास को मानकर अपनी ज़िन्दगी के साथ खिलवाड़ कर रहे है.
भारत में छत्तीसगढ़ राज्य के ग्रामीण इलाकों में बिमारी के इलाज़ लोहे की गर्म सलाखों को दगवाकर होता है. छत्तीसगढ़िया बोलचाल की भाषा में इसे ‘आंकना’ कहते हैं.
आज 21वीं सदी में यह सुनकर आप हैरान रह जायेंगे मगर ये हकीकत है.
इस तरीके से कई बीमारियों का इलाज करने वाले इसे पूरी तरह कारगर होने का दावा करते हैं, जबकि इसका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है.
सूबे के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले के हर पांच-दस गांव में एक ऐसा वैद मिल जाएगा, जो कथित रूप से आंक कर ही कई रोगों का इलाज करता है.
यह इलाज़ नि:शुल्क सेवा के रूप में किया जाता है जिससे लोगो को कराने में आपत्ति भी नहीं होती.
इस इलाज़ में हंसियानुमा लोहे को गर्म कर उससे लोगों के शरीर के उन हिस्सों को दागते हैं, जहां तकलीफ होती है. रोग से पीड़ित लोग उपचार के इस तरीके अपना भी रहे हैं और इससे आराम मिलने की बात कहते हैं,
जबकि डॉक्टर की द्रष्टि से यह तरीके काफी खतरनाक व जानलेवा बताया जाता हैं.
यहाँ के लोग अनेक बिमारी जैसे वैद रत्ती लकवा, गठिया वात, मिर्गी, बाफूर, अंडकोष, धात रोग, बेमची, आलचा सहित कई अन्य रोगों का इलाज इसी विधि से कराते आये है.
छत्तीसगढ़ के साथ ही ओडिशा व महाराष्ट्र से भी लोग यहाँ इसी विधि से इलाज़ कराने आते हैं. हाल ही में टाटानगर जमशेदपुर से भी कुछ पीड़ित इलाज कराने आए थे. वे इस इलाज से आराम मिलने का दावा भी करते हैं.
यहाँ पर दूरदराज से आने वाले मरीजों के रहने व खाने की व्यवस्था भी वैद अपने घर पर ही कराते हैं.
बच्चों का इलाज करते समय उनका दिल भी दुखता है, लेकिन बीमारी दूर करने के लिए इलाज़ करने की बात बोलते हैं.
आज विज्ञान और भारतीय चिकित्सा पद्धति इतनी आगे बढ़ चुकी है कि हर बिमारी का इलाज मशीनों से कुछ मिनट में ही कर दिए जाते हैं, ऐसे में भारत के पिछड़े गाँव में आज भी अपनी पुरानी परम्परागत चिकित्सा पद्धति से ऐसे सलाखों से इलाज़ करना और कराना एक अंधविश्वास ही लगता है.
लेकिन लोगों के ठीक होने की बात कहीं ना कहीं इस चिकित्सा पद्धति को जिंदा रखे हुए है और आगे चलाने का काम कर रही है.