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हड्डियाँ टूटने के बाद भी लड़ता रहा ये जवान !

जवानों की दिलेरी – हम अपने घरों में चैन की नींद सो पाते हैं क्योंकि हमारे जवान सीमा पर दुश्मनों से युध्द करते रहते हैं.

देश की रक्षा करते हुए हर दिन हमारे जवान शहीद होते हैं. हम तो समाचार देखकर सिर्फ अफ़सोस ज़ाहिर करते हैं, लेकिन हमारे जवानों के घरों में लोगों की साँसे अटकी रहती हैं. कब उनका लाल धरती माँ की रक्षा करते हुए सीमा पर शहीद हो जाएगा कह नहीं सकते.

कहते हैं कि अगर पड़ोसी ठीक मिल जाए तो बड़ी से बड़ी परेशानी दूर हो जाती है.

अक्सर हम अपने पड़ोस में ऐसे लोगों को देखना पसंद करते हैं जो हमारे न रहने पर हमारे परिवार की रक्षा कर सकें, लेकिन इस मामले में हमारे देश को बहुत ही बुरा पडोसी मिला है.

पाकिस्तान हमेशा ही चोरी से वार करता है और अपनी नीचता दिखाता है.

जवानों की दिलेरी – भारतीय जवानों में कुछ दिन पहले ही हमारे ४ जवान पाकिस्तानी सेना द्वारा राजौरी सेक्टर में की गई फायरिंग में शहीद हो गए. देश उनके जाने का शोक मन रहा था, लेकिन आर्मी हॉस्पिटल लड़ाई में शहीद हुए उन जवानों की मेडिकल रिपोर्ट जांच रही थी. हॉस्पिटल के डॉक्टर ने जम्मू-कश्मीर में सार्वजनिक की. रिपोर्ट देखने और उसके बारे में पढने के बाद जवानों की दिलेरी देखने के बाद पूरे भारत की आँखों में आंसू और सीना गर्व से फूल गया.

कुछ दिन पहले हुए पाकिस्तानी हमले में हमारे ४ जवान शहीद हो गए. इसमें से सबसे कम उम्र के कुंडू थे. जिनकी उम्र २३ साल थी.

इस रिपोर्ट में बताया गया कि जब कैप्टन कुंडू, ग्वालियर के राइफल मैन राम अवतार, सांबा के हवलदार रोशन लाल और कठुआ के शुभम सिंह अस्पताल लाए गए तो उनके शरीर के लगभग हर हिस्से में मोर्टार के छर्रे धंसे हुए थे. यही नहीं, कमर से नीचे का हिस्सा और उनके दोनों पैरों की हड्डियां टूट चुकी थीं. इसके बावजूद वो लड़ते रहे. ये हमारे जवानों की दिलेरी थी.  इसका मतलब ये हुआ कि हमारे जवान अपनी हड्डियाँ टूटने के बाद भी देश की रक्षा कर रहे थे.

थोड़ी सी चोट लगने पर हम सभी तिलमिला जाते हैं, लेकिन हमारे ये जवान अपनी हड्डियाँ टूट जाने के बाद भी दुश्मन के आगे घुटने नहीं टेके और देश की रक्षा करते रहे. गौरतलब है कि जब ये जवान अस्पताल लाए गए थे तब उन जवानों का बहुत अधिक खून बह चुका था. जिस कारण उन्हें नहीं बचाया जा सका. हमने बचाने के लिए हमारे जवान अपनी सोचे बगैर देश पर कुर्बान हो गए.

२३ साल के कुंडू के घर में अब उनकी माँ अकेली बचीं. उनके बहनों की शादी हो चुकी है. उनके पिता की मृत्यु पहले ही हो चुकी थी. अब वो इकलौते थे अपनी माँ की जिम्मेदारियों को निभाने के लिए, लेकिन उसकी चिंता किए बगैर वो धरती माँ को अपना शीश चढ़ा गए. नाज़ है देश के ऐसे सपूतों पर. जब ये जवान देश पर शहीद हो जाते हैं तो उनका परिवार अनाथ हो जाता है. ऐसे कठिन मौके पर देश के हर नागरिक को उनके परिवार की रक्षा करनी चहिए.

मानाकि मुश्किल है सीमा पर दुश्मनों से लड़ाई करना, लेकिन आसान है शहीद हुए परिवारों के बारे में जानना. आप ये काम तो कर ही सकते हैं. सलाम है इन जवानों की दिलेरी को!

Shweta Singh

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Shweta Singh

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